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विकास दुबे मुठभेड़: "मुठभेड़" सही, फर्जी नहीं कहा जा सकता, UP सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 17, 2020 15:39 IST

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को संकेत दिया कि विकास दुबे मुठभेड़ प्रकरण और कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले की जांच के लिये शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की जा सकती है।

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ठळक मुद्देविकास दुबे और उसके सहयोगियों की मुठभेड़ों में मौत के मामले में प्रशासन द्वारा उठाये गये कदमों के बारे में विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल की।आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले की जांच के लिये पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने पर विचार करेगी।

नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश पुलिस ने विकास दुबे और उसके साथियों की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने अपना विस्तृत जवाब दाखिल किया। अपने जवाब में पुलिस ने कहा कि "मुठभेड़" सही थीं और इन्हें फर्जी नहीं कहा जा सकता।

उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दायर हलफनामे में कहा है कि गैंगस्टर विकास दुबे को उज्जैन से कानपुर ला रही पुलिस की टुकड़ी को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी क्योंकि आरोपी ने भागने का प्रयास किया जिसमें वह मारा गया। राज्य सरकार ने इस हलफनामे में कहा है कि उसने उप्र के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी की अध्यक्षता में 11 जुलाई को तीन सदस्यीय विशेष जांच दल गठित किया है जो इस खतरनाक गैंगस्टर द्वारा किये गये अपराधों और दुबे, पुलिस तथा नेताओं की कथित सांठगांठ के मामलों की जांच करेगा।

विकास दुबे 10 जुलाई को कानपुर के निकट भौती में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। उप्र पुलिस के महानिदेशक हितेश चंद्र अवस्थी के हलफनामे के अनुसार, ‘‘परिस्थितियों के तहत पुलिस की सुरक्षा टुकड़ी के पास यही विकलप उपलब्ध था कि वह आत्मरक्षा में जवाबी गोली चलाये।’’

न्यायालय की निगरानी में सीबीआई या एनआईए से जांच कराने के लिये दायर याचिका में यह हलफनामा दाखिल किया

राज्य सरकार ने मुठभेड़ में विकास दुबे के मारे जाने की घटना की न्यायालय की निगरानी में सीबीआई या एनआईए से जांच कराने के लिये दायर याचिका में यह हलफनामा दाखिल किया है। पुलिस महानिदेशक ने इस बात से इंकार किया कि दुबे ने उज्जैन में समर्पण किया था। उन्होंने कहा कि पुलिस से बचने के लिये भाग रहे इस आरोपी को महाकाल मंदिर में समिति के प्राधिकारियों और पुलिसकर्मियों ने मंदिर परिसर में पहचान लिया था। दुबे को हथकड़ी नहीं लगाये जाने के बारे में पुलिस महानिदेशक ने हलफनामे में कहा, ‘‘आरोपी को सीधे कानपुर की अदालत में पेश करने के लिये उसके साथ तीन वाहनों में 15 पुलिसकर्मी थे। उसे 24 घंटे के भीतर कानपुर की अदालत में पेश करना था जिसकी समय सीमा 10 जुलाई को सवेरे 10 बजे खत्म हो रही थी।’’

हलफनामे के अनुसार, ‘‘इन तथ्यों का विस्तार से विवरण देने का मकसद इस न्यायाल को संतुष्ट कराना है कि विकास दुबे की पुलिस की हिरासत से बच निकलने की मंशा ही नहीं थी (जैसा कि उसने 10 जुलाई को प्रयास किया) बल्कि उसकी ऐसा करने की क्षमता भी थी। उसे पुलिसकर्मियों पर हमला कर उनकी हत्या करने का भी अनुभव था । 10 जुलाई को उसने भागने का प्रयास किया और जब पुलिस ने उसे रोका तो उसने पुलिस पर फायरिंग की।’’

शीर्ष अदालत ने 14 जुलाई को कहा था कि वह विकास दुबे और उसके सहयोगियों की मुठभेड़ में मौत और कानपुर में आठ पुलिसकर्मियो की हत्या की घटनाओं की जांच के लिये तेलगांना मामले की तरह ही पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने पर विचार कर सकती है। तेलंगाना में एक पशु चिकित्सक से सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या के चार आरोपियों की पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामले में भी शीर्ष अदालत ने इसी तरह की समिति गठित की थी। हलफनामे में कहा गया है, ‘‘सरकार ने विशेष जांच दल को निर्देश दिया है कि वह घटनास्थल और दूसरे संबंधिति स्थानों का दौरा करने के बाद अपनी जांच रिपोर्ट 31 जुलाई, 2020 से पहले सरकार को सौंपे। ’’

पुलिस महानिदेशक ने कहा है कि प्राधिकारियों ने कानून और 2014 में शीर्ष अदालत द्वारा प्रतिपादित दिशानिर्देशों के अनुसार ही कार्रवाई की है और 24 घंटे के भीतर ही इसकी सूचना राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्य मानवाधिकार आयोग को भी दी गयी है जिससे पता चलता है कि पुलिस की ओर से किसी प्रकार की दुर्भावना नहीं थी। हलफनामे में कहा गया है कि सरकार ने सारी घटनाओं को बहुत ही गंभीरता से लिया है और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच आयोग भी गठित किया है।

हलफनामे के अनुसार, ‘‘ उप्र सरकार दो जुलाई और 10 जुलाई की घटनाओं को विकास दुबे और उसके सहयोगियों से जोड़ती है और इन तारीखों के बीच हुयी सारी मुठभेड़ों को सार्वजनिक महत्व के मसले मानती है। अत: राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति शशि कांत अग्रवाल की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग गठित किया है।’’ हलफमाने में कहा गया है कि जांच आयोग को 12 जुलाई से दो महीने के भीतर अपनी जांच पूरी करनी है।

दुबे ने दो जुलाई को ड्यूटी पर कार्यरत आठ पुलिसकर्मियों का नरसंहार किया

महानिदेशक ने कहा है कि दुबे ने दो जुलाई को ड्यूटी पर कार्यरत आठ पुलिसकर्मियों का नरसंहार किया और सर्किल अधिकारी की गोली मारकर हत्या करने के बाद बेरहमी से उसका पैर काट दिया। हलफनामे में कहा गया है, ‘‘यह साफ दर्शाता है कि एक खतरनाक गैंगस्टर , जो पैरोल पर रिहाई के दौरान आठ पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या करने के बाद फरार हो गया, की पूरी मंशा कानुपर आते समय रास्ते में हुयी दुर्घटना का फायदा उठाकर भागने की थी।’’ उन्होंने कहा कि मौजूदा मामला हैदराबाद में पुलिस मुठभेड़ में सामूहिक बलात्कार और हत्या के चार आरोपियों के मारे जाने की घटना से एकदम भिन्न है क्योंकि विकास दुबे एक खतरनाक अपराधी था जिसके खिलाफ 64 मामले दर्ज थे।

पुलिस महानिदेशक ने कहा कि इन दोनों मुठभेड़ों में बहुत ज्यादा भिन्नता है। हलफनामे के अनुसार 30 साल से ज्यादा समय से विकास दुबे और उसके बुलेट गैंग ने उत्तर प्रदेश में अपने अपराधों से आतंक फैला रखा था। वह रजिस्टर्ड गिरोह डी-124 का सरगना था। हलफनामे में दो जुलाई की घटना के बारे में कहा गया है, ‘‘गैंगस्टर विकास दुबे के गिरोह में 80-90 अपराधी थे जो गांव में अनेक घरों की छतों पर मोर्चा संभाले थे और जिन्होंने पूर्व नियोजित योजना के तहत सड़क पर अवरोध लगाने के इरादे से जेसीबी मशीन लगा रखी थी और पुलिस की टुकड़ी पर अंधाधुंध गोलियां चलाई थीं। उत्तर प्रदेश सरकार ने 14 जुलाई को न्यायालय से कहा था कि वह सारे घटनाक्रम का विवरण देते हुये 16 जुलाई तक स्थिति रिपोर्ट पेश करेगी।

राज्य सरकार के इस कथन के बाद न्यायालय ने इन मुठभेड़ों और इससे संबंधित घटनाओं को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई 20 जुलाई के लिये स्थगित कर दी थी। विकास दुबे की मुठभेड़ में मौत से कुछ घंटे पहली ही याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय ने इस गैंगस्टर की सुरक्षा सुनिश्चित करने का उप्र सरकार और पुलिस को निर्देश देने का अनुरोध किया था। उन्होंने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने और न्यायालय की निगरानी में पांच आरोपियों की मुठभेड़ में हत्या की सीबीआई से जांच कराने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया था।

बाद में, दिल्ली स्थित अधिवक्ता अनूप प्रकाश अवस्थी और एक अन्य ने भी आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले और बाद में दस जुलाई को विकास दुबे की पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामले और उत्तर प्रदेश में पुलिस-अपराधियों और नेताओं की सांठगांठ की न्यायालय की निगरानी में सीबीआई या एनआईए से इसकी जांच कराने तथा उन पर मुकदमा चलाने का अनुरोध किया । इसके अलावा, कानपुर में पुलिस की दबिश के बारे में महत्वपूर्ण सूचना विकास दुबे तक पहुंचाने में कथित संदिग्ध भूमिका की वजह से निलंबित पुलिस अधिकारी ने भी अपने संरक्षण के लिये न्यायालय में याचिका दायर की है।

पुलिस अधिकारी कृष्ण कुमार शर्मा ने अपनी पत्नी विनीता सिरोही के जरिये यह याचिका दायर की है। इसमें विनीता ने आशंका व्यक्त की है कि उसके पति को गैरकानूनी और असंवैधानिक तरीके से खत्म किया जा सकता है। कानपुर के बिकरू गांव में पुलिस की दबिश के बारे में विकास दुबे तक सूचना पहुंचाने के संदेह में सब इंसपेक्टर शर्मा को तीन अन्य पुलिसकर्मियों के साथ पांच जुलाई को निलंबित कर दिया गया था।

इस बीच, गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल ने भी एक याचिका दायर कर विकास दुबे और उसके दो सहयोगियों की उत्तर प्रदेश में पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की घटना की जांच विशेष जांच दल से कराने के लिये अलग से याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि इन मुठभेड़ के बारे में पुलिस के कथन से कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं, जिनकी जांच जरूरी है।

इस गैर सरकारी संगठन ने जनवरी, 2017 से मार्च 2018 के दौरान उप्र में पुलिस मुठभेड़ों की एसआईटी या सीबीआई से जांच के लिये याचिका दायर की थी। इसी मामले में पीयूसीएल ने अंतरिम आवेदन दायर किया है जिसमें इन मुठभेड़ों तथा अपराधियों एवं नेताओं के बीच साठगांठ की जांच के लिये उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक दल गठित करने का अनुरोध किया है।

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