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Bihar Elections 2025: लालू प्रसाद यादव के बड़े लाल तेज प्रताप अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव के लिए खड़ी कर सकते हैं परेशानी, बंट सकता है राजद का यादव-मुस्लिम वोट

By एस पी सिन्हा | Updated: July 27, 2025 14:56 IST

बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी तेज प्रताप यादव जहानाबाद और शिवहर सीट से अपने करीबियों को चुनाव लड़ाना चाहते थे। टिकट को लेकर खूब इधर-उधर घूमे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके जहानाबाद सीट से उनके करीबी चंद्र प्रकाश यादव ने चुनाव लड़ा।

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पटना: राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बड़े लाल तेज प्रताप यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर बिहार की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। दरअसल, तेज प्रताप का अलग रास्ता राजद के लिए आंतरिक चुनौती बन सकती है। तेज प्रताप यादव ने कहा है कि इस बार वे महुआ विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने बताया कि उन्होंने 'टीम तेज प्रताप यादव' नाम से एक ओपन प्लेटफॉर्म तैयार किया है, जो कोई राजनीतिक पार्टी नहीं, बल्कि एक सामाजिक मंच है। इसका उद्देश्य सभी वर्गों, खासकर युवाओं को जोड़ना और उन्हें प्रतिनिधित्व देना है। उन्होंने कहा कि हमारा दरवाजा सबके लिए खुला है। वैसे उन्होंने ऐलान किया कि वे राजनीतिक पार्टी लॉन्च नहीं करेंगे।

ऐसे में जानकारों का मानना है कि तेज प्रताप के निर्दलीय चुनाव लड़ने और नए प्रतीकों को अपनाने से राजद का वोट बैंक, विशेष रूप से यादव समुदाय प्रभावित हो सकता है। साथ ही यह अन्य दलों, जैसे-भाजपा और जदयू को राजद के वोट बैंक में सेंध लगाने का अवसर दे सकता है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि तेज प्रताप का यह ऐलान उनकी ओर से दबाव की राजनीति भी हो सकती है, ताकि वे राजद में अपनी स्थिति दोबारा मजबूत कर सकें। तेज प्रताप ने हरी टोपी छोड़कर पीली टोपी धारण कर ली है, जिसे भगवान कृष्ण के पीतांबर से जोड़कर देखा जा रहा है।  

ऐसे में यह भी कहा जा सकता है कि पीली टोपी सांकेतिक रूप से उनकी छवि को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत करने की कोशिश हो सकती है। हालांकि, इसका सियासी मकसद स्पष्ट रूप से राजद से अलगाव और नई पहचान स्थापित करना ही है। तेज प्रताप ने युवाओं से जुड़ने की अपील की है। उन्होंने ऐलान किया है कि उनके द्वारा अन्य सीटों पर भी योग्य उम्मीदवारों को उतारा जा सकता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तेज प्रताप का यह कदम राजद के लिए नई चुनौती बन सकती है। हाल ही में उनके बदलते रुख और संगठनात्मक निर्णयों से असहमति के संकेतों ने एक बार फिर राजद की शीर्ष नेतृत्व के लिए चिंता बढ़ा दी है।

यह परिस्थिति आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है। तेज प्रताप ने यह भे ऐलान किया है कि आने वाले चुनाव में अलग-अलग सीटों से उनके लोग चुनाव लड़ सकते हैं। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी तेज प्रताप यादव जहानाबाद और शिवहर सीट से अपने करीबियों को चुनाव लड़ाना चाहते थे। टिकट को लेकर खूब इधर-उधर घूमे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके जहानाबाद सीट से उनके करीबी चंद्र प्रकाश यादव ने चुनाव लड़ा।

इस दौरान उन्होंने चंद्र प्रकाश यादव के समर्थन में जमकर प्रचार किया। चंद्रप्रकाश को उन्होंने लालू यादव का बेटा तक बता दिया। परिणाम यह हुआ कि यहां से जदयू के चंद्रेश्वर प्रसाद 1751 वोटों से चुनाव जीत गए। चुनाव के बाद कहा गया कि अगर तेज प्रताप अपना प्रत्याशी नहीं उतारते तो राजद चुनाव जीत जाती। सियासी जानकारों का मानना है कि उनके इस कदम से राजद के कई अन्य नेताओं को भी तेज प्रताप यादव के साथ आने का मौका मिल सकता है। विशेषकर वैसे नेता जो पार्टी में किनारे लगा दिए गए हैं, उनके लिए तेज प्रताप यादव एक बड़ी उम्मीद बन सकते हैं।

तेज प्रताप यादव भी स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका दरवाजा सबके लिए खुला है। राजद के लिए यह स्थिति इसलिए भी गंभीर है क्योंकि तेज प्रताप का एक खास युवा वोटबैंक को प्रभावित करने वाली छवि के नेता के तौर पर माना जाता है। अब वे स्वतंत्र रूप से राजनीतिक गतिविधियां चलाते हैं, तो यह वोटों के बंटवारे की स्थिति पैदा कर सकता है। विशेष रूप से यादव और मुस्लिम समुदायों में इस तरह की फूट, राजद को कमजोर कर सकती है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि तेज प्रताप का नया रुख आने वाले चुनाव में राजद के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकता है।

उधर, भाजपा नेता अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि राजद परिवार में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। पहले भाई-बहन में वर्चस्व की लड़ाई हुई और अब भाई-भाई में लड़ाई है। जाहिर है जो जीतेगा, वही सिकंदर होगा। लेकिन तेजस्वी यादव ने जिस तरह से तेज प्रताप को घर और पार्टी से दूध की मक्खी की तरह निकलवा बाहर किया है तो तेज प्रताप की सियासत दाव पर लग गई है। उन्हें तो कुछ का कुछ विचार करना ही पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषक महेश कुमार सिन्हा का मानना है कि तेज प्रताप यादव अब लालू परिवार के लिए संकट बनते जा रहे हैं।

लालू यादव ने जिस प्रकार से उन्हें बाहर रास्ता दिखा दिया है, उससे तेज प्रताप के पास कोई विकल्प नहीं बचता है। चुनाव से ऐन पहले जो कुछ भी हो रहा है वहीं सब कुछ दिमाग में भी रहता है। ऐसे में संभावनाओं की लड़ाई में लालू यादव पिछड़ सकते हैं, इसका फायदा जद(यू) और भाजपा को मिला। ऐसे में अगर तेज प्रताप यादव 4-5 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारते हैं तो ये तेजस्वी यादव के लिए बड़ा झटका होगा। हालांकि तेज प्रताप के इस कदम को लेकर राजद के तमाम नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। पार्टी दफ्तर में प्रवक्ताओं ने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया।  

उल्लेखनीय है कि तेज प्रताप यादव की निजी जिंदगी में एक लड़की से उनके रिश्ते के खुलासे के बाद लालू यादव ने उन्हें 6 साल के पार्टी निकाला और परिवार से बेदखल कर दिया। इसके बाद से ही तेज प्रताप के सियासी भविष्य को लेकर कई किस्म की चर्चा होने लगी थी। अब तेज प्रताप का हरी टोपी छोड़कर पीली टोपी अपनाना बिहार की सियासत में एक नया संकेत है। परोक्ष रूप से देखा जाए तो टीम तेज प्रताप का मतलब यह भी है कि अब वे स्वयं को केवल “नेता का बड़ा भाई” (तेजस्वी यादव) मानने तक सीमित नहीं रखना चाहते। उनके हालिया बयानों में यह झलकता है कि वे अपने समर्थकों के बीच एक अलग राजनीतिक पहचान बनाना चाहते हैं।

बता दें कि इससे पहले लालू यादव के सीएम रहते सुभाष और साधु यादव का जमकर उत्पात था। इसके बाद लालू यादव ने दोनों को पार्टी से निकाल दिया था। इसके बाद साधु और सुभाष यादव ने पार्टी को नेस्तनाबूद करने का दावा किया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। ऐसे में अगर तेज प्रताप महुआ से और अपने समर्थकों को चुनाव लड़ाते हैं तो ये तेजस्वी के लिए किसी बुरे सपने जैसा हो सकता है।

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