बॉलीवुड में बिना फिल्मी बैकग्राउंड से अपनी पहचान बनाने वाले विनीत कुमार सिंह को किसी भी परिचय की जरूरत नहीं है. गैंग्स ऑफ वासेपुर (Gangs of Wassepur) के दानिश खान से लेकर मुक्काबाज के श्रवण कुमार सिंह तक, विनीत ने अपने हर किरदार से हमारा दिल जीत है. जल्द ही विनीत आपको फिल्म 'सांड की आँख' में नजर आने वाले है. पढ़िये विनीत कुमार सिंह से लोकमत न्यूज़ की ख़ास बातचीत-
बनारस का एक आम लड़का जो नेशनल लेवल बास्केटबॉल प्लेयर था, साथ ही मेडिकल की पढ़ाई की, फिर मुंबई आकर असिस्टंट डायरेक्टर बना, फिर गैंग्स ऑफ़ वासेपुर का दानिश खान फिर मुक्काबाज...कैसी रही की ये जर्नी ?
बहुत ही मजेदार और इंट्रेस्टिंग रही लेकिन जब पीछे मूड के देखता हूँ तो यही सोचता हूँ की जिस वक्त ये शुरू किया था तब ये नहीं पता था की रास्ते ये होंगे क्यूंकि मेरा कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था ना ही मेरी कोई ट्रेनिंग हुई थी। घर से अकेला एक बैग और अपना सपना लेके निकला था। कुछ पता नहीं था की ये कैसे होगा, बस एक जुनून था और उस जुनून के जो कुछ कर सकता था वो किया.
आप एनएसडी ज्वाइन करना चाहते थे लेकिन आपके पिताजी ने आपको करने नहीं दिया? आपको मैथ्स पड़ने लिए फोर्स करते थे, आपने एक्टिंग का कोर्स भी नहीं किया, तो फिर कैसे अपने ये मुकाम हासिल किया?
मेरा दिल लगता था एक्टिंग में, दरअसल स्कूल और कॉलेज से जब आते थे तब शाम को चेंज करके ग्राउंड पर खेलने निकल जाते थे। वहां रोज या तो जीतते थे या हारते थे। तो वो हार और जीत के साथ हैंडल करना जाने अनजाने में आ गया था। इसीलिए मै हमेशा बोलता हूँ की खेलना एक बड़े कमाल की चीज है। खेलने से आपको जिन्दगी का एक कमाल का नजरिया मिलता है क्यूंकि खेलते वक्त आप शारीरिक अंदरूनी और मेंटली आप तैयार होते हो। इस चीज ने मुझे अपनी मंजिल तक पहुचने में बहुत हेल्प की।
एक्टिंग एक ऐसी चीज है जो मुझसे खुद वा खुद हो जाती है। इसमें मुझे बहुत ज्यादा एफर्ट नहीं करना होता। बाकी चीजों में मै बहुत मेहमत करता हूँ। जैसे मेडिकल में आने के लिए बहुत मेहनत की, बहुत पढ़ाई की क्योंकि अपने पापा को मैंने वादा किया था। मेरे पापा मैथेमेटिक्नल थे। मेरी जिन्दगी भी ऐसी ही रही है कि 2 + 2 = 4 होता है।
बहुत पहले ही मेरे दिमाग में आ गया था की मुझे एक्टिंग करनी है क्योंकि ये मै कर सकता हूँ एहसास हो गया था। एक्टिंग करते मैं थकता नहीं हूँ। मेरी छोटी बहन और मेरे छोटे भाई ये दोनों मेरे सबसे पहले आलोचक और ऑडियंस थे।
जब दोस्तों के सामने 10वीं क्लास में सबसे पहले एक्टिंग की थी तो सब पेट पकड़ के हंसने लगे थे, सबने खूब मजाक बनाया और बोलते थे की तुमसे ना हो पायेगा, लेकिन आज वो ही दोस्त है जो जब मेरी फिल्म देखते है तो कॉल करते है। मुझे बहुत अच्छा लगता है और आज भी मै सबसे कनेक्टेड हूँ।
1999 में जब आप अकेले मुंबई आ रहे थे तब आपके मन में कोई डर था ? क्योंकि ना तो आपको किसी का स्पोर्ट था और नाही आपका फिल्मी बैकग्राउंड था, पापा का भी कोई स्पोर्ट नहीं था, मन में कोई शंका थी ?
नहीं बिलकुल भी नहीं, मै बस बहुत खुश था की मुंबई जा रहा हूँ क्योंकि घर से निकल पाना ही मुश्किल था। उस वक़्त मै मेडिकल कॉलेज में था, ऐसा मैंने पढ़ा था की मुंबई में जाकर बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है। तो मेरा प्लान यही था की बाल मन के हिसाब से की डॉक्टर बन जाऊंगा सुबह क्लीनिक में बैठूँगा और फिर शाम को निकल जाऊंगा स्ट्रगल करने के लिए। मेरा प्लान सच में यही था। क्योंकि घर से स्पोर्ट मिलना नहीं था, पापा को मानना मुश्किल था। तो डॉक्टर बनके ये मैं कर सकता था। पढ़ाई मैं छोड़ नहीं सकता था क्योंकि पापा को वादा किया था।
लेकिन कहीं ना कहीं ये सब मेरे जीवन में काम आया, लेकिन स्ट्रगल बहुत कठिन था पर मन में किसी भी तरह का डर नहीं था। एक बात मै हमेशा बोलता हूँ जब ईमानदारी से आप किसी चीज की तरफ बड़ते हो तो कठिनाई पर ध्यान नहीं जाता। मैं हर हाल में खुश रहने की कोशिश करता हूँ।
अभी तक आपने जितनी फिल्में की है जैसे गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, दास देव, मुक्काबाज अपना सबसे पसंदीदा किरदार आपको कौनसा लगता है ?
जब मै फिल्म कर रहा होता हूँ उस समय जो मेरा किरदार होता है वो मेरा सबसे पसंदीदा होता है। मेरे हर किरदार एक दूसरे से अलग होते है। मैं कोशिश करता हूँ की डिफरेंट और काम्प्लेक्स किरदार सेलेक्ट करूं।
फिल्म मुक्काबाज़ में आपने 2 साल तक बॉक्सर बनने की ट्रेनिंग ली, आप बिना सीखे भी एक्टिंग कर सकते थे ?
मुक्काबाज से पहले भी मेरे किरदारों के लिए मेरी तारीफ हुई लेकिन वो कभी नहीं हुआ जो मुक्काबाज ने किया। मुक्काबाज ने मेरे दस साल वापिस कर दिए। मुझे इस बात का एहसास था ये फिल्म मेरे लिए कुछ अलग ही साबित होगी, एक अकेली फिल्म, एक अच्छी फिल्म आपकी 20 फिल्मों से ज्यादा आपको देकर जाती है अब मै इस चीज़ को फॉलो कर रहा हूँ।
'सांड की आँख' आपकी अगली फिल्म है क्या किरदार निभा रहे है आप इस फिल्म?
वह अभी नहीं बता पाउँगा, क्योंकि अभी बहुत इनिशियल स्टेज है। मई अभी शूट कर रहा हूँ लेकिन ये ज़रूर है की बहुत ही अलग जो हमेशा से मेरी कोशिश रही है की कुछ अलग करूं , तो वैसे ही सांड की आँख में कुछ अलग है लेकिन अभी नहीं बता सकता क्योंकि एथिकल्ली ये सही नहीं है। थोड़ा सा इंतजार कर लीजिये दिवाली पर फिल्म रिलीज हो रही है।
आपके अपकमिंग प्रोजेक्ट्स क्या है ?
आजकल मै लगातार शूट कर रहा हूँ, जल्द ही 'Tryst with Destiny' जो नेहरू जी की स्पीच थी। फिल्म बहुत अच्छी बनी है, इसके अलावा है आधार जो आधार कार्ड से रिलेटेड है। ये भी एक फीचर फिल्म है, सब में अलग किरदार है। नेटफ्लिक्स का एक शो है बार्ड ऑफ बल्ड जिसे रेड चिलीज ने प्रोड्यूज किया हैय़ सांड की आँख फिल्म तो कर ही रहा हूँ, जुलाई के बाद से रिलीज होने शुरू हो जाएँगी।
फिल्मी बैकग्राउंड ना होने की वजह से एक्टर्स को बॉलीवुड में स्ट्रगल करना पड़ता है. क्या nepotism इसकी वजह है ?
मैं मेरी राम कहानी जानता हूँ। मेरा अपने सोचने का तरीका है, मैं इस गलत नहीं मानता। अब अगर कोई बच्चा किसी फिल्म एक्टर के घर में पैदा होता है तो उसमे उसकी क्या गलती। हर माँ बाप अपने बच्चे को अपने से आगे देखना चाहता है। उसके अच्छे कर्म रहे होंगे, मेरे उतने अच्छे नहीं रहे होंगे। लेकिन मेरे इतने अच्छे कर्म रहे होंगे की मई एक अध्यापक के घर पैदा हुआ, लेकिन ये जरूर कहना चाहूँगा की अगर कोई नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से टैलेंट आया है और अच्छा कर रहा है तो उसके काम के लिए उसे सराहना करना चाहिए। मेरे पापा हमेशा कहते थे की मैथ्स पड़ो क्यूंकि वो गणितज्ञ थे तो क्या वो भी भाई-भतीजावाद करते थे ? एक्टर अपने बेटे को ये ही बोलेगा ना की एक्टिंग करो, मै ऐसा नहीं सोचता।