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बिहार शराबबंदी: 3.5 लाख मामले दर्ज, 4 लाख लोग गिरफ्तार, 20 हजार जमानत आवेदन लंबित, जेलों में कैदियों की संख्या डेढ़ गुनी

By विशाल कुमार | Updated: December 30, 2021 09:40 IST

ये आंकड़े ऐसे समय में महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना हाल ही में इस कानून को अदूरदर्शी बताते हुए कह चुके हैं कि इससे अदालतों में जमानत के केसों का अंबार लगता जा रहा है और उन पर बोझ बढ़ रहा है।

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ठळक मुद्देबिहार की 59 जेलों में लगभग 47,000 कैदियों को रखने की क्षमता है।इन जेलों में 70,000 कैदी हैं, जिनमें से लगभग 25,000 पर शराब कानून के तहत गिरफ्तार।अकेले नवंबर में लगभग 10,000 कथित उल्लंघनकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था।

पटना:बिहार पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, साल 2016 में लागू किए गए शराबबंदी कानून के तहत राज्य में इस साल अक्टूबर तक 3,48.170 मामले दर्ज हैं और इसमें 4,01,855 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार मद्य निषेध एवं आबकारी कानून के तहत इन मामलों से संबंधित लगभग 20,000 जमानत आवेदन राज्य में पटना हाईकोर्ट और जिला अदालतों के समक्ष निपटान के लिए लंबित हैं।

पटना हाईकोर्ट ने जनवरी, 2020 और नवंबर, 2021 के बीच शराबबंदी के मामलों में 19,842 जमानत याचिकाओं (अग्रिम और नियमित) का निपटारा किया, इस अवधि के दौरान अदालत द्वारा निपटाई गई कुल जमानत याचिकाएं 70,673 थीं।

इस साल नवंबर तक, ऐसे मामलों में 6,880 जमानत याचिकाएं अभी भी हाईकोर्ट के समक्ष लंबित हैं, जिसके साथ जमानत आवेदनों का कुल आंकड़ा 37,381 पहुंच गया है।

कुल मिलाकर बिहार की 59 जेलों में लगभग 47,000 कैदियों को रखने की क्षमता है। हालांकि, जेल सूत्रों के अनुसार, वर्तमान में इन जेलों में लगभग 70,000 कैदी हैं, जिनमें से लगभग 25,000 पर शराब कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था।

इस साल नवंबर की शुरुआत में गोपालगंज और बेतिया में जहरीली शराब की घटनाओं के बाद से बिहार पुलिस ने शराबबंदी उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ अपना अभियान तेज कर दिया है, अकेले नवंबर में लगभग 10,000 कथित उल्लंघनकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था।

इससे राज्य भर की जेलों में और भीड़ हो गई है। पटना की बेउर सेंट्रल जेल में लगभग 2,400 कैदियों को रखने की क्षमता है, लेकिन वर्तमान में यह 5,600 कैदियों से भरी हुई है।

एक जेल अधीक्षक ने कहा कि हर तीसरा या चौथा कैदी शराब कानून के तहत आरोपी है। 2017 के बाद से यही चलन रहा है। 2019 और 2020 में हमें कुछ राहत मिली थी, जिनमें से अधिकांश को जमानत मिली थी, लेकिन जेलों में शराब कानून का उल्लंघन करने वालों की संख्या फिर से बढ़ रही है।

गृह विभाग के एक सूत्र ने कहा कि शराब के मामलों में दोषसिद्धि दर एक प्रतिशत से भी कम है। लेकिन शराबबंदी एवं आबकारी कानून के तहत प्रकरणों के त्वरित निस्तारण के लिये करीब 75 विशेष अदालतें गठित की जा रही हैं।

ये आंकड़े ऐसे समय में महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना हाल ही में इस कानून को अदूरदर्शी बताते हुए कह चुके हैं कि इससे अदालतों में जमानत के केसों का अंबार लगता जा रहा है और उन पर बोझ बढ़ रहा है।

हालांकि, साल 2016 में शराबबंदी लागू करने के बाद चौतरफा आलोचनाओं का सामने करने के बीच नीतीश कुमार अपने फैसले को जायज ठहराने के लिए राज्यव्यापी समाज सुधार अभियान पर निकले हैं। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया है कि जिन्हें शराबबंदी पसंद नहीं है उन्हें बिहार में आने की जरूरत नहीं है।

अपनी यात्रा के दौरान ही बीते 24 दिसंबर को गोपालगंज में उन्होंने कहा था कि गोपालगंज कोर्ट द्वारा 2016 में शराब मामले में 9 लोगों को मौत की सजा (इस मार्च) शराब पीने वालों और व्यापारियों के लिए एक बड़ा सबक है। पियोगे तो मरोगे।

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