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सोशल मीडिया, ओटीटी, वीडियो और ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्चों के लिए बेहद खतरनाक: सर्वे

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: September 22, 2023 09:51 IST

सामुदायिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकलसर्कल्स के सर्वे में यह बात सामने आयी है कि मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से बच्चों में आक्रामकता, आलसी या उदासी बढ़ गई है।

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ठळक मुद्देमोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से बच्चों में आक्रामकता, आलसी या उदासी बढ़ गई हैबच्चे मोबाइल पर ज्यादातर समय सोशल मीडिया, ओटीटी और ऑनलाइन गेमिंग में बिता रहे हैंबच्चों में मोबाइल की लत विशेष रूप से पोस्ट-कोविड लॉकडाउन के दौरान शुरू हुई

नई दिल्ली: तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में मोबाइल इंसानी जिंदगी का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है लेकिन अब इसी मोबाइल को लेकर हुए एक सर्वे में खुलासा हुआ है कि यह बच्चों के लिए भारी अभिशाप बनता जा रहा है।

भारत के अग्रणी सामुदायिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकलसर्कल्स के सर्वे में यह बात सामने आयी है कि मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से बच्चों में आक्रामकता, आलसी या उदासी बढ़ गई है क्योंकि मोबाइल पर अपना ज्यादा समय सोशल मीडिया, ओटीटी और ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म पर बिताते हैं और इसके आदी हो चुके हैं।

समाचार वेबसाइट 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार देश के 296 जिलों में 46,000 से अधिक लोगों पर किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि भारत में लगभग 61 प्रतिशत शहरी माता-पिता ने बताया है कि उनका बच्चा सोशल मीडिया पर अत्यधिक समय बिताता है और उसमें न केवल आक्रामकता बल्कि अधीरता और अति सक्रियता के लक्षण भी दिखाई देते हैं बल्कि एकाग्रता की भारी कमी नजर आ रही है।

सर्वे के अनुसार सोशल मीडिया के असीमित इस्तेमाल से बच्चे पर दीर्घकालिक असर पड़ने का डर है। 73 फीसदी माता-पिता, जो कि ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में और यहां तक ​​कि टियर-3 शहरों में रहते हैं।

उनका मानना है कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल नेटवर्किंग में शामिल होने के लिए माता-पिता की सहमति सुनिश्चित की जाए और ऑनलाइन मीडिया, ओटीटी, वीडियो और ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म के लिए अनिवार्य रूप से डेटा संरक्षण कानून बनाया जाए।

सर्वेक्षण में पाया गया कि बच्चों में मोबाइल की लत विशेष रूप से पोस्ट-कोविड लॉकडाउन के दौरान शुरू हुई, जब स्कूल बंद थे और बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे। हालांकि कोविड के बाद साल 2022 की शुरुआत से बच्चे स्कूलों में वापस जाने लगे, लेकिन उसके बाद भी मनोरंजक गतिविधियों के लिए उनका इंटरनेट उपयोग लगातार बढ़ता गया है।

सर्वे में बताया गया है कि शहरी इलाकों में रहने वाले बच्चे वीडियो देखने, अपनी पसंदीदा ऑनलाइन गेमिंग या फिर दोस्तों के साथ जुड़ेने के लिए माता-पिता से घर पर मोबाइल जैसे अन्य इलेक्ट्रानिक गैजेट की एक्सेस करने की मांग करते हैं। 9-18 वर्ष की आयु के बच्चों में गैजेट की लत बेहद ज्यादा बढ़ गई है। इस कारण उनमें अधीरता और आक्रामकता, एकाग्रता की कमी, याददाश्त संबंधी समस्याएं, सिरदर्द, आंख और पीठ की समस्याएं, तनाव, चिंता, सुस्ती और यहां तक ​​​​कि अवसाद की समस्याएं भी देखने को मिल रही हैं।

शहरी क्षेत्रों में रहने वाले कई माता-पिता ने इस बात को स्वीकार किया है कि वे अपने बच्चों द्वारा उपयोग किए जा रहे विभिन्न सोशल मीडिया और गेमिंग ऐप्स से अनजान हैं। लोकलसर्कल्स के संस्थापक सचिन टापरिया के अनुसार सरकार नए डिजिटल निजी डेटा संरक्षण कानून को लागू कर रही है, जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों द्वारा उपयोग किए जाने वाले ऐप्स के लिए माता-पिता की सहमति लेना अनिवार्य होगा।

उन्होंने कहा, "हालांकि, सोशल प्लेटफ़ॉर्म इस तरह की एज-ग्रेडिंग को लागू करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और सरकार के साथ काम करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।"

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