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पश्चिम बंगाल, असम में तीसरे चरण और केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी की सभी सीटों पर मतदान, जानें सबकुछ

By सतीश कुमार सिंह | Published: April 05, 2021 8:26 PM

assembly election 2021: निर्वाचन आयोग ने पश्चिम बंगाल की उन सभी 31 विधानसभा सीटों पर धारा 144 लागू की, जहां बुधवार को मतदान होगा। 

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ठळक मुद्देतृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं सांसद अभिषेक बनर्जी के डायमंड हार्बर लोकसभा क्षेत्र पर सभी की नजर होगी।दक्षिण 24 परगना और हुगली जिलों के कई क्षेत्रों में दबदबा है।तृणमूल के अल्पसंख्यक वोटों में सेंधमारी भांपकर पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने आईएसएफ को निशाने पर ले रखा है।

assembly election 2021: पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के तहत कल मंगवार को पश्चिम बंगाल और असम में तीसरे चरण और केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी की सभी सीटों पर मतदान होगा।

पश्चिम बंगाल में तीसरे चरण में तीन जिलों की 31 सीटों पर मतदान होना है। यहां कुल 8 चरणों में वोट पड़ेंगे। वहीं असम का यह तीसरा और अंतिम चरण है। यहां इस आखिरी चरण में कुल 40 सीटों पर प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में कैद हो जाएगा।

 इसके अलावा केरल की 140 सीटों, तमिलनाडु की 234 सीटों और पुडुचेरी की 30 सीटों के लिए एक ही चरण में वोट पड़ेंगे। सभी राज्यों के परिणाम एकसाथ दो मई को घोषित किए जाएंगे। पांचों राज्यों मेंसभी राजनीतिक दल पूरा दमखम लगाए हुए हैं लेकिन सभी का ध्यान पश्चिम बंगाल में जारी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में जारी टक्कर पर टिका हुआ है। यह दोनों ही दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है।

बंगाल में तीसरे चरण के चुनाव की तैयारी पूरी, 31 सीटों पर 205 उम्मीदवार मैदान में

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में मंगलवार को 31 सीटों पर होने वाले मतदान की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। जहां भाजपा सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का किला ध्वस्त करने में जुटी है, वहीं वाममोर्चा-आईएसएफ-कांग्रेस गठबंधन को इन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है, जहां अस्मिता की राजनीति की जड़ें गहरी हुई हैं।

इस चरण में 78.5 लाख से अधिक पंजीकृत मतदाता हैं, जिन्हें 205 उम्मीदवारों के राजनीतिक तकदीर का फैसला करना है। उनमें भाजपा के राज्यसभा सदस्य स्वप्न दासगुप्ता, तृणमूल कांग्रेस के मंत्री आशिमा पात्रा, माकपा नेता कांति गांगुली प्रमुख नेता हैं। शांतिपूर्ण मतदान सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गये हैं तथा उसके वास्ते केंद्रीय बलों की 618 कंपनियों को 10871 मतदान केंद्रों पर तैनात किया गया है। चुनाव आयोग ने सारे मतदान केंद्रों को ‘संवेदनशील’ के रूप में पहचान की है।

केंद्रीय बलों की मदद के लिए राज्य पुलिस बलों को भी रणनीतिक स्थानों पर तैनात किया जाएगा। राज्य में कोविड-19 की स्थिति खराब होने के मद्देनजर इस चरण में सभी 31 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान स्वास्थ्य नियमों का कड़ाई से पालन कराकर कराया जाएगा। इन 31 विधानसभा क्षेत्रों में 16 दक्षिण 24 परगना (पार्ट टू), सात हावड़ा (पार्ट वन) और आठ हुगली (पार्ट वन) में हैं। राज्य में 2016 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने इन 31 में से 30 सीटें जीती थीं और कांग्रेस हावड़ा जिले की अमता विधानसभा सीट ही जीत पायी थी।

तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव के लिये प्रचार अभियान समाप्त हुआ

तमिलनाड में छह अप्रैल को होने जा रहे विधानसभा चुनाव के वास्ते रविवार शाम सात बजे चुनाव प्रचार थम गया। यह चुनाव तय करेगा कि क्या सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक की लगातार तीसरी बार राज्य की सत्ता में वापसी होगी या फिर एक दशक बाद द्रमुक सत्ता में लौटेगी। चुनाव आयोग ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान 428 करोड़ रुपये के मूल्य सामान एवं नकद जब्त किये गये।

इस चुनाव में मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी, उपमुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम, द्रमुक अध्यक्ष एम के स्टालिन, एएमएमके संस्थापक टी टी वी दिनाकरण, अभिनेता एवं मक्कल नीधि मय्यम (एमएनएम) के संस्थापक कमल हासन , नाम तमीझार काच्ची के नेता सीमान और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एल मुरूगन समेत 3998 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। प्रचार के आखिरी दिन पलानीस्वामी और स्टालिन ने पूरी ताकत झोंक दी।

पलानीस्वामी अपनी पार्टी को लगातार तीसरी बार सत्ता में लाने जबकि स्टालिन द्रमुक की एक दशक बाद राज्य की सत्ता में वापसी के प्रयास में लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई केंद्रीय नेताओं ने क्रमश: सत्तारूढ़ एवं विपक्षी गठबंधनों के पक्ष में प्रचार किया।

राज्य में 6.28 लाख से अधिक मतदाता है। विधानसभा की 234 सीटों के लिए 3998 उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में ताल ठोक रहे हैं। अपनी आखिरी अपील में पलानीस्वामी ने ‘अम्मा शसन’ की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए वोट मांगा। उनकी पार्टी भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा है। द्रमुक नेता स्टालिन ने मतदाताओं से पार्टी नीत सेकुलर प्रोग्रेसिव एलायंस के लिए एक मौका मांगा। द्रमुक 2011 से विपक्ष में है।

अभूतपूर्व चुनाव प्रचार के बाद मंगलवार को होने वाले केरल विधानसभा चुनाव की तैयारी पूरी

हफ्तों तक चले जबर्दस्त प्रचार अभियान, ताबड़तोड़ रैलियों और विशाल रोड शो के बाद केरल में मंगलवार को चुनाव होने जा रहा है, जहां 2.74 करोड़ मतदाता राज्य विधानसभा की 140 सीटों के लिए चुनाव मैदान में उतरे 957 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य के कुल मतदाताओं में 1,32,83,724 पुरुष, 1,41,62,025 महिला और 290 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। रविवार को प्रचार अभियान के समाप्त होने के बाद इस दक्षिणी राज्य में अब प्रत्याशी और पार्टी कार्यकर्ता घर-घर जाकर आखिरी मिनट में अपने लिए वोट मांग रहे हैं। परंपरागत गठबबंधन- माकपा नीत लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के कई मौजूदा विधायक छह अप्रैल को होने जा रहे चुनाव में फिर से जीत पाने की उम्मीद में हैं।

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, स्वास्थ्य मंत्री के के शैलजा, देवस्वओम मंत्री कडकमपल्ली सुरेंद्रन, ऊर्जा मंत्री एम एम मणि और उच्च शिक्षा मंत्री के के जलील उन प्रमुख हस्तियों में शामिल हैं, जो सत्तारूढ़ पक्ष से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यूडीएफ से मैदान में उतरे प्रमुख विपक्षी नेताओं में रमेश चेन्नीथला, पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी, वरिष्ठ नेता - के मुरलीधरण, पी टी थॉमस और तिरुवंचूर राधाकृष्णन शामिल हैं। यह चुनाव भाजपा के भी कई नेताओं के लिए अहम है जिनमें मिजोरम के पूर्व राज्यपाल के राजशेखरन, हाल में भगवा पार्टी में शामिल हुए ‘मेट्रोमेन’ ई श्रीधरण, प्रदेश अध्यक्ष के सुरेंद्रन, वरिष्ठ नेता शोभा सुरेंद्रन, राज्यसभा के सदस्य - सुरेश गोपी और के जे अल्फोंस समेत अन्य के नाम शामिल हैं।

छह अप्रैल को होने वाले चुनाव केरल कांग्रेस (एम) के अध्यक्ष जोस के मणि के लिए भी इतना ही महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने हाल ही में यूडीएफ के साथ दशकों पुराना संबंध तोड़कर वाम मोर्चे के साथ हाथ मिला लिया है। यह चुनाव व्यक्तिगत तौर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए भी निर्णायक परीक्षा साबित होगा क्योंकि वह कई दिनों तक राज्य में रहे और यूडीएफ के लिए उन्होंने पूरे केरल में रैलियां कीं और कई बैठकों में हिस्सा लिया। सत्तारूढ़ एलडीएफ हर पांच साल में यूडीएफ-एलडीएफ की सरकार बदल जाने के राज्य के करीब चार दशक पुराने चलन को तोड़ते हुए लगातार दूसरी बार सत्ता में आने की उम्मीद कर रही है।

(इनपुट एजेंसी) 

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