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'अगर ज़ुल्म हुआ तो जिहाद होगा': जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रेसिडेंट मौलाना महमूद मदनी यह कहकर विवाद खड़ा किया

By रुस्तम राणा | Updated: November 29, 2025 21:21 IST

मदनी ने आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद और तीन तलाक मामलों सहित हाल के कोर्ट के फैसलों से पता चलता है कि ज्यूडिशियरी “सरकारी दबाव में” काम कर रही है। उन्होंने दावा किया कि हाल के सालों में “ऐसे कई फैसले” सामने आए हैं जिन्होंने “संविधान में गारंटी वाले माइनॉरिटीज़ के अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया है।”

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ठळक मुद्देमौलाना मदनी ने कहा, न्यायलय “सरकारी दबाव में” काम कर रही हैउन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट तभी तक 'सुप्रीम' कहलाने का हकदार है, जब तक वहां संविधान सुरक्षित हैबता दें कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद भारत के सबसे पुराने और सबसे असरदार इस्लामिक संगठनों में से एक है

नई दिल्ली: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रेसिडेंट मौलाना महमूद मदनी ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि “अगर ज़ुल्म होगा, तो जिहाद होगा,” यह बयान उन्होंने न्यायपालिका पर अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने में नाकाम रहने का आरोप लगाते हुए दिया। उनकी इस बात पर बीजेपी ने तीखी राजनीतिक प्रतिक्रिया दी है, जिसने उन पर मुसलमानों को भड़काने और कॉन्स्टिट्यूशनल संस्थाओं को चुनौती देने का आरोप लगाया है।

मदनी ने आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद और तीन तलाक मामलों सहित हाल के कोर्ट के फैसलों से पता चलता है कि न्यायलय “सरकारी दबाव में” काम कर रही है। उन्होंने दावा किया कि हाल के सालों में “ऐसे कई फैसले” सामने आए हैं जिन्होंने “संविधान में गारंटी वाले माइनॉरिटीज़ के अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया है।”

जमीयत उलेमा-ए-हिंद भारत के सबसे पुराने और सबसे असरदार इस्लामिक संगठनों में से एक है। इसकी स्थापना 1919 में जाने-माने देवबंदी विद्वानों ने मुस्लिम सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक चिंताओं को रिप्रेजेंट करने के लिए की थी। यह संगठन मुस्लिम कल्याण, शिक्षा, कानूनी अधिकारों और धार्मिक मार्गदर्शन से जुड़े मुद्दों पर काम करता है, साथ ही नागरिकता, अल्पसंख्यक अधिकारों और सेक्युलरिज़्म पर राष्ट्रीय बहसों में भी शामिल होता है।

'अगर... तो टॉप कोर्ट सुप्रीम होने का हकदार नहीं है'

1991 के पूजा स्थल एक्ट के बावजूद चल रहे मामलों का ज़िक्र करते हुए मदनी ने कहा कि इस तरह की घटनाएं संवैधानिक बदलावों को दिखाती हैं। उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट तभी तक 'सुप्रीम' कहलाने का हकदार है, जब तक वहां संविधान सुरक्षित है। अगर ऐसा नहीं होता है, तो यह बाकी दुनिया में भी सुप्रीम कहलाने का हकदार नहीं है।"

मदनी ने भारत में मुसलमानों को लेकर लोगों की भावना का भी आकलन किया और कहा कि 10 प्रतिशत लोग उनके साथ हैं, 30 प्रतिशत उनके खिलाफ हैं, जबकि 60 प्रतिशत चुप हैं। उन्होंने मुसलमानों से इस चुप रहने वाली बड़ी आबादी से सक्रिय रूप से जुड़ने का आग्रह किया। उन्होंने चेतावनी दी, “उन्हें अपने मुद्दे समझाएं। अगर ये 60 प्रतिशत लोग मुसलमानों के खिलाफ हो गए, तो देश में बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा।”

‘जिहाद पवित्र था और हमेशा रहेगा’

सार्वजनिक बातचीत में जिहाद को जिस तरह से दिखाया जाता है, उस पर आपत्ति जताते हुए, मदनी ने मीडिया और सरकार पर एक पवित्र सोच को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया। उन्होंने “लव जिहाद,” “थूक जिहाद,” और “लैंड जिहाद” जैसे लेबल के इस्तेमाल की आलोचना करते हुए कहा कि ये असली मतलब को गलत तरीके से दिखाते हैं।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “जिहाद पवित्र था और हमेशा रहेगा,” और कहा कि धार्मिक किताबों में जिहाद का ज़िक्र सिर्फ़ “दूसरों की भलाई और बेहतरी के लिए” किया गया है। अपने विवादित बयान को दोहराते हुए उन्होंने कहा, “अगर ज़ुल्म होगा, तो जिहाद होगा।”

हालांकि, मदनी ने साफ किया कि भारत का सेक्युलर डेमोक्रेटिक ढांचा किसी भी हिंसक मतलब की इजाज़त नहीं देता। उन्होंने कहा, “यहां मुसलमान संविधान के प्रति वफ़ादारी दिखाते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना सरकार की ज़िम्मेदारी है और “अगर सरकार ऐसा नहीं करती है, तो सरकार ज़िम्मेदार है।”

वंदे मातरम पर मदनी

मदनी ने वंदे मातरम पर अपनी बात से भी बहस छेड़ दी। उन्होंने कहा, “एक मरी हुई कौम सरेंडर कर देती है। अगर वे कहते हैं ‘वंदे मातरम कहो,’ तो वे इसे पढ़ना शुरू कर देंगे। यह एक मरी हुई कौम की पहचान होगी। अगर हम एक ज़िंदा कौम हैं, तो हमें हालात का सामना करना होगा।”

टॅग्स :Jamiat Ulema-e-HindislamIslamic
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