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रघुराम राजन का दावा- PMO को पहले ही भेज दी थी हाई-प्रोफाइल बैंक डिफाल्टरों की लिस्ट, क्या कार्रवाई हुई?

By पल्लवी कुमारी | Updated: September 12, 2018 10:48 IST

आकलन समिति के चेयरमैन मुरली मनोहर जोशी को भेजे पत्र में रघुराम राजन ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग प्रणाली में धोखाधड़ियों का आकार काफी बढ़ रहा है।

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नई दिल्ली, 12 सितंबर: भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने ये दावा किया है कि बैंकिंग धोखाधड़ी से जुड़े सारे बड़े बैंक डिफाल्टरों की लिस्ट उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी थी। राजन ने संसद की एक समिति को पत्र लिखकर इस बात की जानकारी दी है कि उन्होंने पीएमो को बैंकिंग प्रणाली में धोखाधड़ियों की सूची भेजी गई थी।

आकलन समिति के चेयरमैन मुरली मनोहर जोशी को भेजे पत्र में राजन ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग प्रणाली में धोखाधड़ियों का आकार काफी बढ़ रहा है। हालांकि, पत्र में उन्होंने इस बात की भी जानकारी दी कि कुल गैर निष्पादित आस्तयों (एनपीए) की तुलना में अभी काफी छोटा है। रघुराम राजन ने इस बात का खुलासा एक संसदीय समिति को दिए नोट में यह कहा है। 

नहीं पता कार्रवाई कहां तक बढ़ी

राजन ने पत्र में लिखा में था, ''जब मैं  गवर्नर था तो रिजर्व बैंक ने धोखाधड़ी निगरानी के लिए एक प्रकोष्ठ बनाया था, जिससे धोखाधड़ी के मामलों की जांच एजेंसियों को रिपोर्ट करने के कार्य में समन्वय किया जा सके। मैंने पीएमओ को बहुचर्चित मामलों की सूची सौंपी थी। मैंने कहा था कि समन्वित कार्रवाई से हम कम से कम एक या दो लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। मुझे नहीं पता कि इस मामले में क्या प्रगति हुई। इस मामले को हमें तत्परता के साथ सुलझाना चाहिए। मैं ये पूछना चाहता हूं कि क्या इस मामले में कार्रवाई की गई है। गौरतलब है कि राजन सितंबर 2016 तक तीन साल के लिए रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे थे।  फिलहाल वह शिकॉगो बूथ स्कूल आफ बिजनेस में बतौर प्रोफेर पढ़ा रहे हैं। 

ये है कर्ज में डूबने की प्रमुख वजह 

रघुराम राजन का कहना है कि बैंक अधिकारियों के अति उत्साह, सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुस्ती तथा आर्थिक वृद्धि दर में नरमी डूबे कर्ज के बढ़ने की प्रमुख वजह है। उन्होंने कहा कि प्रणाली अकेले किसी एक बड़े धोखाधड़ी मामले को अंजाम तक पहुंचाने में प्रभावी नहीं है। उन्होंने कहा कि धोखाधड़ी सामान्य गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) से भिन्न होती है। 

जांच एजेंसियां बैंकों को ठहराती है दोषी

राजन ने कहा, ''जांच एजेंसियां इस बात के लिए बैंकों को दोष देती हैं कि वे धोखाधड़ी होने के काफी समय बाद उसे धोखाधड़ी का दर्जा देते हैं। वहीं बैंकर्स इस मामले में धीमी रफ्तार से इसलिए चलते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि एक बार वे किसी लेनदेन को धोखाधड़ी करार देते हैं तो धोखेबाजों को पकड़ने की दिशा में कोई खास प्रगति हो न हो, उन्हें जांच एजेंसियां परेशान करेंगी।''

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट) 

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