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गांधी जयंती विशेषः जब महज चार रुपये के लिए कस्तूरबा से नाराज हो गए महात्मा गांधी!

By धीरज पाल | Updated: October 2, 2018 22:46 IST

2 October Gandhi Jayanti 2018 Special: गांधी जयंती पर महात्मा गांधी के विषय में कुछ रोचक बातें...

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अहिंसावादी सिद्धांत और सत्यता के बल पर देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली। अंग्रेज कभी भी महात्मा गांधी के अडिग सिद्धांत को झुठला न सके। झुठलाते भी कैसे क्योंकि गांधी हमेशा से 'अहिंसा परमों धर्म:' के रास्ते पर चलें। गांधी जी की नैतिकता और सुदृढ़ विचार ही उनके हमेशा से हथियार रहे हैं। अहिंसा से आंदोलनों पर विजय प्राप्त कर लेते थे। गांधी का विचार उनके सिद्धांतों पर होता था। इसलिए गांधी के सिद्धांत के खिलाफ अंग्रेजों ने अपने हथियार डालकर वापस चले गए।

अगर कोई गांधी जी के सिद्धांत के खिलाफ जाता था तो उसका परिणाम उस व्यक्ति को खुद-ब-खुद मिल जाता है। इसलिए उनके सिद्धांतों के खिलाफ कोई भूल कर भी नहीं जाता था। ऐसा ही एक भूल महात्मा गांधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी से हुई। जिसे लेकर गांधी जी ने सन 1929 में एक पूरा लेख लिखा जो साप्ताहिक समाचारपत्र नवजीवन में छपा है। महात्मा गांधी का यह लेख उनके जीवन की सत्यता और नैतिकता का जीता जागता प्रमाण है। इससे पता चलता है कि उन्होंने सत्य और नैतिकता से कभी समझौता नहीं किया।

उनकी आत्मकथा सत्य के प्रयोग किताब में ऐसी कई सत्यता और नैतिकता का उल्लेख किया है। महात्मा गांधी के इस लेख में उन्होंने कस्तुरबा गांधी और गुजरात के अहमदाबाद में स्थित आश्रम के वासियों की आलोचना की है। इसके अलावा उन्होंने यह भी लेख में बताया है कि वो इस लेख को लिखने का फैसला क्यों किया? 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर इस लेख को प्राशिक किया गया।

साप्ताहिक अखबर नवजीवन में मेरी व्यथा, मेरी शर्मिंदगी शीर्षक से यह लेख छपा है। इस अखबार का प्रकाशन गांधी जी ही करते थे। इस लेख में चार रुपये को लेकर अपनी पत्नी से नाराज हो चुके थे। लेख में बताया गया है कि बात सिर्फ चार रुपये की नहीं थी बल्कि ऐसा करना नैतिकता के खिलाफ था। हालांकि गांधी जी ने अपनी किताब सत्य के प्रयोग में उन्होंने अपनी पत्नी के अच्छे गुणों का वर्णन किया है। लेकिन दूसरी ओर अपनी पत्नी की कमजोरियों भी बताई हैं जिससे उन्हें बहुत दुख हुआ।

गांधी जी अपनी पत्नी को उनका कर्तव्य मानते हुए उन्हें सारा धन सौंप दिया। लेकिन उनमें अभी भी मोह माया अभी भी बाकी है। इस लेख में उन्होंने कहा कि एक-दो साल पहले उन्होंने 100 या 200 रुपये अपने पास रखे थे। यह पैसे अलग-अलग आयोजनों में लोगों द्वारा भेंट के रूप में दिया जाता था। आश्रम का ऐसा नियम था कि भेंट किया हुआ पैसा वो अपना मानकर अपने पास नहीं रख सकती हैं। हालांकि उन्हें दे दिया गया हो लेकिन अगर वो अपने पास रुपया अपना मानकर रखती हैं तो यह नियम के खिलाफ होगा।

उन्होंने अपने पास रुपये रखे थे इसका खुलासा तब हुआ जब उनके कमरे में चोर आए। हालांकि उनकी पत्नी की ये गलती धरी गई। उन्होंने इस गलती को स्वीकारा और पश्चाताप किया। लेकिन यह बहुत दिनों तक नहीं चला। कस्तुरबा के पैसा रखने का सिलसिला चलता रहा।

एक दिन कुछ अनजान लोगों ने उन्हें चार रुपये भेंट किए। जैसा कि नियम था कि भेंट किए हुए रुपये अपने पास नहीं बल्कि दफ्तर में रखे जाएंगे। उन्होंने अपने इस लेख में इसे चोरी बताया। उन्हीं के आश्रम के एक निवासी ने उनकी गलती की ओर इंगित किया। हालांकि कस्तुरबा ने रुपया लौटा दिया और ऐसा कभी नहीं करने का प्रण लिया। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी संकल्प लिया कि दोबारा कभी ऐसा कते हुए पकड़ी गईं  तो वो मंदिर और मुझे त्याग देंगी।

उनका यह कर्तव्य नैतिकता और सत्यता को दर्शाता है।

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