अपनी मखमली आवाज से फैंस के दिलों में आजतक राज करने वाली गीता दत्त की आज पुण्यतिथि है। गीता दत्त का जन्म 23 नवंबर 1930 को बांग्लादेश के फरीदपुर में हुआ था और महज 41 वर्ष की आयु में गीता दत्त 20 जुलाई 1973 को इस दुनिया को छोड़कर चल बसीं। जिस वक्त गीता ने दुनिया को अलविदा कहा हर कोई सख्ते में था, फैंस को उनके अचानक चले जाने पर भरोसा ही नहीं हो रहा था।
गीता का पहला ब्रेक
गीता रॉय दत्त के पिता एक जम़ीदार हुआ करते थे। कहते हैं एक बार गीता रॉय अपने कमरे में कुछ गुनगुना रहीं थी। उसी समय वहां से एक संगीतकार गुजर रहे थे गीता की आवाज सुनते ही वो वहीं सुनने को रुक गए थे। उनके कहने के बाद ही उनके माता-पिता से उनको संगीत सिखाने की बात कही। उसस समय शायद कोई नहीं जानता होगा कि ये बच्ची आगे चलकर इतना नाम कमाएगी। इसके बाद साल 1946 में भक्त प्रहलाद फिल्म में गीता रॉय को गाने का मौका मिला।
गीता रॉय से बनीं दत्त
गीता रॉय से गीता दत्त बनने के पीछे एक प्रेम कहानी है। कहा जाता है कि एक दिन फिल्म बाज़ी में एक गाना रिकार्ड हो रहा था। उस रिकार्डिंग के दौरान गीता की मुलाकात निर्माता गुरू दत्त से हुई। उसके बाद गुरू दत्त और गीता दत्त एक दूसरे के दोस्त हो गए। ये दोस्ती धीमें धीमें प्यार में बदल गई और फिर साल 26 मई 1953 में गीता राय गीता दत्त बन गई।
प्यार में मिली बेवफाई
कहते हैं प्यार में मिली बेवफाई गीता बर्दाश्त नहीं कर पाई थीं। कहते हैं गीता दत्त की शादी के बाद पारिवारिक कारणों के चलते उनका ध्यान संगीत से हट गयाऔर धींमें धीमें उन्होंने संगीत से खुद को अलग कर लिया था। साल 1964 में गुरू दत्त की मौत के सदमें को गीता दत्त बर्दाश्त नहीं कर पाई और धीरे-धीरे हिंदी सिनेमा से दूर होती चलीं गईं।
जब करियर में हुई नाइंसाफी
गीता दत्त के साथ अपनों ने ही नहीं, प्रोफेशनल लोगों ने भी नाइंसाफी कीं। इस बात का सबसे बड़ा सबूत आशा भोंसले ने दिया था। फिल्म सुजाता के गाने ‘तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार’ गाने की जब रिकॉर्डिंग हो रही थी तो आशा और गीता दोनों ने ये गीत गाया था। लेकिन ऐनवक्त पर गीता के गाने को सेलेक्ट किया गया। लेकिन ग्रामोफोन कंपनी को नाम आशा का चला गया। सत्ताईस वर्ष तक यह गीत आशा के नाम से चलता रहा।
गुरुदत्त की फिल्मों में गीता दत्त
गीता दत्त ने गुरुदत्त की फिल्मों में अपनी आवाज का जादू बहुत से गानों में बिखेरा है। उनके मन की बेचैनी और छटपटाहट फिल्म ‘बाजी’, ‘आरपार’, ‘सीआईडी’, ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ और ‘चौदहवीं का चाँद’ में साफ महसूस की जाती है। ‘तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले’, ‘बाबूजी धीरे चलना, प्यार में जरा संभलना हाँ बड़े धोखे हैं इस प्यार में’, ‘ये लो मैं हारी पिया, हुई तेरी जीत रे’ तो बेहद हिट रहे।