PM Narendra Modi Exclusive Interview: 'केवल एक परिवार के लिए एक परिवार द्वारा चलाई जाने वाली पार्टी है कांग्रेस'
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 28, 2019 10:42 AM2019-04-28T10:42:41+5:302019-04-29T07:26:36+5:30
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लोकमत समूह के संपादकीय संचालक ऋषि दर्डा और लोकमत के विशेष संवाददाता यदु जोशी ने खास बातचीत की। पढ़िए इस विशेष साक्षात्कार के प्रमुख अंश...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मार्च के शुरुआती सप्ताह से ही लगातार लोकसभा चुनाव प्रचार में भिड़े हुए हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में हर रोज तीन से चार सभाएं संबोधित करते हैं. लोगों से संवाद के आधार पर उनका पूरा विश्वास है कि उनकी सरकार के खिलाफ कोई हवा नहीं है और वह सत्ता में वापस लौट रहे हैं. उनका मानना है कि कांग्रेस केवल एक परिवार के लिए एक परिवार द्वारा चलाई जाने वाली पार्टी है. अपनी व्यस्त दिनचर्या के बीच मुंबई में उन्होंने प्रदेश के सबसे बड़े मीडिया हाउस 'लोकमत' के साथ बातचीत का वक्त निकाला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लोकमत समूह के संपादकीय संचालक ऋषि दर्डा और लोकमत के विशेष संवाददाता यदु जोशी की खास बातचीत के प्रमुख अंश...
2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर देखने को मिली थी, जिसे कुछ लोगों ने सुनामी तक कह डाला था. क्या आपको लगता है कि देश में अभी भी मोदी लहर मौजूद है?
मैं देश में जहां भी जाता हूं, अभूतपूर्व प्यार, स्नेह, उत्साह और समर्थन देखता हूं. हकीकत में तो यह पहला ऐसा चुनाव है जहां लोगों ने खुद को प्रधानमंत्री के प्रचार और चयन की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली है. लोगों द्वारा हमारे अच्छे काम के प्रचार-प्रसार के लिए जो अभियान चलाया जा रहा है, उसने मुझे भावुक कर दिया है. उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक, जवानों से बुजुर्गों तक पेशवरों से किसानों तक, हर कोई हमारे समर्थन में खड़ा है. इसने सत्ता समर्थक लहर को जन्म दिया है जो कि बेहद दुर्लभ बात है. लोगों ने हमारा अच्छा काम देखा है, उन्हें उसका लाभ मिला है और इसलिए यह नहीं चाहते कि यह काम रुके. इसे दूसरे नजरिए से देखते हैं. इतिहास की ही बात करें तो कांग्रेस के नेता यह बात कभी भी नहीं स्वीकारते हैं कि यह चुनाव हारने जा रहे हैं. फिर भले ही उनकी जमानत क्यों ना जब्त हो जाए. अंतिम दिन तक वह यही कहते रहेंगे कि यह चुनाव जीतने जा रहे हैं. अब आइए देखें कि इस बार यह क्या कह रहे हैं. वह खुले तौर पर स्वीकार कर रहे हैं कि यह बहुत से दूर रहेंगे लेकिन 2014 की स्थिति में सुधार करेंगे. वह हकीकत ही सत्ता-समर्थक लहर का सबसे बड़ा प्रतीक है कि कांग्रेस पार्टी जीत की बात तक नहीं कर रही है.
आप हमेशा से ही वंशवाद और भाई-भतीजावाद का विरोध करते रहे हैं, लेकिन अब देखने में आ रहा है कि भाजपा में इस तरह की विरासत वाले नेता और वंशवाद आ गया है. हाल ही में महाराष्ट्र के कुछ राजनीतिक परिवार भाजपा से जुड़े हैं.
क्या कांग्रेस केवल एक परिवार के लिए एक परिवार द्वारा नहीं चलाई जाती? क्या राकांपा केवल एक परिवार के लिए एक परिवार के लिए नहीं चलाई जाती? क्या तेदेपा केवल एक परिवार के लिए और एक परिवार द्वारा नहीं चलाई जाती? क्या राजद केवल एक परिवार के लिए और एक परिवार द्वारा नहीं चलाई जाती? क्या सपा केवल एक परिवार के लिए और एक परिवार द्वारा नहीं चलाई जाती? इन सवालों के लिए आपका और मेरा जवाब एक समान होगा. दूसरी ओर क्या आप बता सकते हैं कि भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन होगा? इसलिए इन दलों और भाजपा के बीच एक आधारभूत फर्क है. वंशवादी पार्टियां वो हैं जो केवल एक परिवार के लिए अस्तित्व में होती हैं. अगर परिवार का कोई एक सदस्य इसका नेतृत्व नहीं कर रहा हो तो दूसरा सदस्य आगे आकर कमान थाम लेगा. यह बस एक परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है. यह वंशवाद है. इसलिए एक परिवार विशेष की निजी कंपनी की तरह चलाई जाने वाली पार्टियों की तुलना ऐसी पार्टी से कतई नहीं की जा सकती, जिससे कोई परिवार जुड़कर जमीनी स्तर पर काम करना चाहता हो.
कुछ उत्तर प्रदेश की बात की जाए जहां प्रियंका गांधी के आने से बहुत उत्साह है क्या इससे कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी?
चलिए मैं आपसे पूछता हूं भाजपा में बहुत सारे महासचिव हैं. लोकमत या किसी अन्य मीडिया में कितने महासचिवों के साक्षात्कार प्रकाशित किए गए हैं? कितने टीवी चैनलों ने दूसरे महासचिवों के साक्षात्कार प्रसारित किए? उनके परिवार से कोई प्रधानमंत्री नहीं था, केवल इसलिए उनका कोई प्रचार न किया जाए, क्या यह अन्याय नहीं है? मेरे पदग्रहण समारोह के वक्त राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं थे और अगली पंक्ति में नहीं बैठे थे. सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं और पहली पंक्ति में बैठी थीं. मीडिया ने इसे अन्याय पूर्ण करार दिया. इससे पहले न जाने कितने भाजपा नेता पीछे की पंक्ति में बैठे होंगे लेकिन किसी ने उस ओर ध्यान नहीं दिया.
भाजपा को विवादास्पद बयानों और साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी के कारण भारी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. आपकी इस पर क्या राय है?
अगर विवाद की कोई बात है तो वह साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी नहीं है. यह कांग्रेस और उसकी कार्यप्रणाली का जटिल ताना-बाना है जो ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की सोच रखने वाली पांच हजार साल पुरानी संस्कृति को बदनाम करने का भरसक प्रयास कर रही है. कांग्रेस की वोट बैंक की गंदी राजनीति ने उस संस्कृति को मैला किया, जिसने दुनिया को ज्ञान और वैज्ञानिक जानकारी दी. तो यह कांग्रेस का पाप है जिसका हमें सामना करना पड़ रहा है. आपको याद होगा 1984 में जब इंदिरा गांधी की मौत के बाद उनके बेटे ने कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती डोलती है. उसके बाद हजारों सिख भाइयों-बहनों को सड़कों पर मार डाला गया. फिर भी वह प्रधानमंत्री बने और हमारे तथाकथित निष्पक्ष मीडिया में तब सन्नाटा था. कांग्रेस की सरकार ने ऐसे व्यक्ति को भारत रत्न भी दे डाला. तब किसी की कांग्रेस से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं हुई. आज जबकि कांग्रेस एक ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना रही है जिस पर 1984 के दंगों में भाग लेने के गंभीर आरोप हैं, वही राज्य जहां साध्वीजी उम्मीदवार हैं, तो फिर एक बार तथाकथित निष्पक्ष मीडिया मौन साधे हुए है. तथाकथित निष्पक्ष मीडिया तब भी मौन ही है जब कांग्रेस के पूर्व व वर्तमान अध्यक्ष जमानत लेकर अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं. आपको हेडलाइंस में इनका जिक्र कभी भी ‘घोटाले के आरोपी’ या ‘जमानत पर रिहा’ के तौर पर नहीं मिलेगा. तो क्या इन सारे मामलों में साध्वी प्रज्ञा के अलावा किसी अन्य की उम्मीदवारी को विवादित करार दिया गया है? जब अदालतों ने कह दिया है कि साध्वी प्रज्ञा चुनाव लड़ सकती हैं तो उनकी उम्मीदवारी पर सवाल कैसे उठाया जा सकता है? साध्वी प्रज्ञा ठाकुर प्रतीक है जो हमें कांग्रेस द्वारा देश और जनता के साथ किए गए पापों की याद दिलाता है. वह डरे हुए हैं कि उनके द्वारा काफी सावधानी के साथ किए गए दुष्प्रचार की कलई खुलने वाली है. और वह हर पाप की कीमत अदा करेंगे.
बेरोजगारी की दर बढ़ी है. 2019 में सीएमआईई के मुताबिक बेरोजगारी की दर 7.2 प्रतिशत थी. इससे कैसे निपटा जाएगा?
आपके सवाल का पहला हिस्सा ही त्रुटिपूर्ण है. पिछले पांच सालों में विभिन्न सेक्टरों में युवाओं के लिए रोजगार की संभावनाओं में भारी वृद्धि हुई है. बेरोजगारी बढ़ने का यह दावा हकीकत के आइने में खरा नहीं उतरता. हमारी शायद पहली ऐसी सरकार है, जिसने रोजगार की स्थिति पर बेहद विस्तृत आंकड़े उपलब्ध कराए हैं. मुद्रा योजना से मदद पाने वाले 4.5 करोड़ लोगों का पहली बार उद्यमी बनना रोजगार उपलब्ध कराना है. ईपीएफओ और ईएसआईसी से 1.2 करोड़ नये लोग जुड़े हैं जो रोजगार उपलब्धि का प्रमाण है. सीआईआई के सव्रेक्षण के मुताबिक अकेले सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों के क्षेत्र में ही पिछले चार साल में रोजगार के छह करोड़ अवसर पैदा हुए हैं. नेस्कॉम के मुताबिक आईटी-बीपीएम, रिटेल, टेक्सटाइल और ऑटोमोटिव सेक्टर में 2014 से 2017 के दरमियान 1.4 करोड़ लोगों के लिए रोजगार तैयार हुआ है. अब मैं जो अगले कुछ तथ्य देने जा रहा हूं उसके बारे में भी सोचिएगा. हम दुनिया में सबसे तेजी से तरक्की करती आर्थिक शक्ति हैं, जो साथ ही साथ गरीबी को भी सबसे तेजी से खत्म कर रही है. 2018 में हमने चीन से भी ज्यादा विदेशी निवेश को आकर्षित किया. ऐसा पिछले 20 साल में पहली बार हुआ था. हम पिछली सरकार की तुलना में सड़कें, रेलवे, एयरपोर्ट, हाइवे, मकानों का दोगुनी तेजी से निर्माण कर रहे हैं. तो जब आप देश में रोजगार की स्थिति की चर्चा करते हैं, क्या आपको लगता है कि यह उपलब्धियां बिना रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए हासिल की जा सकती हैं? हमारा दल इकलौता ऐसा दल है, जिसने ज्यादा रोजगार के लिए निवेश का विस्तृत ब्ल्यू प्रिंट तैयार किया हुआ है. हमारी योजना पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, 50000 नए स्टार्ट अप्स, राष्ट्रीय राजमार्गो की लंबाई दोगुनी, एयरपोर्ट्स की संख्या दोगुनी, इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में 100 लाख करोड़ रु. के निवेश, कृषि व ग्रामीण क्षेत्र में 25 लाख करोड़ रु. के निवेश की है. इसका जिक्र हमारे संकल्प पत्र में है और यह रोजगार निर्माण को नई ऊंचाई तक ले जाएगा. मुद्रा योजना की अभूतपूर्व कामयाबी के बाद , जिससे 17 करोड़ उद्यमियों को 10 लाख रु. तक का कर्ज मिल चुका है, अब हम एक नई योजना लाएंगे, जिसमें कर्ज की राशि 50 लाख रु. होगी. यह हमारे युवाओं को रोजगार सृजन की अभूतपूर्व क्षमता से सुसज्ज कर देगा.
कहा जाता है कि कारोबारी, उद्योगपति अधिकारियों द्वारा लगातार परेशान किए जाने से नाराज हैं. आपका क्या कहना है?
यह विचार विपक्ष का लगता है. मैं अपने पक्ष में कुछ तथ्य रखना चाहूंगा. मैं आपको बताऊंगा कि हमने कारोबारियों के लिए माहौल सुधारने के लिए क्या कदम उठाए हैं. हमारे दो ‘टी’ वाले कदम-ट्रांसपेरेंसी (पारदर्शिता) और टेक्नाेलॉजी (प्रौद्योगिकी) ने कारोबार के लिए माहौल सुधारा है और बातों को और अधिक आसान बना दिया है. प्रौद्योगिकी के साथ हमने अनेक संस्थानों में कामकाज को बड़े पैमाने पर पारदर्शी बना दिया है. वास्तविकता में संप्रग के संस्थागत भ्रष्टाचार को हमने संस्थागत पारदर्शिता और ईमानदारी में बदल डाला है. पहले दिन से ही हमारा लक्ष्य लालफीताशाही को खत्म करना रहा है. कारोबार करने में आसानी के सूचकांक में हमारी स्थिति में सुधार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. इसमें निर्माण की अनुमति और बिजली की उपलब्धता का बड़ा योगदान रहा है. कारोबारियों के लिए यही सबसे बड़ी बाधा रहे थे. इन क्षेत्रों में हमारे काम के अब पुख्ता सबूत हैं. ऑनलाइन आवेदन, प्रोसेसिंग, सिंगल विंडो प्रणाली, मंजूरी में तेजी तकरीबन हर क्षेत्र में कार्यप्रणाली सुचारू हुई है. दस्तावेज और प्रक्रिया की लंबाई में भी कमी से काम आसान हुआ है. 2014 में कारोबार शुरू करने के लिए 32 दिन का वक्त लगता था. 2019 में यह 16 दिन हो चुका है. एक कंपनी की स्थापना का काम तो केवल एक दिन में ही किया जा सकता है. हमने ऑनलाइन आवेदन और पर्यावरण मंजूरी में गति लाकर देरी के मूल कारणों को दूर कर दिया है. जीएसटी को सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से इस तरह से तैयार किया गया है कि इंस्पेक्टर राज खत्म हो गया है. रिटर्न से लेकर रिफंड सबकुछ ऑनलाइन होता है. जीएसटी के कारण ऑक्ट्राय पर लंबी लाइनें और बेवजह की परेशानी समाप्त हो गई है. जीएसटी के अस्तित्व में आने के बाद अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से जुड़े कारोबारियों की संख्या दोगुनी हो गई है. आपको लगता है कि यह प्रणाली मुश्किलों भरी होती तो ऐसा होता? हकीकत यह है कि आज ईमानदार कारोबारी, व्यापारी और उद्योगपति हमारी सरकार के पारदर्शी, ईमानदार प्रयासों से खुश हैं. केवल भाजपा ही उद्यमियों की आकांक्षाओं और जरूरतों को समझती है. हमने छोटे कारोबारों पर बड़े पैमाने पर करों में कटौती की है. हमने राष्ट्रीय कारोबारी कल्याण बोर्ड का गठन कर कारोबारियों के लिए पेंशन योजना का भी वादा किया है.
क्या आपको लगता है कि नोटबंदी कामयाब रही? इसमें कहां गलती हुई? क्या नोटबंदी का एक और दौर आएगा?
काले धन की समस्या को हर कोई जानता है. किसी को तो कदम उठाना था. काले धन के खिलाफ लड़ाई में हमें बहुत अच्छे परिणाम मिले हैं. नोटबंदी की आलोचना करने वाले बिना तथ्यों के आलोचना करते हैं. क्या आपको पता है कि काले धन के खिलाफ हमारे कदमों के चलते पिछले साढ़े चार साल में 1 लाख 30 हजार करोड़ रु. की अघोषित रकम बाहर आई है? क्या आपको पता है कि इसकी वजह से 50 हजार करोड़ रु. से ज्यादा की परिसंपत्तियां जब्त की गई हैं? क्या आपको पता है कि 6900 करोड़ रु. की बेनामी संपत्तियां और 1600 करोड़ रु. की विदेशी परिसंपत्तियां जब्त की गई हैं? क्या आपको पता है कि 3,38,000 शेल कंपनियों का पता लगाकर उनका पंजीयन रद्द करते हुए संचालकों को अपात्र घोषित किया गया है? क्या आपको पता है कि कर आधार दोगुना हुआ है जो नोटबंदी का ही परिणाम है? क्या आपको पता है कि अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक से औपचारिक में बड़े पैमाने पर बदलाव हुआ है, जिससे कामकाज की परिस्थितियों और पारिश्रमिक में सुधार हुआ है? विपक्षियों द्वारा नोटबंदी की आलोचना स्वाभाविक है क्योंकि उनकी बहुत संपत्ति चली गई, लेकिन तथ्य इसके प्रभाव का जीवंत उदाहरण हैं.
स्वच्छ भारत एक कामयाब योजना है, जिसका असर कई शहरों में देखने को मिलता है. लेकिन मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया जैसी कुछ योजनाएं उम्मीद के मुताबिक गति नहीं पकड़ सकीं.
आपका यह कहना गलत है. मेक इन इंडिया और स्टार्ट अप इंडिया जैसी योजनाओं को खारिज कर देना उन लाखों भारतीय कारोबारियों और उद्यमियों के साथ अन्याय होगा जो इससे लाभ ले रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं. भारत में मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग का ही उदाहरण ले लीजिए. क्या किसी ने सोचा था कि दुनिया में मोबाइल बनाने की सबसे बड़ी यूनिट भारत में होगी? आपके लिए एक और रोचक तथ्य पेश है. मोबाइल और उसके कलपुर्जे बनाने की केवल दो फैक्ट्रियों की तुलना में आज देश में 268 इकाइयां हैं. क्या यह भारत की संभावनाओं को मिली पहचान नहीं है? दरअसल ‘मेक इन इंडिया’ की ही बदौलत आज देश में रक्षा उपकरणों के उत्पादन में 80 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. उचित निवेश के साथ हमारे इंजीनियरों को कुछ नया सोचने, कुछ नया गढ़ने का मौका मिल रहा है. दुनिया की कुछ मेट्रो सेवाओं के लिए डिब्बों का उत्पादन भारत में हो रहा है. भारत की पहली ‘सेमी-हाईस्पीड’ ट्रेन ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ तो भारत के ‘मेक इन इंडिया’ की पहल का ही परिणाम है. अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां अब पहले की तुलना में भारत का ज्यादा रुख कर रही हैं. हमारा देश अब निवेश के लिहाज से दुनिया का सबसे पसंदीदा देश बन गया है. जब हमने 2014 में सत्ता संभाली थी तो भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 35 अरब डॉलर था. यह आंकड़ा पांच वर्षो में लगभग दोगुना हो चुका है. अपनी इंजीनियरिंग की क्षमताओं के लिए ख्यात जापानी कंपनियां अब भारत में कार बनाकर अपने ही देश को निर्यात कर रही हैं. क्या यह ‘मेक इन इंडिया’ की पहल को मिली अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति नहीं है? अगर भारतीय इंजीनियरिंग को अपना कौशल दिखाने के लिए मंच मिल रहा है तो भारतीय स्टार्ट-अप्स भी पीछे नहीं हैं. आज भारत दुनिया का सबसे बड़े स्टार्ट-अप हब्स में से एक है. भारत में स्टार्ट-अप में आई क्रांति की सबसे अच्छी बात यह है कि यह क्रांति दूसरे और तीसरे चरण के शहरों में हो रही है. जल्द ही भारत के हर एक जिले के पास स्टार्ट-अप की कामयाबी की अपनी एक कहानी होगी. सारी दुनिया इतने कम वक्त में भारत द्वारा इस क्षेत्र में की गई तरक्की को देखकर हैरान है. आज भारत को समस्याओं के समाधान के लिए दूसरे देशों का मुंह ताकने की जरूरत नहीं है. हमारे युवा भारत की विशिष्ट समस्याओं के लिए विशिष्ट समाधान उपलब्ध करा रहे हैं.
आर्थिक पहलू की बात की जाए तो कई कदम उठाए गए हैं. 1984 के बाद यह पहला मौका था जब सरकार स्पष्ट बहुमत से बनी थी. आपको लगता है कि इतने सशक्त जनसमर्थन के बावजूद बहुत कम बिल पास हुए?
हम हमारी सरकार के नेतृत्व में विधायी कार्यों में कामयाबी पर खुश हैं, हमें नहीं लगता कि किसी सरकार की कामयाबी केवल पारित बिलों से ही आंकी जा सकती है. ‘एक्शन नॉट एक्ट्स’ ही हमारा लक्ष्य रहा है. अंत में महत्वपूर्ण यह है कि हम कितने गरीबों की जिंदगी को सुधारने में कामयाब रहे. और इस मापदंड के आधार पर मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूं कि हमने बहुत अच्छा काम किया है. आपको याद होगा कि खाद्य सुरक्षा कानून कितने गाजे-बाजे के साथ लाया और संसद में पारित किया गया था. याद कीजिए उसे कितनी प्रशंसा मिली थी, लेकिन जब हम 2014 में सत्ता में आए तो यह केवल 11 राज्यों में लागू था. हमने यह सुनिश्चित किया कि यह थोड़े से ही समय में सारे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू हो जाए. इसी तरह से 2014 में चर्चा इस बात की थी कि सरकार साल में 10 सिलेंडर देगी या 12. लेकिन 2014 में भारत के केवल 55 प्रतिशत घरों में ही गैस कनेक्शन था. पांच वर्ष की बेहद कम अवधि में हमने गैस कनेक्शन को 90 प्रतिशत घरों तक पहुंचा दिया है. यह कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे हमने साबित कर दिया कि लोगों की भलाई केवल कानूनों पर ही निर्भर नहीं करती.
गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर आपको कभी सहयोगियों की चिंता का सामना नहीं करना पड़ा था, सहयोगी दलों के साथ कामकाज का अनुभव कैसा रहा, इस दौरान कुछ ने आपका साथ भी छोड़ा?
हम हमेशा से ही क्षेत्रीय आकांक्षाओं को महत्व देते रहे हैं. एक राज्य का लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के कारण मैं जानता हूं कि देश के विकास में क्षेत्रीय आकांक्षाओं का कितना महत्व है. 2014 में हमें अपने बूते ही बहुमत मिल गया था. फिर भी हमने सरकार के गठन में सहयोगियों को साथ लिया और पिछले पांच साल में उनके योगदान के लिए उनके शुक्रगुजार भी हैं. हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करते हैं. राष्ट्र के हित में हम सबके साथ मिलकर, न केवल हमारे सहयोगी बल्कि विपक्ष भी, काम करने में यकीन रखते हैं.
क्या आपको बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए सहयोगी दलों की जरूरत पड़ेगी?
हमारा प्रदर्शन 2014 से बेहतर रहेगा और हमारे साथ ही हमारे सहयोगी दल भी तरक्की करेंगे. उनका भी प्रदर्शन 2014 से बेहतर रहेगा.
अगले पांच साल में पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों को आप किस नजर से देखते हैं?
पाकिस्तान को आतंकवाद को प्रोत्साहित करना न केवल रोकना होगा, बल्कि उसकी यह कोशिश सबको दिखनी चाहिए, पुष्टि योग्य और सुस्पष्ट होना चाहिए. यही बात उसके साथ हमारे रिश्तों को निर्धारित करेगी.
क्या आप सभी विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव के साथ कराने के पक्षधर हैं? क्या यह संभव है?
यह एक ऐसा विचार है जिस पर अमल का वक्त आ गया है. राजनीति के तमाम दिग्गज वक्त-वक्त पर इसका समर्थन कर चुके हैं. चुनाव हमारे देश में त्योहार की तरह होते हैं. किसी भी त्योहार की तरह हम इसके लिए विशेष संसाधन जुटाते हैं, वक्त देते हैं और इसे कामयाब बनाने के लिए पूरे प्रयास करते हैं. लेकिन लगातार सालभर राष्ट्रीय या फिर किसी न किसी राज्य में चुनाव का यह चक्र चलने से आर्थिक बोझ तो पड़ता ही है. अधिकारियों, स्कूली अध्यापकों, सुरक्षाबलों को कहीं न कहीं तैनात होना पड़ता है. यह हमारे नियमित विकास कार्यों को प्रभावित करता है. साथ ही प्रचार की लंबी अवधि के दौरान चुनाव आचार संहिता के चलते भी विकास संबंधी फैसलों में देरी होती है. साथ ही यह हमारे कामकाज के ढांचे को भी प्रभावित करता है. हो सकता है केंद्र में राज्य की तुलना में अलग सरकार हो. चुनावों में उनके बीच मुकाबला हो और चुनावी जोश में वह कुछ ऐसी बातें कर दें जिससे उनके सामान्य संबंधों में तनाव आ जाए. इसलिए हमारे देश में सहकारी संघवाद की स्वस्थ संस्कृति के लिए जरूरी है कि चुनाव एक साथ ही कराए जाएं.
भारत में युवा मतदाताओं का हिस्सा सबसे बड़ा है. युवा राजनीति से क्यों नाराज हैं और इस स्थिति को कैसे बदला जा सकता है?
वंशवाद की राजनीति युवाओं को नाराज करती है. भ्रष्टाचार युवाओं को नाराज करता है. रिमोट कंट्रोल से चलने वाली कमजोर सरकार युवाओं को नाराज करती है. नौकरशाही के कारण होने वाला विलंब युवाओं को नाराज करता है. जाति आधारित विभाजन युवाओं को नाराज करता है. युवाओं को लगता है कि देश इन बुराइयों से नहीं निपट सकता, इसलिए भी वह नाराज है. लेकिन पिछले पांच सालों में उन्होंने बदलाव देखा है. उन्होंने देखा है कि वंशवाद की राजनीति को चुनौती दी जा सकती है, भ्रष्टाचार से जंग की जा सकती है. उन्होंने मजबूत और निर्णय लेने वाली सरकार देखी है, जो लोगों की इच्छा के मुताबिक कदम उठाती है. उन्होंने देखा है कि नौकरशाही की सुस्ती दूर की गई है. पांच साल पहले जो नामुमकिन था, वह मुमकिन दिख रहा है. यह युवाओं को आत्मविश्वास देकर उनमें उम्मीद जगा रहा है. हर कदम पर युवाओं का साथ मिल रहा है. वह दिन अब गए जब युवा को भ्रष्टाचार और निकम्मी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरना पड़ता था. आज हमारा युवा सकारात्मकता और संभावनाओं के साथ दमक रहा है. ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की कमान भी युवाओं ने ही थामी है. समुद्र तटों से नदियों के घाटों तक, पड़ोस से बगीचे तक हमारा युवा स्वच्छता की क्रांति ला रहा है. युवाओं ने न केवल खुद डिजिटल भुगतान को अपनाया है बल्कि बड़े-बुजुर्गों को भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया है. हमारे युवा तेजी के साथ दुनिया में शीर्ष पर पहुंच रहे हैं. छोटे शहरों, कस्बों, गांवों के युवाओं ने भी इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है, जो कुछ वर्ष पहले अकल्पनीय था. 2014 में हमारे आकांक्षाओं से लबरेज दृष्टिकोण को युवाओं, खासतौर पर पहली बार मतदान कर रहे युवाओं का साथ मिला था. पिछले पांच साल के हमारे काम के कारण तय है कि 2019 में भी हमें पहली बार मतदान कर रहे युवाओं का शत-प्रतिशत साथ मिलेगा.
महाराष्ट्र में आपका सहयोगी दल शिवसेना लगातार आपके और भाजपा के खिलाफ टिप्पणियां करता रहा. केवल दो महीने पहले वह वापस लौटे, गठबंधन का हिस्सा बने और अब सरकार की तारीफ कर रहे हैं.
हमें यह बात नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा और शिवसेना पिछले चार साल से महाराष्ट्र में कामयाब तरीके से सरकार चला रहे हैं. हमारी जोड़ी दशकों पुरानी है. यह एक ऐसा गठबंधन है जिसे बालासाहब ठाकरे और अटलजी जैसे दिग्गजों का आशीर्वाद हासिल है. हम तभी से राजनीति में हमजोली रहे हैं. हमारे दोनों दल न केवल साथ-साथ बढ़े हैं बल्कि हमारी विचारधारा में भी समानताएं हैं.
मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे पहले आपके प्रशंसक थे. लेकिन अब उन्होंने मोदी-शाह के खिलाफ अभियान सा छेड़ दिया है. इस बारे में आपको क्या लगता है?
यह राजनीति का हिस्सा है. कई बातों में आजकल आउटसोर्सिग की जाती है. यह भी ठीक वैसा ही है. जनता होशियार है. कौन क्या और किसलिए बोल रहा है जनता को अच्छी तरह से समझता है और मतदान में वह इस बात को दिखा भी देती है. गुजरात में भी विधानसभा चुनावों के दौरान ऐसी ही ‘आउटसोर्सिग’ की गई थी. कांग्रेस के लोगों ने कुछ युवकों का हाथ थामकर उनका इस्तेमाल कर लिया, लेकिन तब वहां भी कुछ हासिल नहीं हुआ था.
कई वरिष्ठ जजों और नौकरशाहों का कहना है कि उच्चतम न्यायालय, रिजर्व बैंक और सीबीआई जैसे शीर्ष संस्थानों में सरकार का हस्तक्षेप देखने को मिल रहा है. आपका क्या मत है?
किसी जज ने नहीं कहा है कि सरकार का उच्चतम न्यायालय के कामकाज में हस्तक्षेप देखने को मिला है. देश उम्मीद करता है कि मीडिया ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के वक्त केवल अफवाह फैलाने वाला नहीं बल्कि जिम्मेदार बने. जहां तक सीबीआई की बात है तो आंतरिक संस्थागत संघर्ष पर हमने तत्काल कदम उठाते हुए यह सुनिश्चित किया कि संस्था का कामकाज प्रभावित न हो. याद करिए! मैं कांग्रेस के संस्थानों के दुरुपयोग का शिकार रहा हूं. सभी जानते हैं कि जब मैं गुजरात में था तो उन्होंने मुङो परेशान करने के लिए संस्थानों का कैसे इस्तेमाल किया था. लेकिन मैंने अपने लोकतंत्र पर भरोसा रखा और बेदाग बनकर निकला. ‘संस्थान खतरे में हैं’ कांग्रेस का पुराना और पसंदीदा राग है. खासतौर पर ऐसे संस्थानों के लिए जो उनके मुताबिक नहीं चलते. अगर न्यायपालिका कांग्रेस की पसंद के खिलाफ कोई फैसला लेती है तो उसे महाभियोग जैसी धमकियां दी जाती हैं. अगर वह चुनाव हार जाते हैं तो ठीकरा ईवीएम के सिर फोड़ देते हैं. अगर उनके घोटालों की जांच होती है तो वह जांच एजेंसियों को दोष देते हैं. हकीकत में तो यह कांग्रेस का ही इतिहास रहा है कि जो संस्थान साथ न दे उसे नष्ट कर दो. याद कीजिए, इंदिरा गांधी ने ही कहा था कि न्यायपालिका को प्रतिबद्ध होना चाहिए. तो संस्थानों की आलोचना, उन्हें नष्ट करना कांग्रेस की विचारधारा है. वही लोग सवाल उठा रहे हैं?
आपके किन मंत्रियों का काम सबसे प्रभावी रहा? कहा जा रहा है कि पीएमओ ही कई मंत्रलयों का कामकाज देख रहा था?
2.6 करोड़ घरों को बिजली दी गई. 7 करोड़ महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन मिले. 17 करोड़ छोटे उद्यमियों को मुद्रा कर्ज मिले. लाखों लोग आयुष्मान भारत के तहत मुफ्त उपचार का लाभ ले चुके हैं. 20 करोड़ लोग सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आ चुके हैं. 1.2 करोड़ से ज्यादा ग्राम पंचायतें ब्रॉडबैंड कनेक्शन से जुड़ चुकी हैं. 1.5 करोड़ से ज्यादा सुकन्या समृद्धि खाते खोले जा चुके हैं. हमने योजना बनाकर प्रधानमंत्री किसान योजना रिकॉर्ड समय में क्रियान्वित कर दी. हमने मिशन इंद्रधनुष के तहत 3.35 करोड़ गर्भवती महिलाओं और बच्चों को रोग प्रतिरोधक टीके दिए. हमने नौ करोड़ से ज्यादा शौचालय बनाए. कांग्रेस की ग्रामीण सड़क बनाने की गति 69 किमी. प्रतिदिन थी, हमने 130 किमी. प्रतिदिन से ज्यादा गति से सड़कें बनाईं. मैं आपको लंबी-चौड़ी सूची बता सकता हूं और यह अंतहीन है..
यह सब हुआ क्योंकि सभी मंत्रालयों ने एक टीम की तरह मिलकर काम किया. कहने का मतलब यह कि अगर आप ऐसे मंत्रालयों को भी लें जो सुर्खियों में नहीं रहे, तो भी आप देखेंगे कि उन्होंने कैसे देश की प्रगति में योगदान दिया है. मीडिया की नजरों से दूर रहने वाले आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने एकलव्य स्कूलों को हर आदिवासी बच्चे तक पहुंचाया है. आदिवासी किसानों के लिए वन उत्पादों की एक निर्धारित न्यूनतम समर्थन राशि सुनिश्चित की जा रही है. पूर्वाेत्तर के विकास से जुड़ा मंत्रालय अन्य मंत्रालयों के सहयोग से सुनिश्चित कर रहा है कि ‘सेवन सिस्टर्स’ कहलाने वाले पूर्वाेत्तर के राज्यों का विकास तेजी से हो. चमक-दमक से दूर रहने वाले यह मंत्रालय भी परिवर्तन के दूत साबित हो रहे हैं. आपके सवाल के दूसरे हिस्से की बात की जाए तो यह एक ‘शहरी हौव्वा’ है जो एयरकंडीशंड स्टूडियो में चर्चा के दौरान उछाला जाता है. इसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है. क्या आप इस बात की कल्पना भी कर सकते हैं कि भारत ने पिछले पांच सालों में जो हासिल किया है वह केवल एक विभाग या एक मंत्रालय की बदौलत हो सकता है? हमारी सरकार के तहत हर एक मंत्रालय को लक्ष्य हासिल करने के लिए सक्षम बनाया गया है. पीएमओ का काम केवल इनके बीच नीतिगत सामंजस्य और सहयोग बनाए रखने का है.