तिरंगा हमारे देश की आन बान और शान है। ये आज भारत की पहचान है। स्वतंत्रता दिवस से लेकर गणतंत्र दिवस और राष्ट्रीयता की जब भी बात होती है, तिरंगा का जिक्र आ ही जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि तिरंगे को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता कब मिली थी? संविधान सभा में इसे लेकर क्या चर्चाएं हुई थी और किसने इसे डिजाइन किया? भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के इस मौके पर इन्हीं तमाम सवालों के जवाब देते हुए तिरंगे से जुड़ी 75 साल पुरानी ये कहानी लेकर आए हैं।
तिरंगे को कब दी गई थी राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर मान्यता
22 जुलाई 1947...ये वो दिन था जब तिरंगे को हमारे देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता दी गई थी। हाल में पीएम मोदी ने 22 जुलाई के ही दिन एक ट्वीट कर भारत के पहले राष्ट्रध्वज की तस्वीर शेयर की थी। पीएम मोदी ने इस बार देश के लोगों से 13 से 15 अगस्त तक अपने घरों में तिरंगा फहराने की अपील भी की है।
पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों को याद करते हुए कहा, 'हम आज उन सभी लोगों के साहस और प्रयासों को याद करते हैं जिन्होंने उस समय स्वतंत्र भारत के लिए एक ध्वज का सपना देखा था जब हम औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ रहे थे। हम उनके सपने को पूरा करने और उनके सपनों के भारत का निर्माण करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं।'
ये तो थी पीएम मोदी की बात पर अब 75 साल पीछे चलते हैं। आज से 75 साल पहले आखिर हुआ क्या था? कैसे तिंरगे को हमारे देश के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर मान्यता मिली और क्या जो तिरंगा पहली बार फहराया गया था अब उस तिरंगे में कोई बदलाव किए गए हैं या नहीं...इस सब के बारे में आपको बताते हैं।
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा में क्या हुआ था
22 जुलाई 1947 को यानी स्वतंत्रता मिलने के 23 दिन पहले संविधान सभा में भारत के राष्ट्रीय ध्वज या पताका के सम्बन्ध में प्रस्ताव रखा गया। इसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्तुत किया था। इसमें कहा गया था- 'ये निश्चय किया जाता है कि भारत का राष्ट्रीय झंडा तीन रंगों का होगा। इसमें गहरे केसरिया, सफेद और गहरे हरे रंग की बराबर-बराबर की तीन आड़ी पट्टियां होंगी। सफेद पट्टी के केंद्र में चरखे के प्रतीक स्वरूप गहरे नीले रंग का एक चक्र होगा।चक्र की आकृति उस चक्र के समान होगी, जो सारनाथ के अशोक कालीन सिंह स्तूप के शीर्ष भाग पर स्थित है। चक्र का व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होगा । राष्ट्रीय झंडे की चौड़ाई और लम्बाई का अनुपात साधारणतः 2:3 होगा।' संविधान सभा की इस बैठक के रिकॉर्ड बताते हैं कि दिन के अंत तक प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया।
पंडित नेहरू ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए प्रस्ताव रखते हुए भाषण में क्या कहा था?
पंडित नेहरू ने अपने भाषण में कहा था कि इस महान राष्ट्र ने स्वतंत्रता के लिए जो महान युद्ध किया मुझे उसकी सफलताएं और असफलताएं याद आती हैं। सभा के सदस्यों को याद होगा कि हम किस प्रकार इस झंडे की ओर केवल गौरव और उत्साह से ही नहीं बल्कि शरीर में एक स्फूर्ति और उत्तेजना के लिए भी देखते थे। कभी-कभी जब हम हतोत्साह हो जाते थे तब इस झंडे को देखने से आगे बढ़ने का जज्बा आता था।
इस दौरान पंडित नेहरू ने इस बात का जिक्र भी किया कि देश में फिलहाल जो भी हालात हैं हमें उनसे लड़ना है । उन्होंने आजादी की लड़ाई के अंत होने पर खुशी जाहिर करने की बात भी कही। उन्होंने कहा हमारा जो मकसद है हमने उसे पूरा किया है और आगे भी करेंगे। हमे पूरा विश्वास है।
75 साल पहले इस राष्ट्रीय ध्वज के प्रस्ताव को पेश करते हुए पंडित नेहरू ने कहा था कि चरखा जिस रूप में झंडे पर पहले था उसका चक्र एक ओर था जबकि तकुआ दूसरी ओर था। उन्होंने आगे कहा कि अगर आप झंडे को दूसरी ओर से देखें तो चक्र इस ओर आ जाता था और तकुआ दूसरी ओर। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो वो अनुपात में नहीं है। उन्होंने बताया कि चक्र लट्ठे की ओर होना चाहिए न कि डंडे के सिरे की ओर। पंडित नेहरू ने बताया कि विचार करने के बाद हमने वास्तव में यह सोचा कि इस महान चिन्ह को रखा जाए पर थोड़े से बदलाव के साथ। तब हमने चक्र को रखा और तकुए और माल को नहीं रखा। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि हमने अशोक चक्र को इसलिए चुना क्योंकि यह भारत की प्राचीन सभ्यता का चिन्ह भी है।
पंडित नेहरू ने कहा यह दूर- दूर तक पहुंचेगा जहां भारत के लोग रहते हैं। समुद्र पास ये भारतीय जहाजों द्वारा ले जाया जाएगा। जहां भी ये तिरंगा पंहुचेगा वहां पर रहने वाले भारतीयों को स्वतंत्रता का संदेश देगा। वहीं जो लोग स्वतंत्रता चाहते हैं उनकी मदद करना चाहता है। नेहरू के इस प्रस्ताव को लेकर कुछ बदलाव करने की बात कही गई हालांकि उस वक्त कुछ बदलाव नहीं हुए।
पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था राष्ट्रीय ध्वज
हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था। पिंगली वेंकैया को महात्मा गांधी ने तिरंगे को डिजाइन करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। उनकी गांधी जी से मुलाकात दक्षिण अफ्रीका में हुई थी। इस दौरान वेंकैया ने अपने अलग राष्ट्रध्वज होने की बात कही जो गांधीजी को अच्छी लगी। वहीं बापू ने उन्हें राष्ट्रध्वज डिजाइन करने का काम सौंपा दिया। जिसके चलते वह भारत वापस लौट आए और इस पर काम शुरू कर दिया। लगभग 5 सालों के अध्ययन के बाद तिरंगे का डिजाइन तैयार किया। इसमें उनका सहयोग एस बीबोमान और उमर सोमानी ने दिया और उन्होंने मिलकर नैशनल फ्लैग मिशन का गठन किया।
5 अलग-अलग तिरंगों के बाद ये झंडा डिजाइन किया गया
हमारे राष्ट्रीय ध्वज बनने में इस तिरंगे ने काफी लंबा सफर तय किया है। साथ ही यह इस तिरंगे में भी काफी बदलाव भी हुए हैं । आजाद भारत में तो इसे ही राष्ट्रीय ध्वज बनाया गया लेकिन अंग्रेजों के वक्त अलग तिरंगे फहराए गए थे । करीब 5 तिरंगों के बाद ये झंडा डिजाइन किया गया है जो आज हमारे देश का प्रतीक है।
जानकारी के मुताबिक भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को सामने आया था। इसे तत्काली कलकत्ता के पारसी बगान चौक में फहराया गया था। दरअसल यह भी एक तिरंगा था, लेकिन इसमें हरे, पीले और लाल रंग की पंट्टियां थीं।
भारतीय इतिहास में देश का दूसरा राष्ट्रीय ध्वज मैडम भीखाजी कामा द्वारा पेरिस में फहराया गया था। यह ध्वज काफी कुछ 1906 के झंडे जैसा ही थाए लेकिन इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी का रंग केसरिया था और कमल के बजाए सात तारे सप्तऋषि प्रतीक थे। नीचे की पट्टी का रंग गहरा हरा था जिसमें सूरज और चांद अंकित किए गए थे।
तीसरा झंडा 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। जबकि चौथा ध्वज अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के एक युवक ने झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। भारत का चौथा राष्ट्र ध्वज 10 सालों तक अस्तित्व में रहा। 1931 में हिंदुस्तान को एक बार फिर नया राष्ट्रध्वज मिला। चौथे राष्ट्रध्वज की तरह ही पांचवे राष्ट्रध्वज में भी चरखा का महत्वपूर्ण स्थान रहा।
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे आजाद भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर अशोक चक्र को दिखाया गया।
चरखे के चक्र के स्थान पर अशोक चक्र से दुखी थे महात्मा गांधी
जब महात्मा गांधी को यह पता चला कि राष्ट्रीय ध्वज में चरखे के चक्र के स्थान पर अशोक चक्र को स्थापित किया गया हैए तो वे दुखी हो गए। वे इसे हिंसा के प्रतीक के तौर पर देख रहे थे। उन्होंने यहां तक कह दिया था ऐसा ध्वज कितना ही सुन्दर क्यों न हों पर मैं उसे नमन नहीं करूंगा। हालांकि बाद में नेहरू और सरदार पटेल के काफी समझाने के बाद वे मान गए थे।