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वंचित-दलित समाज के मतों को लेकर टकराव?, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के बीच सियासी बयानबाजी

By एस पी सिन्हा | Updated: September 23, 2025 14:48 IST

जीतनराम मांझी के चुनाव प्रचार में चिराग पासवान नहीं गए थे। उपचुनाव में भी इमामगंज में जाने से इनकार कर दिया था।

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ठळक मुद्देमांझी और चिराग पासवान के बीच दलित नेता होने की जंग तब से ही शुरू है।राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान पर लगातार हमलावर हैं। दलित समाज के मतों को लेकर जोर आजमाईस का दौर शुरू हो गया है।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के तालमेल को लेकर गठबंधन दलों के बीच जारी माथापच्ची के बीच वंचित और दलित समाज के मतों को लेकर जोर आजमाईस का दौर शुरू हो गया है। दो केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के बीच चल रही सियासी बयानबाजी में दिखने लगी है। एक ओर हम पार्टी के संरक्षक केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी व लोजपा(रा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान पर लगातार हमलावर हैं। लोकसभा चुनाव से ही जीतनराम मांझी और चिराग पासवान में ठनी है। बता दें कि गया लोकसभा चुनाव में जीतनराम मांझी हम पार्टी से एनडीए के उम्मीदवार थे। जीतनराम मांझी के चुनाव प्रचार में चिराग पासवान नहीं गए थे। उपचुनाव में भी इमामगंज में जाने से इनकार कर दिया था। मांझी और चिराग पासवान के बीच दलित नेता होने की जंग तब से ही शुरू है।

एक मांझी और दूसरे पासवान जाति से आते हैं। मांझी का दावा है कि वे बिहार की सबसे बड़ी दलित आबादी का प्रतिनिधत्व करते हैं। चिराग का भी दावा रहता है कि पासवान का सौ फीसदी वोट वे ट्रांसफर कराने की क्षमता रखते हैं। इसके साथ ही दलितों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। अपने-अपने दावों के बीच उनमें एक दूसरे से बड़ा दलित नेता होने की जंग चल रही है।

दरअसल, लोकसभा में चिराग पासवान को पांच सीटें मिलीं। जीतनराम मांझी को एक सीट दी गई। विधानसभा चुनाव में भी मांझी की अपेक्षा चिराग पासवान को अधिक सीटें मिलने की संभावना है। ऐसे में जीतनराम मांझी की पार्टी हम को काफी कम सीटों पर संतोष करना पड़ेगा। इस कारण मांझी ने चिराग को निशाने पर लिया है।

वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुशलकार्य प्रणाली से महिला मतदाताओं के बीच एक अलग पहचान बनाई। साथ ही साथ उन्होंने महादलीत के संबोंधन में कई दमित जातियों को एक कैनवास में ला कर विकास के पहले पायदान पर पहुंचने में सफल रहे। स्वर्गीत रामविलास पासवान दलित थे और सामाजिक रूप से लालू यादव और नीतिश कुमार की तुलना में ज्यादा पिछड़ी थी।

उनके पास उनकी दलित सेना भी थी, लेकिन उनकी सीमा भी, उनकी जाति पासवान ही रही। पासवानों की स्वाभाविक दोस्ती न चर्मकारों के साथ है, न अन्य दलित जातियों के साथ.वे कभी लालू यादव से हाथ मिलाते तो कभी नीतीश कुमार से।

फिलहाल उनके पुत्र नरेन्द्र मोदी के हनुमान के भूमिका में है उनकी पार्टी परिवार में ही दो फाड़ हो चुकी है। वह कभी नीतीश कुमार के साथ दिखते है कभी मुखर विरोधी हो जाते है कहना गलत नहीं होगा कि आजकल वह राजनैतिक हठयोग कर रहे हैं।

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