पटना:बिहार में आखिरकार नीतीश कुमार ने महागठबंधन सरकार से इस्तीफे का ऐलान कर दिया। जदयू द्वारा रिश्ते तोड़े जाने की घोषणा के बाद से आक्रमक हुई राजद ने अब सीधे नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा है कि नीतीश के द्वारा किये इस अन्याय को वो जनता के बीच ले जाएगी और जनता ही नीतीश के कर्मों का फैसला करेगी।
बिहार के सीएम पद से नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद राजद नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, "उनके पास बचा ही क्या था? जनता मालिक है। वह सब देखती है और हर चीज का हिसाब मांगेगी। तेजस्वी यादव ने जो शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में काम किया है, उसे हम लेकर जनता के बीच जाएंगे और एनडीए की नाव के साथ नीतीश कुमार की भी नाव डूबाएंगे।''
इससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्यपााल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर से राजभवन जाकर मुलाकात की थी और उसने कहा था कि कि जदयू का महागबंधन से रिश्ता खत्म हो गया है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजभवन जाकर गवर्नर से मुलाकात की और पार्टी के ओर से लिये गये फैसले के बारे में जानकारी दी। नीतीश कुमार ने राजभवन में राज्यपाल से कहा कि हमने राज्य में महागठबंधन से नाता तोड़ने का फैसला किया है।
इस घटनाक्रम से पहले बीते शनिवार को राजद नेता शिवानंद तिवारी ने भी जदयू प्रमुख नीतीश कुमार पर सीधा हमला करते हुए कहा कि उन्हें बेहद आश्चर्य है कि नीतीश कुमार 'सिद्धांतहीन राजनीति' करके पापी बनना पसंद करेंगे।
उन्होंने कहा, "राजनीतिक बदवलाव के बीच कई बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फोन करके मिलने का समय मांगा हालांकि नीतीश कुमार ने मुझे मिलने या समय देने से इनकार कर दिया।”
राजद नेता तिवारी ने कहा, "नीतीश कुमार महात्मा गांधी के अनुयायी होने का दावा करते हैं। उन्हें गांधीजी के बताए सात प्रकार के कामों से बचना चाहिए जिन्हें बापू ने "पाप" कहा था।"
उन्होंने आगे कहा, "महात्मा गांधी सात प्रकार के कर्मों को पाप मानते थे। जीवन में सबसे पहले जिन कामों से बचना चाहिए उनमें से एक है 'सिद्धांतहीन राजनीति' और मुझे नहीं लगता कि नीतीश जी उसका पापी बनना पसंद नहीं करेंगे।''
शिवानंद तिवारी के अलावा राजद के अन्य वरिष्ठ नेता और दिनारा विधायक विजय कुमार मंडल ने भी नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए उन्हें ऐसा नेता बताया, जो किसी का नहीं हो सकता है।
राजद विधायक विजय कुमार मंडल ने कहा, “अगर कोई नेता ईबीसी का विरोध करता है, तो वह नीतीश हैं। मुख्यमंत्री कहते हैं कि वह कर्पूरी ठाकुर के अनुयायी हैं, लेकिन तथ्य यह है कि उन्होंने 1978 में एक बैठक की अध्यक्षता की थी, जो ईबीसी आरक्षण पर कर्पूरीजी के फैसले के खिलाफ बुलाई गई थी।”