Bihar Health Department: बिहार में स्वास्थ्य विभाग के लाख प्रयास के बावजूद सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेहतर नहीं हो पा रही है। बिहार विधानसभा में 28 नवंबर 2024 को पेश की गई कैग की रिपोर्ट से प्रदेश के स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई। सीएजी की रिपोर्ट से इस बात की पुष्टि हो गई कि स्वास्थ्य क्षेत्र में मंगल काल नहीं बल्कि अमंगल काल चल रहा है। हाल यह है कि लोगों का सरकारी अस्पतालों में विश्वास धीरे-धीरे कम होता दिख रहा है। नि:शुल्क उपचार, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के साथ परिवार नियोजन को बढ़ावा देना स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्र एवं राज्य सरकार के द्वारा सबसे अधिक धनराशि का आवंटन भी इसी मद में किया जाता है। बावजूद इसके इन तीन क्षेत्रों के 14 स्वास्थ्य मानकों में बिहार लक्ष्य से काफी दूर है। यहां तक कि राजधानी पटना के प्रदर्शन में भी लगातार गिरावट देखी जा रही है।
अप्रैल से अक्टूबर तक के आंकड़ों को देखें तो ओपीडी में अनुमानित लक्ष्य के 76 प्रतिशत रोगियों का ही उपचार किया गया। मध्यरात्रि तक भर्ती कर उपचार कराने वाले रोगियों की संख्या अनुमानित लक्ष्य का महज 23 प्रतिशत ही रहा। वहीं, गर्भधारण के 12 सप्ताह यानी तीन माह पर एंटीनेटल जांच के लिए 110 प्रतिशत गर्भवती ने अस्पतालों में पंजीयन कराया।
इसके बाद 180 दिन आयरन-फोलिक एसिड व 360 दिन तक कैल्शियम की खुराक देने में क्रमश: 96 व 97 प्रतिशत प्रदर्शन रहा। यह रिपोर्ट 18 नवंबर को जिलाधिकारी की राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन समीक्षा बैठक में प्रस्तुत आंकड़ों पर आधारित है। कैग ने राज्य सरकार को 31 अनुशंसा भी की है, जिसमें मानदंडों और मानदंडों के अनुसार स्वास्थ्य देखभाल इकाइयों में पर्याप्त संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती होनी चाहिए। पंजीकरण काउंटर और पंजीकरण कर्मचारियों की संख्या बढ़ाते हुए पंजीकरण के लिए प्रतीक्षा का समय कम होना चाहिए।
जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के लिए व्यापक योजना तैयार होना चाहिए। बताया जाता है कि 42 लाख 7 हजार 82 रोगियों के उपचार का अनुमान था। अप्रैल से अक्टूबर तक, 31 लाख 93 हजार 115 मरीज ही ओपीडी में इलाज कराने पहुंचे। 7 लाख 50 हजार 757 रोगियों को भर्ती करने का लक्ष्य था। अप्रैल से अक्टूबर तक, एक लाख 71 हजार 127 रोगी ही भर्ती हुए।
357 पुरुषों की अप्रैल से अक्टूबर तक परिवार नियोजन सर्जरी करना थी, लेकिन सिर्फ 55 की हो पाई। वहीं, वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2021-22 के बीच सरकार द्वारा आवंटित 69790.83 करोड़ रुपये के बजट में सिर्फ 69 फीसदी राशि ही खर्च की जा सकी थी। जबकि 21743.004 करोड़ रुपये बिना उपयोग किए रह गए। यह न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का प्रमाण है बल्कि जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ भी है।