पटना: बिहार की कानून-व्यवस्था का नियंत्रण भाजपा के हाथ आने के बाद पार्टी अब प्रशासनिक ताकत का भी सीधा हिस्सा बन गई है। हालांकि यह विभाग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा छोड़े जाने और भाजपा के हाथ आने को लेकर सियासी गलियारों में कानाफूसी होने लगी है। दरअसल, गृह विभाग को मुख्यमंत्री का सबसे महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो माना जाता है, जिसे वह हमेशा अपने पास रखते आए थे। लेकिन इस फैसले को एक बड़े राजनीतिक पुनर्गठन के संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जो राज्य की प्रशासनिक और सत्ता संरचना में आने वाले बड़े परिवर्तनों तैयारी की तरफ इशारा करता है।
सियासी गलियारे में चल रही चर्चाओं के अनुसार गृह विभाग को सम्राट चौधरी को सौंपने के साथ ही सत्ता के भौगोलिक केंद्र में भी बदलाव की अटकलें लगाई जा रही हैं। पारंपरिक रूप से, गृह विभाग की कमान संभालने वाला व्यक्ति ही राज्य की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था और खुफिया तंत्र का सीधा नियंत्रण रखता है।
अब तक यह नियंत्रण मुख्यमंत्री आवास से संचालित होता था, लेकिन अब यह माना जा रहा है कि सम्राट चौधरी का सरकारी आवास इस महत्वपूर्ण प्रशासनिक शक्ति का नया केंद्र बनेगा। यह बदलाव न केवल विभागों का हस्तांतरण है, बल्कि उपमुख्यमंत्री की भाजपा के भीतर बढ़ते कद और सरकार में उनकी अहमियत को भी दिखाता है।
सूत्रों की मानें तो भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा जदयू और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से गहन चर्चा की गई। इसमें अहम भूमिका भाजपा के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े के साथ-साथ बिहार में भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान की अहम भूमिका रही। सूत्रों की मानें तो धर्मेंद्र प्रधान का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बेहद नजदीकी रिश्ता रहा है।
ऐसे में उनके द्वारा यह प्रस्ताव भेजा गया। लेकिन बात ज्यादा नहीं बनते देख भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसमें अहम भूमिका निभाते हुए जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा और केन्द्रीय मंत्री एवं जदयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह से इस पर गहन चर्चा की।
इसके बाद उन दोनों नेताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इसपर चर्चा की। सूत्रों की मानें तो काफी मंथन और मान मनौव्वल के बाद यह तय किया गया कि गृह विभाग अगर दिया जायेगा तो भाजपा को वित्त विभाग को जदयू के लिए छोडना होगा। बता दें कि एनडीए शासनकाल में वित्त मंत्रालय भाजपा के जिम्मे ही रहा था।
इसके बाद इसपर सहमति बनाई गई कि भाजपा को गृह विभाग की जिम्मेवारी दे दी जाए और वित्त मंत्रालय जदयू कोटे में आ जाए। सियासत के जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार खुद को हर रोज के प्रशासन के बोझ से खुद को हल्का करना भी चाहते थे, वहीं दूसरी तरफ यह जिम्मेवारी भाजपा के जिम्मे सौंपकर सारी कहासुनी से मुक्ति भी पा लिया।
दरअसल, हाल के दिनों में बढ़ती आपराधिक घटनाओं के कारण विपक्ष लगातार हमलावर बना हुआ था। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर प्राय: प्रतिदिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए बिमार तक कह दिया करते थे। ऐसे में रोज के किचकिच से दूर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब अपना ध्यान दूसरी विकासात्मक कार्यों पर ध्यान देंगे।
अब होने वाली आपराधिक घटनाओं के लिए भाजपा और सम्राट चौधरी को जिम्मेदार ठहराया जायेगा। जानकारों की मानें तो यह कदम एक ऐसी व्यवस्था की ओर इशारा करता है, जहां मुख्यमंत्री अपनी प्रशासनिक शक्तियों को साझा करते हुए गठबंधन के सहयोगी को अधिक विश्वास दे रहे हैं।
वैसे इसका इशारा खुद केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सम्राट चौधरी के चुनाव प्रचार के दौरान उनके क्षेत्र तारापुर के लोगों को यह कह कर दिया था कि इनको आप जिताएं, इनको बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी। सूत्रों की मानें तो अमित शाह ने साफ-साफ निर्देश दिया है कि कानून-व्यवस्था की स्थिति पर कड़ाई से काम किया जाए ताकि आपराधिक घटनाओं पर अंकुश लग सके।
जानकारों के अनुसार सम्राट चौधरी की नियुक्ति से पार्टी को ओबीसी वोट बैंक मजबूत करने, अपने प्रशासनिक भरोसे को साबित करने और भविष्य के बड़े नेतृत्व की तैयारी करने का मौका मिला है। ओबीसी समीकरण साधने में सम्राट की भूमिका निर्णायक मानी जा रही है।
गृह विभाग मिलने के बाद वे अब कानून-व्यवस्था और पुलिस प्रशासन के सबसे प्रभावशाली पद पर काबिज हो गए हैं। कोइरी समुदाय से आने वाले सम्राट चौधरी को भाजपा ने अपने विस्तार का प्रमुख चेहरा बनाया है। 57 वर्षीय सम्राट चौधरी की पुलिस प्रशासन, कानून-व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अब सीधे उनकी पकड़ होगी।
भाजपा के लिए यह सिर्फ एक मंत्रालय नहीं, बल्कि राज्य में अपना राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम है। बता दें कि मुंगेर जिले में मूंजर के लखनपुर गांव से आने वाले सम्राट चौधरी की राजनीति की शुरुआत 1990 में लालू प्रसाद की पार्टी राजद से हुई। उनके पिता शकुनी चौधरी भी तारापुर से कई बार विधायक रहे और क्षेत्रीय राजनीति में एक चेहरे के रूप में स्थापित थे।
1999 में सम्राट अपने राजनीतिक करियर की पहली बड़ी सीढ़ी चढ़ते हुए राबड़ी देवी सरकार में कृषि मंत्री बने, वह भी तब जब वे न तो विधायक थे और न ही एमएलसी, लेकिन मंत्री बनने के साथ ही उन पर आयु संबंधी विवाद खड़ा हो गया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 1995 के तारापुर विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी सच्चिदानंद सिंह और उनके साथियों की ग्रेनेड हमले में मौत एक बड़ा विवाद बना।
सम्राट चौधरी और उनके पिता पर आरोप लगे, लेकिन सबूत न मिलने पर मामला बंद हो गया। यह विवाद 2025 के चुनाव में फिर उठा, जब प्रशांत किशोर ने आरोप लगाया कि सम्राट ने अपने नाबालिग होने का दावा कर बेल कराने के लिए उम्र गलत बताई थी। चौधरी ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि न तो उन्हें कभी चार्जशीट किया गया और न अदालत ने नाबालिग होने का दावा माना।
उन्होंने शैक्षणिक योग्यता पर उठाए गए सवालों को भी बेबुनियाद बताया और कहा कि उन्होंने कामराज यूनिवर्सिटी से ‘प्री-फाउंडेशन कोर्स’ किया है और 2019 में उन्हें डॉक्टरेट की मानद डिग्री मिली। 1999 के इस्तीफे के बाद 2000 में वे परबत्ता सीट से राजद के टिकट पर विधायक बने। पार्टी में उनकी पकड़ बढ़ी और 2010 में वे पार्टी के चीफ व्हिप बने। लेकिन 2014 में उन्होंने अचानक राजद छोड़ दिया और नीतीश कुमार की जदयू में शामिल हो गए।
यही नहीं, उन्होंने 13 राजद विधायकों को भी जदयू में ले जाने का दावा किया, जिससे उन्हें बिहार की राजनीति में मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट माना जाने लगा। जीतन राम मांझी की सीएम अवधि में वे शहरी विकास मंत्री बने। 2017 में वे भाजपा में शामिल हुए और यहां उनकी तेजी से पदोन्नति शुरू हुई। वे राज्य उपाध्यक्ष बने, फिर 2022 में बिहार विधान परिषद में विपक्ष के नेता और 2023 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बन गए।