9 लाख सीनियर सिटिजन ने सिर्फ 3 महीने में बचाए इंडियन रेलवे के 40 करोड़, लेकिन कैसे?
By आदित्य द्विवेदी | Published: December 16, 2017 03:52 PM2017-12-16T15:52:01+5:302018-11-28T09:37:20+5:30
2016 में इंडियन रेलवे ने 'सब्सिडी-छोड़ो' स्कीम लॉन्च की थी। तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभु को इसका विचार एक रोचक घटना से आया था।
'आपकी यात्रा का 43 प्रतिशत भार भारतीय रेलवे वहन करता है'... आईआरसीटीसी से टिकट बुक करते हुए ये एक नोटिफिकेशन आपको बार-बार दिखाई देता है। इसका मतलब है कि आपके टिकट की कीमत से यात्रा किराए का मात्र 57 प्रतिशत ही वसूल होता है। बाकी का खर्च सरकार सब्सिडी के जरिए वहन करती है। लेकिन इसी नोटिफिकेशन ने एक बड़े बदलाव की राह खोली।
तीन महीने में 9 लाख से भी ज्यादा सीनियर सिटिजन ने रेलवे के 40 करोड़ रुपये बचाए हैं। एक अकेले सीनियर सिटिजन के साथ शुरू हुआ यह कदम बड़ा बदलाव लेकर आया। बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभु को यह विचार तब आया जब मंत्रालय में 950 रुपये का एक चेक पहुंचा। चेक भेजने वाला एक सीनियर सिटिजन था।
दरअसल, उस व्यक्ति टिकट बुक करते समय देखा कि उनकी यात्रा का 43 प्रतिशत भार सब्सिडी से आता है। इसलिए उसने सब्सिडी की राशि भेजने का फैसला किया। हालांकि ऐसा कोई प्रावधान नहीं होने से रेलवे को वो चेक वापस करना पड़ा लेकिन 'सब्सिडी छोड़ो' स्कीम का आइडिया वहीं से आया।
इसमें वरिष्ठ नागरिकों को उनके टिकट पर दी जाने वाली कुल छूट का इस्तेमाल करने या छूट की पूरी राशि छोड़ देने का विकल्प दिया गया। इस साल एक नया विकल्प भी उनके लिए जोड़ा गया जिसमें वरिष्ठ नागरिकों को अपनी सब्सिडी का 50% तक छोड़ने की सुविधा दी गई। इस योजना का मकसद वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली 1300 करोड़ रुपये की सब्सिडी के बोझ से रेलवे को राहत दिलाना है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक 22 जुलाई 2017 से 22 अक्टूबर 2017 के दौरान 9.39 लाख सीनियर सिटिजन ने अपनी सब्सिडी छोड़ दी। इसमें 2.16 लाख पुरुषों और 2.67 लाख महिलाओं ने अपनी पूरी सब्सिडी छोड़ दी, जबकि 2.51 लाख पुरुष और 2.05 लाख महिलाओं ने अपनी 50 प्रतिशत सब्सिडी नहीं इस्तेमाल करने का फैसला लिया है।
पिछले साल इसी अवधि में कुल 4.68 लाख वरिष्ठ नागरिकों ने अपनी सब्सिडी छोड़ी थी जिसमें 2.35 लाख पुरुष और 2.33 लाख महिलाएं हैं। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आंकड़े दिखाते हैं कि सब्सिडी छोड़ने वालों की संख्या एक साल में दोगुना हो गई।