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एम्स ने जयललिता के इलाज में हुई लापरवाही के आरोपों को किया खारिज, कहा, "चेन्नई अपोलो में एकदम सही इलाज किया था"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: August 21, 2022 17:24 IST

तमिलनाडु की दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के इलाज में हुई कथित लापरवाही की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गठित एम्स से मेडिकल बोर्ड ने कहा है कि चेन्नई अपोलो ने जयललिता का एकदम सही इलाज किया था और अस्पताल ने उनके इलाज में कोई चूक नहीं की थी।

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ठळक मुद्देएम्स के मेडिकल बोर्ड ने कहा कि चेन्नई अपोलो ने जयललिता के इलाज में कोई चूक नहीं की थीअपोलो ने पूर्व सीएम जे जयललिता का इलाज सही चिकित्सा पद्धति से किया था जयललिता जब अस्पताल में भर्ती हुई थीं तो उन्हें दिल की समस्या थी और मधुमेह भी अनियंत्रित था

चेन्नई: तमिलनाडु की दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के इलाज में हुई कथित लापरवाही के आरोपों की जांच करने वाले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मेडिकल बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि चेन्नई अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने जयललिता के इलाज में कोई चूक नहीं की थी और और उन्हें सही दवाई और चिकित्सा दी जा रही थी।

अंग्रेजी समाचार पत्र हिंदोस्तान टाइम्स के मुताबिक जयललिता के इलाज की कथित लापरवाही के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने एम्स से मेडिकल बोर्ड बनाकर इस मामले में रिपोर्ट पेश करने के लिए आदेश दिया था। एम्स ने जयललिता के इलाज के संबंध में पूरी जांच करते बीते 4 अगस्त को रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे शनिवार को पब्लिक किया गया।

इस रिपोर्ट में कहा गया है, “पूर्व सीएम जे जयललिता का इलाज चेन्नई के अपोलो ने सही चिकित्सा पद्धति से किया था और उनका देखभाल में कहीं कोई खामी नहीं पाई गई है। मेडिकल रिकॉर्ड के आधार पर पता चलता है कि श्वसन संक्रमण के साथ बैक्टेरिमिया और सेप्टिक शॉक का भी लास्ट ट्रीटमेंट किया गया था।”

रिपोर्ट में बताया गया है कि जयललिता को जब अस्पताल में भर्ती किया गया तो उनका दिल ठीक से काम नहीं कर रहा था और अनियंत्रित मधुमेह की भारी समस्या थी। इसके साथ ही एम्स के मेडिकल पैनल ने कहा कि वह जयललिता के लास्ट ट्रीटमेंट से पूरी तरह से सहमत है।

मालूम हो कि तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता की तबियत खराब होने पर उन्हें 22 सितंबर 2016 को चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था, वह वह 75 दिनों तक डॉक्टरों की निगरानी में रहीं और वहां पर 5 दिसंबर को उनका निधन हुआ था।

जयललिता के निधन के मामले में 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि चेन्नई के अपोलो अस्पताल में 5 दिसंबर को जयललिता की हुई मौत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट तीन सेवारत या सेवानिवृत्त जजों का एक पैनल बनाए।

इस संबंध में चेन्नई के एक वकील पीए जोसेफ ने वकील शिवबाला मुरुगन के जरिये एक याचिका दायर करते हुए लगभग तीन सप्ताह पहले मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कोर्ट ने अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा हाईकोर्ट के पूर्व जज ए अरुमुघस्वामी के नेतृत्व में बनाई कमेटी में कोई खामी नहीं पाई थी।

जोसेफ ने अपने याचिका में तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने जांच आयोग अधिनियम, 1952 की गलत व्याख्या की, जो इस तरह की कमेटी के गठन के लिए विधायिका के प्रस्ताव से होना ताहिए, जबकि इसके लिए कोई भी विधायी मंजूरी प्राप्त नहीं की गई और द्रमुक सरकार ने अपने दम पर आयोग का गठन कर दिया था।

जबकि हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार ने एक सदस्यीय आयोग का गठन सही ढंग से किया था और जैसा कि जोसेफ दावा कर रहे हैं, सरकार को ऐसी किसी विधायी मंजूरी की कोई आवश्यकता नहीं थी।

जोसेफ के मुताबिक जयललिता को 22 सितंबर, 2016 को बुखार और डिहाइड्रेशन के कारण चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल ने उनके भर्ती होने के कुछ ही दिनों के बाद बयान जारी करके कहा कि उन्हें निगरानी में रखा गया था और अब उन्हें बुखार नहीं है। जयललिता अस्पताल में "सामान्य आहार" पर चल रही थीं।

इसके अलावा वो अन्नाद्रमुक मंत्रियों और अस्पताल अधिकारियों के बार-बार दिए गए बयानों का भी हवाला दिया कि जयललिता को अस्पताल से कुछ ही दिनों में छुट्टी दे दी जाएगी और वो जल्द वो सामान्य जीवन शुरू कर देंगी। लेकिन ऐसे तमाम बयानों के बावजूद 5 दिसंबर को उनका निधन हो गया।

मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर 2021 को अपोलो अस्पताल को उनकी मौत की जांच कर रहे (सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति ए अरुमुघस्वामी आयोग की सहायता के लिए एम्स को आदेश जारी किया कि वो एक मेडिकल बोर्ड बनाये और इस मामले की जांच करें।

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