नई दिल्ली: अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने वित्तीय बाजार में अपने 50 बेसिस प्वाइंट से रेट कट कर दुनिया के वित्तीय बाजारों को आश्चर्यचकित कर दिया है, अब ऐसे में आरबीआई गर्वनर शक्तिकांत दास का मानना है कि इससे बाजार में नई चुनौतियों पैदा हो सकती है। क्योंकि एकाएक फेड रिजर्व की मौद्रिक नीति में बदलाव करने से भारतीय बाजार में असर दिखने वाला है। आरबीआई की रेपो रेट 6.5 फीसदी की तुलना में फेड रिजर्व की दर अब घटकर 4.75% से 5% के बीच रह गई है।
दूसरी ओर यूरोपियन केंद्रीय बैंक (ECB) ने साल में दो बार ब्याज दरों में कमी कर दी है, जिसमें से 25 बेसिस प्वाइंट से सितंबर में ही कट की है और इसके साथ मुद्रास्फीति नरम होने लगी है। वहीं, बैंक ऑफ कनाडा ने भी हाल में अपनी प्रमुख दर में 25 आधार अंकों की कटौती की है, जो निकट भविष्य में और अधिक कटौती होने की संभावना के संकेत है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी अपनी दरें कम कर दी है। संभावना है कि अन्य वैश्विक केंद्रीय बैंकर ब्याज दर में ढील के चक्र में शामिल होंगे।
अमेरिकी फेड ने पहली बार साल 2020 में रेट में कटौती की, हालांकि इसमें एक बात जो सामने आती है कि दुनिया की आर्थिक गतिविधि या तो लड़खड़ा जाती है या फिर अपने रिद्दम पर चलती जाती है। वैश्विक वित्तीय प्रणालियों पर अमेरिकी मौद्रिक नीति के प्रभाव को देखते हुए, विशेष रूप से भारत जैसे उभरते बाजारों में फेड की आगे की कटौती की योजना आरबीआई (RBI) की मौद्रिक नीति के लिए नई चुनौतियां पैदा करने की संभावना है।
आरबीआई के लिए एक और चिंता का विषय बन गया है कि आने वाले कुछ समय में 200 बेसिस प्वाइंट्स से रेट में कटौती की जा सकती है। यही नहीं फेड कमेटी ने उम्मीद जताई है कि आने वाले दिनों में 50 आधार अंकों से ब्याज दरों में और कटौती होगी। समिति के सदस्यों के अनुमानों से यह भी संकेत मिलता है कि वे 2025 के अंत तक दरों में पूरे 100 आधार अंकों की कटौती और 2026 में 50 आधार अंकों की कटौती की उम्मीद करते हैं। कुल मिलाकर, इसका मतलब है कि फेड अगले साल ब्याज दरों में लगभग 200 आधार अंकों की कटौती करने की योजना बना रहा है।
आरबीआई ने कहा कि भारत की केंद्रीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति 4 फीसद की रेंज में है, जिसमें या तो 2 फीसद से बढ़ोतरी होगा या फिर 2 फीसद की कमी। लेकिन, वैश्विक रूप से ब्याज में बदलाव और अब भारी दबाव से मुद्रास्फीति को रोकने की लड़ाई ठंडी पड़ सकती है।
4 साल पहले भी कटौती हुई..हालांकि, यहां ये जान लेना जरूरी है कि कुल 12 सदस्यों में 11 ने 4 साल बाद हो रही ब्याज दरों की कटौती के पक्ष में मत दिया है। जबकि, इसके विरुद्ध पड़ा है। बता दें कि मार्च 2020 में आखिरी बार फेड रिजर्व ने ब्याज दरों में कटौती की थी। तब कोविड-19 से उबरने के लिए ऐसा किया था।