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World Suicide Prevention Day 2022: इन वजहों से आते हैं आत्महत्या के विचार, जानें कैसे पाएं इनपर काबू

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 08, 2022 11:29 AM

देश में 2021 के दौरान आत्महत्या के कारण 1.64 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई और औसतन लगभग 450 लोगों की मौत प्रतिदिन या 18 लोगों की मौत हर घंटे हुई। आधिकारिक आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। किसी भी कैलेंडर वर्ष के लिए यह अब तक का सबसे उच्चतम आंकड़ा है।

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ठळक मुद्देदुनियाभर में आत्महत्याओं को रोकने के लिए WHO के सहयोग से हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस  मनाया जाता है।इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन 60 से अधिक देशों में कार्यक्रम आयोजित करता है।

World Suicide Prevention Day 2022: आत्महत्या देश की एक गंभीर समस्या है। आंकड़ों की मानें तो साल 2021 के दौरान 1.64 लाख से अधिक लोगों ने आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवा दी। औसतन लगभग 450 लोगों की मौत प्रतिदिन या 18 लोगों की मौत हर घंटे हुई। ये आंकड़ें किसी भी समाज की बेहतरी के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। 

माना जाता है कि आत्महत्या की तरफ वही लोग कदम बढ़ाते हैं जिनको ज्यादा तनाव है। या फिर जिनकी किसी कारण बस जीने की इच्छाएं खत्म हो गई हैं। व्यक्ति एक साथ कई परिस्थियों से घिरा होता है। वह कई समस्याओं से जूझता है। कोई इससे पार पा लेता है तो कई इसमें फंस कर अपने को खत्म कर लेता है। 

एक हद तक ये बात सही है कि तनाव के कारण लोग आत्महत्या कर लेते हैं लेकिन पूरी तरह से तनाव को जिम्मेदार ठहराया जाना सही नहीं होगा। स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अनुसंधान पर केंद्रित एक गैर-लाभकारी अमेरिकी शैक्षणिक चिकित्सा केंद्र मायो क्लिनिक के मुताबिक वे लोग भी आत्महत्या करते हैं जो किसी पुरानी बीमारी से पीड़ित हैं। या फिर शराब और नशीली दवाओं का सेवन कर रहे हों।

आत्महत्या की वजहेंः

अगर किसी ने पहले भी आत्महत्या करने की कोशिश की है तो यह भी एक वजह हो सकती है। या फिर वह खुद को अकेला महसूस कर रहा हो।

 किसी के चले जाने का गम हो, ब्रेकअप या फिर आर्थिक और कानूनी समस्याओं की वजह से भी लोग आत्महत्या करते हैं।

शराब और नशीली दवाओं के सेवन से भी लोगों में आत्महत्या के विचार आते हैं। 

आत्महत्या का प्रयास या आत्महत्या करने का विचार एक तरह का मानसिक विकार है। जिनमें अभिघातजन्य तनाव विकार या द्विध्रुवीय विकार होते हैं ऐसे लोग आत्महत्या की तरफ कदम बढ़ा लेते हैं। 

किसी का शारीरिक या यौन शोषण हुआ हो। मादक द्रव्यों का अत्यधिक सेवन या फिर किसी के परिवार का आत्महत्या या हिंसा करने का इतिहास रहा हो।

ऐसी कोई पुरानी बीमारी, पुराना दर्द जिसका इलाज ना हो, इससे पीड़ित लोग भी आत्महत्या की तरफ चले जाते हैं।

समलैंगिक, उभयलिंगी या ट्रांसजेंडर भी आत्महत्या के विचार लाते हैं जब उनको परिवार का साथ नहीं मिलता है या फिर वे शत्रुतापूर्ण वातावरण का सामना करते हैं।

आत्महत्या का विचार आने पर क्या करें?

खुद से ये वाद करें

आपको खुद से ये वादा करना होगा कि आप भले ही बहुत दर्द में हों गलत विचार और गलत कदम उठाने से रोकेंगे। खुद से ये वादा करें कि मैं 24 घंटे इंतजार करूंगा और उस दौरान कुछ भी खुद के साथ गलत नहीं करूंगा।

नशीली दवाओं, शराब से बचें

जीवन बहुत ही अनमोल चीज है। उससे भी बढ़कर है आपका स्वास्थ्य। अगर आप नशीली दवाओं और शराब का सेवन करते हैं तो आत्महत्या के विचार और भी मजबूत हो सकते हैं। जब आप निराशा महसूस करते हैं या आत्महत्या के बारे में सोच रहे हों, तो बिना पर्चे वाली दवाओं या एल्कोहॉल का उपयोग नहीं करना चाहिए।

लोगों की बातों पर ध्यान न दें

अपने व्यक्तित्व को आपसे अधिक कोई नहीं समझ सकता। आप अपनी अच्छाइयों-बुराइयों के बारे में अच्छे से जानते हैं लेकिन देखा गया है कि अक्सर हमारे आस-पास के लोग किसी न किसी तरह से हमें जज करते हैं या नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। तो आपको ऐसे लोगों से बचकर रहना है।

व्यायाम करें, अच्छा संगीत सुनें

शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से व्यायाम करना बहुत फायदेमंद होता है। यह आपके शरीर में सकरात्मक ऊर्जा लाता है और दिमाग में जो भी बुरे विचार आते हैं, उनको दूर करता है। इसके साथ ही अच्छे संगीत सुनें। म्यूजिक थेरेपी से  आपके अंदर के बुरे विचार खत्म हो जाएंगे और शरीर और मन में सकारात्मक तरंगे चल पड़ेंगी।

आत्महत्या रोकथाम दिवस 

दुनियाभर में आत्महत्याओं को रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सहयोग से हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस  मनाया जाता है। हर साल इस दिवस को मनाने के लिए इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) 60 से अधिक देशों में कार्यक्रम आयोजित करता है। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस इसलिए भी मनाया जाता है क्योंकि विश्व में तेजी से बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति पर रोक लग सके। इसकी शुरुआत इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) ने 2003 में की थी।

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