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पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करने की घोषणा सही नहीं, विकास कार्यों पर पड़ेगा असर, अर्थशास्त्री ने कहा-आबादी के सीमित हिस्से को ही लाभ...

By भाषा | Updated: November 13, 2022 16:49 IST

अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि पुरानी पेंशन व्यवस्था (ओपीएस) लागू होने से सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले नौकरीपेशा लोगों को ही लाभ होगा जो आबादी का एक सीमित हिस्सा ही है।

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ठळक मुद्देकामगारों समेत तमाम लोगों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलना चाहिए।ओपीएस से नई नौकरियों के सृजन पर भी प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका जताई है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब ने सरकारी कर्मचारियों के लिये ओपीएस को लागू करने की घोषणा की है।

नई दिल्लीः कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करने की घोषणा के बीच अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इसके लिये वित्तीय संसाधनों का उपयोग करना एक ‘बड़ी भूल’ होगी और इससे औसत आर्थिक वृद्धि दर घटकर छह प्रतिशत पर आने के साथ अन्य विकास कार्यों पर भी असर पड़ेगा।

अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि पुरानी पेंशन व्यवस्था (ओपीएस) लागू होने से सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले नौकरीपेशा लोगों को ही लाभ होगा जो आबादी का एक सीमित हिस्सा ही है। वहीं निजी क्षेत्र में बड़ी संख्या में काम करने वाले कामगारों समेत तमाम लोगों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलना चाहिए।

उन्होंने ओपीएस से नई नौकरियों के सृजन पर भी प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका जताई है। पिछले कुछ महीनों में राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब ने सरकारी कर्मचारियों के लिये ओपीएस को लागू करने की घोषणा की है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और गुजरात में जारी विधानसभा चुनावों के दौरान कहा है कि इन राज्यों में सत्ता में आने पर वह ओपीएस लागू करेगी।

इससे पहले उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा जोरशोर से उठा था। जाने-माने अर्थशास्त्री और वर्तमान में बेंगलुरु स्थित डॉ. बीआर आंबेडकर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स यूनिवर्सिटी के कुलपति एन आर भानुमूर्ति ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ बातचीत में कहा, ‘‘नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस) विभिन्न स्तरों पर काफी सोच-विचारकर लागू की गयी है और यह स्वतंत्र भारत में सबसे बड़ा राजकोषीय सुधार है।

इससे सरकार का वित्तीय बोझ काफी कम हुआ है और राज्य सरकारों की राजकोषीय स्थिति भी बेहतर हुई है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर ओपीएस पूरे देश में लागू कर दी गयी तो इसका वित्तीय असर काफी व्यापक होगा। सार्वजनिक कर्ज का स्तर प्रबंधन-योग्य स्तर से ऊपर पहुंच जाएगा।

इतना ही नहीं, औसत जीडीपी वृद्धि दर पर भी असर पड़ेगा और सात प्रतिशत से अधिक वृद्धि की संभावना घटकर छह प्रतिशत पर आ सकती है।’’ आर्थिक शोध संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर लेखा चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए ओपीएस लागू करना आर्थिक नजरिये से नुकसानदायक है क्योंकि इसमें वित्तीय जोखिम है।

इस घोषणा का समय भी विशेष रूप से महामारी के बाद के राजकोषीय जोखिम और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं को देखते हुए अनुचित है। राजकोषीय बाधाओं को देखते हुए ओपीएस के क्रियान्वयन की गुंजाइश नहीं है...।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि सार्वजनिक वित्त और राजकाज का 'कल्याणकारी मॉडल' मजबूत करने के नाम पर ओपीएस लागू करने की बात की जाती है, लेकिन इसके वित्तपोषण के लिये वित्तीय संसाधनों का उपयोग करना एक भारी गलती होगी।’’

एक जनवरी, 2004 से लागू नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस) अंशदान पर आधारित पेंशन योजना है। इसमें कर्मचारी के साथ-साथ सरकार भी अंशदान देती है। पेंशन कोष विनियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) कानून, 2013 के तहत संचालित एनपीएस के दायरे में आने वाले कर्मचारियों को अपने वेतन और महंगाई भत्ते का 10 प्रतिशत अंशदान देना होता है।

इतना ही अंशदान सरकार करती थी। वर्ष 2019 में संशोधन के जरिये सरकार के अंशदान को बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया। पीएफआरडीए की देखरेख में कोष प्रबंधक जमा राशि का निवेश करते हैं। सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी समूचे कोष का 60 प्रतिशत निकाल सकते हैं, जबकि कम-से-कम 40 प्रतिशत राशि का उपयोग पंजीकृत बीमा कंपनी से पेंशन उत्पाद खरीदने में करना जरूरी होता है।

उसके आधार पर कर्मचारियों को मासिक आधार पर पेंशन मिलती है। वहीं पुरानी पेंशन व्यवस्था में कर्मचारियों की पेंशन सेवानिवृत्ति से पहले लिये गये अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत होती है और यह पूरी राशि सरकार की तरफ से दी जाती थी। यह पूछे जाने पर कि क्या ओपीएस बहाल होने से कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा में सुधार नहीं होगा, भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘ इससे केवल सरकारी कर्मचारियों को ही लाभ होगा। जो कामगार निजी क्षेत्र में काम करते हैं, उनके लिये क्या होगा। सामाजिक सुरक्षा का लाभ सबको मिलना चाहिए। बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं के जरिये इसका लाभ देना ज्यादा उपयुक्त है।’’

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस (आईआईपीएफ) की संचालन प्रबंधन मंडल की सदस्य भी भूमिका निभा रही लेखा चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘ओपीएस से केवल सरकारी कर्मचारी ही लाभान्वित होंगे, जो आबादी का सीमित हिस्सा है। इसके बजाय पुनर्वितरण न्याय के तहत सामाजिक सुरक्षा के लिये वित्तीय संसाधनों का उपयोग करना कहीं अधिक विवेकपूर्ण होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यदि संबंधित राज्यों के वित्त मंत्री इसे लागू करने के लिये वित्तीय संसाधन का निर्धारण नहीं करते हैं, तो यह खतरनाक होगा।

राजनीतिक अर्थव्यवस्था एक पेचीदा विषय है और इसे सावधानी से संभालने की जरूरत है।’’ चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘वित्तीय जोखिम और विश्लेषण पर आरबीआई के अध्ययन से पता चलता है कि ज्यादातर राज्यों में वित्त वर्ष 2017-18 से 2021-22 के दौरान पेंशन खर्च कुल राजस्व व्यय का औसतन 12.4 प्रतिशत है।

साथ ही आरबीआई का अनुमान है कि अधिक कर्ज वाले ज्यादातर राज्यों में पेंशन व्यय 2030-31 तक सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 0.70 से 0.30 प्रतिशत रहेगा। ऐसे में ओपीएस को लागू करना वित्तीय रूप से जोखिम भरा है।’’

भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘कुछ राज्यों में छठा वेतन आयोग की अनुशंसा भी अभी तक लागू नहीं हुई है। वहां पर ओपीएस बहाल होने से उन राज्यों की वित्तीय स्थिति पर ज्यादा असर पड़ेगा। फिर पेंशन पर अधिक राशि खर्च होने से संसाधन भी प्रभावित होंगे। इससे विकास के दूसरे क्षेत्रों में खर्च प्रभावित होंगे और नई नौकरियों के सृजन पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा।’’ 

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