महात्मा गांधी का गृह राज्य गुजरात है, लेकिन उनकी आत्मकथा सबसे अधिक केरल में खरीदी जाती है। गांधी द्वारा स्थापित अहमदाबाद स्थित प्रकाशक नवजीवन ट्रस्ट के मुताबिक ‘दि स्टोरी ऑफ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रूथ’ के मलयालम संस्करण की 8.24 लाख प्रतियां बिकीं हैं, जो अंग्रेजी के बाद किसी भी भाषा में सबसे अधिक हैं, जबकि गुजराती संस्करण के लिए ये आंकड़ा 6.71 लाख है।
गुजराती में किताब का प्रकाशन 1927 में हुआ था। दूसरी ओर मलयालम संस्करण 1997 में प्रकाशित हुआ, इसके बावजूद उसकी बिक्री इतनी अधिक है। नवजीवन ट्रस्ट के न्यास प्रबंधक विवेक देसाई ने बताया कि मलयालम अनुवाद की तेज बिक्री की एक वजह केरल में अधिक साक्षरता दर है।
देसाई ने कहा, ‘‘इसके अलावा, केरल में पढ़ने की संस्कृति है। ये गुजरात में भी है, लेकिन केरल में अधिक है। केरल में विद्यालय और कॉलेज में अधिक संख्या में किताबें खरीदी जाती हैं।’’ ट्रस्ट के आंकड़ों के मुताबिक किताब की सबसे अधिक 20.98 लाख प्रतियां अंग्रेजी में खरीदी गई हैं, इसके बाद मलयालम और फिर 7.35 प्रतियों के साथ तमिल का स्थान है।
हिंदी की 6.63 लाख प्रतियां बिकीं हैं। ट्रस्ट ने बताया कि किताब का प्रकाशन कई भाषाओं में हुआ है, जिनमें असमी, उड़िया, मणिपुरी, पंजाबी और कन्नड़ शामिल हैं, और सभी को मिलाकर कुल 57.74 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं। आत्मकथा 500 पेज की है और इसकी कीमत 80 रुपये है। इसका पंजाबी संस्करण 2014 में प्रकाशित हुआ और उस साल इसकी 2000 प्रतियां बिकीं।
मणिपुरी और संस्कृत संस्करण की करीब 3000 प्रतियां बिक चुकी हैं। ट्रस्ट की योजना इस किताब को जम्मू-कश्मीर की डोगरी भाषा और असम की बोडो भाषा में प्रकाशित करने की है। नवजीवन के न्यासी कपिलभाई रावल ने बताया, ‘‘आत्मकथा का प्रकाशन 1968 में पहली बार डोगरी में हुआ था। उस समय इसकी केवल 1000 प्रतियां छापी गईं और इसके बाद कोई नहीं। लेकिन अब ट्रस्ट ने इसे छापने का निर्णय किया है। हम 500 प्रतियों से शुरुआत करेंगे, जो जनवरी से उपलब्ध होंगी।’’ उन्होंने बताया कि बोडो संस्करण पर इस समय काम चल रहा है और उम्मीद है कि ये अगले साल जनवरी तक बाजार में आ जाएगी।
रावल ने कहा कि ट्रस्ट ने आत्मकथा को श्रव्य-पुस्तक के रूप में लाने का फैसला किया है, जो सीडी या पेन ड्राइव के रूप में हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘जिन लोगों के पास पढ़ने का समय नहीं है, वे काम पर जाते समय या कार्यालयों में श्रव्य-पुस्तक सुन सकते हैं।’’ ‘दि स्टोरी ऑफ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रूथ’ में गांधी के बचपन से लेकर 1921 तक के सफर का वर्णन है। इसे साप्ताहिक किश्तों में लिखा गया और उनकी पत्रिका नवजीवन में 1925 से लेकर 1929 के बीच प्रकाशित हुआ।