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Bihar Elections: मतदाताओं ने सुना दिया अपना फैसला, 14 नवंबर को मतों की गिनती होने के बाद तय हो जाएगा नेताओं का भविष्य

By एस पी सिन्हा | Updated: November 11, 2025 16:27 IST

चुनाव के नतीजे अगर एनडीए के पक्ष में फिर से जाते हैं तो यह मानने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए कि बिहार के लोगों के दिल में उन्होंने बड़ी जगह बना ली है। लेकिन महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के चेहरे तेजस्वी यादव के लिए तो यह चुनाव जीवन-मरण का सवाल बन या है।

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पटना: बिहार में दूसरे और आखिरी चरण की वोटिंग के साथ ही मतदान की प्रक्रिया मंगलवार को पूरी हो गई। मतों की गिनती 14 नवंबर को होगी। ऐसे में किसके सिर ताज बंधेगा, यह मतदाताओं ने ईवीएम में बंद कर दिया है। इस बार का चुनाव यह भी तय करेगा कि मतदाता वादे और आश्वासन से प्रभावित होते हैं या उन्हें बिहार के विकास की भी चिंता है। नीतीश कुमार की शायद यह आखिरी पारी है। चुनाव के नतीजे अगर एनडीए के पक्ष में फिर से जाते हैं तो यह मानने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए कि बिहार के लोगों के दिल में उन्होंने बड़ी जगह बना ली है। लेकिन महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के चेहरे तेजस्वी यादव के लिए तो यह चुनाव जीवन-मरण का सवाल बन या है। अगर जनता ने इस बार भी उन्हें नकारा तो उनके लिए आगे की राह कठिन हो जाएगी।

उल्लेखनीय है कि इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव कई मामलों में अलग ढंग का रहा। सत्ता पक्ष और विपक्ष ने जीत के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए। तेजस्वी ने तो मतदाताओं को लुभाने के लिए इतनी घोषणाएं की थीं, जिन्हें पूरा करने में उनके पसीने छूट जाएंगे। चुनाव शुरू होने के आखिरी दिन महिलाओं के खाते में 14 जनवरी तक एकमुश्त 30 हजार रुपये भेजने का उन्होंने प्रलोभन दे डाला। इतने से मन नहीं भरा तो 500 रुपये में एलपीजी सिलिंडर देने की भी उन्होंने घोषणा की। बिहार के 2.75 लाख परिवारों के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की तेजस्वी की घोषणा ने तो उनकी हालत हास्यास्पद बना दी। बिहार पहले से जाति-धर्म के आधार पर मतदान के लिए बदनाम रहा है। 

जाति-धर्म के आधार पर टिकट मांगे और बांटे जाते हैं। सभी दलों ने इसका बखूबी पालन इस चुनाव में किया है। राजद का तो आधार ही जातीय-धार्मिक समीकरण रहा है। अगड़े-पिछड़े के आधार पर भी राजद वोट मांगता रहा है। इसकी झलक टिकट बंटवारे में भी दिखी। राजद अपने पुराने परखे मुस्लिम-यादव (एम-वाय) समीकरण के सहारे इस बार भी चुनाव मैदान में उतरा। जातीय आधार पर पार्टी ने कुशवाहा समाज को जोड़ने की कोशिश की। महागठबंधन का नेतृत्व करने वाली राजद ने अपने 143 उम्मीदवारों की सूची में मुख्य रूप से एम-वाय का पूरा ख्याल रखा। 

राजद ने 51 यादव उम्मीदवारों को टिकट दिया तो 18 मुस्लिम उम्मीदवार खडे किए। वहीं, कुशवाहा जाति के 28 उम्मीदवार उतारे गए। 36 फीसदी वाले अति पिछड़ा वर्ग की राजद के टिकट बंटवारे में हिस्सेदारी 12 प्रतिशत रही। जबकि कांग्रेस ने सवर्ण उम्मीदवारों पर अधिक भरोसा दिखाया। कांग्रेस को महागठबंधन से हिस्से में 61 सीटें मिली थीं। इनमें 34 सीटों पर पार्टी ने 34 सवर्ण उम्मीदवार उतारे। इनमें भूमिहार जाति के 8, राजपूत 15, ब्राह्मण 7 के साथ एक कायस्थ उम्मीदवार को भी कांग्रेस ने मौका दिया। वाम दलों में भाकपा-माले ने भी कुशवाहा को 5 टिकट दिए। 

इसके अलावा 4 यादव, 6 दलित और 2 मुसलमानों को भी पार्टी ने टिकट दिए। लेकिन महागठबंधन में सीटों के बंटवारे से शुरू हुआ कलह पूरे चुनाव में दिखा। कांग्रेस ने सीट बंटवारे का ऐसा पेंच फंसाया कि नामांकन के दिन तक किसी को यह समझ में नहीं आया कि कौन कितनी सीटों पर लड़ रहा है? आखिरकार कांग्रेस ने पिछली बार से 10 कम यानी 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। राजद ने 143 सीटों पर उम्मीदवार दिए। 11 सीटें ऐसी रहीं, जहां महागठबंधन के उम्मीदवार आपस में ही उलझते दिखे। नाम वापसी के बाद भी उम्मीदवारों को लेकर असमंजस बनी रही।

इस बार चुनाव का एक नकारात्मक पहलू यह रहा कि कई जगहों पर उम्मीदवारों को विरोध का सामना करना। जनशक्ति जनता दल के प्रमुख और लालू यादव के बेटे तेजप्रताप की सभा में हंगामा हुआ तो हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा सेक्युलर (हम) की बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र की उम्मीदवार और मौजूदा विधायक ज्योति मांझी (जीतन राम मांझी की समधन) के चुनाव प्रचार काफिले पर पथराव हुआ। उन्हें भी चोटें आईं। उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। हम उम्मीदवारों पर गया जिले के टिकारी और अतरी विधानसभा क्षेत्रों में भी हमले हुए। टिकारी में पार्टी के उम्मीदवार और प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार पर चुनाव प्रचार के दौरान ग्रामीणों की भीड़ ने हमला किया और ईंट-पत्थर फेंके। 

अतरी विधानसभा क्षेत्र के भूपेश नगर में हम के चुनाव प्रचार के दौरान समर्थकों पर हमला हुआ, जिसमें दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाली जन सुराज पार्टी के 4 उम्मीदवारों ने बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से ठीक पहले पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। शुरू में जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर ने आरोप लगाया था कि भाजपा के दबाव और धमकियों के कारण उनके 3 उम्मीदवारों को चुनाव से हटने पर मजबूर किया गया। 

पहले चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले (5 नवंबर को) मुंगेर विधानसभा क्षेत्र से जन सुराज के उम्मीदवार संजय सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने मुंगेर में एनडीए उम्मीदवार कुमार प्रणय को अपना समर्थन द दिया। यानी जन सुराज पार्टी के कुल 4 उम्मीदवारों ने पार्टी छोड़ दी। इनमें कुछ ने अपना नामांकन वापस ले लिया या भाजपा को समर्थन दे दिया। इस तरह इस बार के विधानसभा चुनाव में सभी दलों ने कोई कोर कसर नही छोडा। अब सबकी नजर चुनाव परिणाम पर टिक गई है।

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