Bharat Bandh Live: 21 अगस्त 2024 को पूरे देश में दलित और आदिवासी संगठनों द्वारा भारत बंद आंदोलन किया जा रहा है। इस आंदोलन को बड़े स्तर पर सफल बनाने के लिए पूरे देश में अलग-अलग संगठन मोर्चा संभाले हुए हैं। प्रदर्शनकारियों का कई विपक्षी दलों ने भी समर्थन किया है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस, जेएमएम, बीएसपी, समाजवादी पार्टी और आरजेडी समेत कई पार्टियों ने भारत बंद को खुले तौर पर अपना समर्थन दिया है। ऐसे में केंद्र की बीजेपी सरकार के लिए यह नुकसानदेय प्रदर्शन साबित हो सकता है।
क्यों हो रहा आंदोलन?
वैसे तो दलित समुदाय का यह आंदोलन SC-ST एक्ट के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हो रहा। इसी साल, 1 अगस्त को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आगे उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जा सकती है ताकि इन समूहों के भीतर अधिक पिछड़ी जातियों के लिए कोटा सुनिश्चित किया जा सके। शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि राज्य एससी/एसटी के भीतर उन उप-समूहों के लिए आरक्षण को प्राथमिकता दे सकते हैं जो अधिक वंचित हैं।
बीजेपी सरकार को इससे कितना नुकसान?
मनीकंट्रोल की एक खबर के अनुसार, इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा का प्रदर्शन बहुत उत्साहजनक नहीं रहा। हारी हुई 92 सीटों में से 29 एससी और एसटी के लिए आरक्षित थीं, जो इन समुदायों के समर्थन में उल्लेखनीय गिरावट को दर्शाता है। लोकसभा चुनावों से पहले, विपक्ष ने पूरे भारत में एक राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की मांग करते हुए एक अभियान चलाया था। अभियान में यह भी कहा गया कि अगर भाजपा बहुमत के साथ वापस आती है तो वह संविधान के लिए खतरा बन जाएगी। विपक्ष को चुप कराने की रणनीति नहीं खोज पाने के कारण भाजपा को 2014 से दलितों और ओबीसी के बीच अपने वोट बैंक को नुकसान पहुंचा है। फैसले के बाद भाजपा ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के एससी/एसटी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि अदालत की टिप्पणियों पर कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। मंगलवार को केंद्र ने सहयोगी दलों और कांग्रेस के विरोध के बीच नौकरशाही में लेटरल एंट्री के जरिए 45 नौकरियों के लिए यूपीएससी विज्ञापन को वापस लेने का निर्देश दिया।
गौरतलब है कि एससी/एसटी कोटे से "क्रीमी लेयर" को बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने विवाद को जन्म दिया है और बंद के इस आह्वान को जन्म दिया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (एनएसीडीएओआर) ने मांगों की एक सूची जारी की है। इसकी एक मांग यह है कि केंद्र को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर देना चाहिए। संगठन के अनुसार, यह फैसला एससी और एसटी के संवैधानिक अधिकारों को खतरे में डालता है। संगठन ने सरकार से एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर एक नया कानून बनाने का आह्वान किया है, जिसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करके संरक्षित किया जाएगा। नौवीं अनुसूची में शामिल केंद्रीय और राज्य कानूनों को अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती।
ऐसे में सरकार के खिलाफ और जनता के साथ खड़े होने का विपक्ष को मौका मिला है। ऐसे में झारखंड में कांग्रेस इकाई और सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और वाम दलों ने हड़ताल का समर्थन करने का फैसला किया है। झारखंड, जहां बड़ी आदिवासी आबादी है, में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सीपीआई (एम) ने फैसले का समर्थन किया, लेकिन एससी और एसटी कोटे के भीतर "क्रीमी लेयर" की शुरूआत के लिए अपने विरोध को दोहराया।