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सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण पर लिखे आर्टिकल पर RBI की सफाई- ये लेखकों के विचार हैं

By मनाली रस्तोगी | Updated: August 19, 2022 17:15 IST

रिजर्व बैंक ने यह साफ किया है कि इस लेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और यह अनिवार्य रूप से उसकी राय नहीं दर्शाते हैं।

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ठळक मुद्देलेख के मुताबिक परियोजनाओं के पूंजीगत व्यय के मामले में ढांचागत क्षेत्र का पलड़ा भारी रहा जिसमें बिजली और सड़क एवं पुलों के निर्माण का दबदबा रहा।सरकार की तरफ से उठाए गए कई अनुकूल नीतिगत कदमों से नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश तेजी से बढ़ा है।सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े पैमाने पर निजीकरण से फायदे से अधिक नुकसान हो सकता है।केंद्रीय बैंक ने कहा कि लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और ये आरबीआई के विचार नहीं हैं।

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण पर वित्तीय विशेषज्ञों द्वारा अपने लेख पर एक स्पष्टीकरण जारी किया जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार से क्रमिक दृष्टिकोण रखने का आग्रह किया था। केंद्रीय बैंक ने कहा कि लेख में शोधकर्ताओं द्वारा व्यक्त विचार हैं और आरबीआई के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। 

केंद्रीय बैंक ने अपने स्पष्टीकरण में लेख के कुछ हिस्सों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि सरकार द्वारा अपनाए गए निजीकरण के लिए क्रमिक दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि वित्तीय समावेशन के सामाजिक उद्देश्य को पूरा करने में एक शून्य पैदा नहीं होता है। लेख में विशेषज्ञों का कहना था कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के हालिया मेगा विलय के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का समेकन हुआ है, जिससे अधिक मजबूत और प्रतिस्पर्धी बैंक बने हैं।

लेख में कहा गया था, "इन बैंकों के निजीकरण का एक बड़ा धमाका अच्छे से ज्यादा नुकसान कर सकता है। सरकार पहले ही दो बैंकों के निजीकरण के अपने इरादे की घोषणा कर चुकी है। इस तरह के क्रमिक दृष्टिकोण से यह सुनिश्चित होगा कि बड़े पैमाने पर निजीकरण वित्तीय समावेशन और मौद्रिक संचरण के महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्यों को पूरा करने में एक शून्य पैदा नहीं करता है।"

वहीं, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने कहा, "इस प्रकार शोधकर्ताओं का विचार है कि एक बड़े धमाके के दृष्टिकोण के बजाय सरकार द्वारा घोषित एक क्रमिक दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।" गौरतलब है कि सरकार ने 2020 में 10 राष्ट्रीयकृत बैंकों का चार बड़े बैंकों में विलय कर दिया था। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटकर 12 रह गई है, जो 2017 में 27 थी।

(भाषा इनपुट के साथ)
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