नई दिल्लीः सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) सहित सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में शीर्ष प्रबंधन पदों को निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों के लिए खोल दिया है। एसबीआई में प्रबंध निदेशक (एमडी) के चार पदों में एक पद निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों और सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों में कार्यरत व्यक्तियों के लिए खुला है। अब तक सभी एमडी और चेयरमैन पदों पर आंतरिक उम्मीदवारों की नियुक्ति हुई है।
संशोधित नियुक्ति दिशानिर्देशों के अनुसार अब निजी क्षेत्र के लिए एक एमडी पद उपलब्ध होगा। इसी प्रकार, संशोधित दिशानिर्देशों के तहत निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में कार्यकारी निदेशक (ईडी) पद के लिए आवेदन करने की अनुमति दी गई है।
एसबीआई के अलावा, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ इंडिया सहित 11 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हैं। मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने संशोधित दिशानिर्देश जारी किए। इसके अनुसार निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों के पास न्यूनतम 21 वर्ष का अनुभव होना चाहिए।
जिसमें कम से कम 15 वर्ष का बैंकिंग अनुभव और बैंक बोर्ड स्तर पर कम से कम दो वर्ष का अनुभव शामिल है। सार्वजनिक क्षेत्र के पद के लिए पात्र उम्मीदवार ऐसी रिक्तियों के लिए आवेदन कर सकेंगे। इन दिशानिर्देशों के लागू होने की तिथि से एसबीआई के एमडी का पहला पद रिक्त माना जाएगा।
पहली रिक्ति भरने के बाद आगामी रिक्तियों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में काम कर रहे पात्र उम्मीदवारों द्वारा भरा जाएगा। राष्ट्रीयकृत बैंकों में कार्यकारी निदेशकों (ईडी) के संबंध में प्रत्येक बैंक में एक पद सभी पात्र उम्मीदवारों के लिए खुला होगा, जिसमें निजी क्षेत्र के उम्मीदवार भी शामिल हैं। बड़े राष्ट्रीयकृत बैंकों में कार्यकारी निदेशकों (ईडी) के चार पद हैं, जबकि छोटे बैंकों में दो पद हैं।
बैंक कर्मचारी संगठनों ने शीर्ष पदों पर निजी उम्मीदवारों को लेकर विरोध जताया
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारी संगठनों ने शुक्रवार को सरकार के उस निर्णय का कड़ा विरोध किया जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों एवं बीमा कंपनियों में शीर्ष पदों पर निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों से भी आवेदन मांगे जाने की घोषणा की गई है। श्रमिक संगठनों का संयुक्त मंच यूएफबीयू (यूनाइटेड फोर ऑफ बैंक यूनियन) ने सरकार के इस निर्णय को राष्ट्रीय संस्थाओं के सार्वजनिक चरित्र पर हमला बताते हुए कहा कि यह इन संस्थानों के नेतृत्व का असल में निजीकरण करने की कोशिश है।
सार्वजनिक बैंकिंग कर्मचारियों के प्रतिनिधि संगठन ने कहा कि यह दिशानिर्देश संबंधित नियामकीय कानूनों में किसी तरह का संशोधन किए बगैर जारी किए गए हैं। यह निर्देश भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955, बैंकिंग कंपनी अधिनियम (1970 एवं 1980) और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) अधिनियम, 1956 के तहत नियुक्ति प्रक्रिया और सार्वजनिक उत्तरदायित्व के ढांचे को भी बदलता है।
नए दिशानिर्देशों के मुताबिक, एसबीआई के प्रबंध निदेशक (एमडी) और एलआईसी के एमडी का एक-एक पद निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों के लिए खुला रहेगा। गौरतलब है कि दोनों संगठनों में चार-चार एमडी होते हैं। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैंकों के कार्यकारी निदेशक (ईडी) के पद पर भी निजी क्षेत्र के उम्मीदवार आवेदन कर सकते हैं।
बैंक संगठन ने मांग की है कि सभी संशोधित दिशानिर्देश तत्काल प्रभाव से स्थगित किए जाएं और सभी सार्वजनिक बैंकों एवं एसबीआई में शीर्ष पदों पर नियुक्ति ढांचे की व्यापक समीक्षा की जाए। संगठन ने समीक्षा के लिए वित्तीय सेवाओं के विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक, एफएसआईबी, यूएफबीयू और स्वतंत्र न्यायविदों को मिलाकर एक संयुक्त हितधारक समिति बनाने की मांग की।
यूएफबीयू ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकिंग कैडर के भीतर आंतरिक उत्तराधिकार बनाए रखने पर जोर दिया ताकि नेतृत्व संगठन के भीतर से ही उभरे। संगठन ने चेतावनी दी कि बाहरी व्यक्ति की नियुक्ति, एपीएआर-आधारित मूल्यांकन को हटाना और निजी मानव संसाधन एजेंसियों के जरिये चयन करना सार्वजनिक बैंकों एवं एसबीआई के सार्वजनिक और संवैधानिक स्वरूप को कमजोर करता है। संघ ने कहा कि नीति में इस एकतरफा बदलाव से सार्वजनिक क्षेत्र के नेतृत्व पदों को खुले बाजार की नियुक्तियों में बदल दिया गया है, जिससे करियर-आधारित उत्तराधिकार और संस्थागत निरंतरता खतरे में पड़ती है।