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कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, 'प्रधानमंत्री के खिलाफ बोले गये अपशब्द अपमानजनक हो सकते हैं, लेकिन उससे देशद्रोही नहीं होता'

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: July 7, 2023 14:11 IST

कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि यदि प्रधानमंत्री के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया जाता है तो उसे अपमानजनक श्रेणी में रखा जा सकता है लेकिन उन अपशब्दों को देशद्रोह नहीं माना जा सकता है।

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ठळक मुद्देकर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि पीएम के खिलाफ अपशब्द कहना देशद्रोह नहीं माना जा सकता हैहाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक स्कूल प्रबंधन के खिलाफ दर्ज देशद्रोह के मामले को रद्द कर दियापीएम के खिलाफ प्रयोग किये गये अपशब्द गैरजिम्मेदाराना हो सकते हैं लेकिन वो देशद्रोह नहीं है

बेंगलुरु:कर्नाटक हाईकोर्ट ने आज एक केस की सुनवाई करते हुए बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और कहा कि यदि प्रधानमंत्री के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया जाता है तो उसे अपमानजनक श्रेणी में रखा जा सकता है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं निकाला जा सकता है कि अपशब्द का प्रयोग करने वाले देशद्रोह किया है। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक स्कूल प्रबंधन के खिलाफ देशद्रोह के मामले को रद्द कर दिया।

हाईकोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री के खिलाफ इस्तेमाल किए गए अपशब्द को निश्चित तौर पर अपमानजनक और गैरजिम्मेदाराना माना जा सकता है लेकिन यह देशद्रोह कतई नहीं है। कर्नाटक हाईकोर्ट की कलबुर्गी बेंच में जस्टिस हेमंत चंदनगौदर ने बीदर के शाहीन स्कूल के प्रबंधन में शामिल व्यक्तियों अलाउद्दीन, अब्दुल खालिक, मोहम्मद बिलाल इनामदार और मोहम्मद महताब के खिलाफ बीदर के न्यू टाउन पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज की गई देशद्रोह की एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया।

अदालत ने कहा कि इस केस में आरोपियों के खिलाफ कहीं भी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 (ए) (धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य पैदा करना) के तत्व नहीं पाए गये हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि उनके खिलाफ लगाई गई धाराएं अनुचित हैं और उन्हें तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाता है।

कोर्ट ने अपने आदेश की व्याख्या करते हुए कहा कि 'प्रधानमंत्री को जूते से मारना चाहिए, न केवल अपमानजनक है बल्कि बेहद गैर-जिम्मेदाराना भी है'। जस्टिस चंदनगौदर ने कहा, "देश के हर नागरिक को सरकार की नीति की रचनात्मक आलोचना की पूरी अनुमति है, लेकिन नीतिगत निर्णय लेने के लिए संवैधानिक पद पर बैठे लोगों का अपमान नहीं किया जा सकता है।"

जस्टिस चंदनगौरा ने आगे कहा कि हालांकि यह आरोप लगाया गया है कि बच्चों द्वारा प्रस्तुत किये गये नाटक में सरकार के विभिन्न अधिनियमों की आलोचना की गई थी और ऐसा कहा गया है कि यदि वे अधिनियम लागू हो जाएं तो मुसलमानों को देश छोड़ना पड़ सकता है। जज ने कहा, "यह एक नाटक था और वो भी स्कूल परिसर के भीतर खेला गया था और उसमें बच्चों द्वारा लोगों को हिंसा के लिए उकसाने या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने के लिए कोई शब्द भी नहीं बोले गए थे।''

हाईकोर्ट ने कहा कि यह नाटक तब सार्वजनिक हुआ जब एक आरोपी ने इसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया। इसलिए किसी भी स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोपियों ने सरकार के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाने या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने के इरादे से यह नाटक किया था। इसलिए यह अदालत जरूरी साक्ष्यों के अभाव में धारा 124 ए (देशद्रोह) और धारा 505 (2) के तहत दर्ज किये गये अपराध के एफआईआर को फौरन रद्द करती है।

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