अभी तक घोषणा नहीं हुई है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा. लेकिन मान लें कि कुछ अजूबा हो गया और 2016 की तरह इस बार भी डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति बन गए तो भारत को कोई खास चिंता करने की जरूरत नहीं है. ट्रम्प और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच ऐसी व्यक्तिगत जुगलबंदी बैठ गई है कि ट्रम्प के उखाड़-पछाड़ स्वभाव के बावजूद भारत को कोई खास हानि होने वाली नहीं है.
इसका अर्थ यह नहीं कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का संचालन नेताओं के व्यक्तिगत समीकरण पर होता है. उसका कुछ योगदान जरूर रहता है लेकिन राष्ट्रहित ही संबंधों का मूलाधार होता है.
आज अमेरिका और भारत के आपसी संबंधों में कोई खास तनाव नहीं है. व्यापार और वीजा के सवाल तात्कालिक हैं. वे बातचीत से हल हो सकते हैं. लेकिन चीन, अफगानिस्तान, सामरिक सहकार, शस्त्न-खरीद आदि मामलों में दोनों देश लगभग एक ही पटरी पर चल रहे हैं.
जो बाइडेन के जीतने की संभावनाएं ज्यादा हैं. वे जीते तो भारत को ज्यादा खुशी होगी, क्योंकि एक तो कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बन जाएंगी. लगभग 75-80 प्रतिशत प्रवासी भारतीयों ने उनको अपना समर्थन दिया है.
भारत के 40 लाख लोग अमेरिका के सबसे अधिक समृद्ध, सुशिक्षित और सुसभ्य लोग हैं. क्या डेमोक्रेटिक सरकार उनका सम्मान नहीं करेगी? मैं तो सोचता हूं कि पहली बार ऐसा होगा कि अमेरिकी सरकार में कुछ मंत्री और बड़े अफसर बनने का मौका भारतीय मूल के लोगों को मिलेगा.
बाइडेन प्रशासन अपने ओबामा प्रशासन की भारतीय नीति को तो लागू करेगा ही, वह पेरिस के जलवायु समझौते और ईरान के परमाणु समझौते को भी पुनर्जीवित कर सकता है. इनका लाभ भारत को मिलेगा ही. इसके अलावा ध्यान देने लायक बात यह है कि ओबामा प्रशासन में बाइडेन उपराष्ट्रपति की हैसियत में भारत के प्रति सदैव जागरूक रहे हैं.
वे कई दशकों से अमेरिकी राजनीति में सक्रिय रहे हैं जबकि ट्रम्प तो राजनीति के हिसाब से नौसिखिये राष्ट्रपति बने हैं. बाइडेन के रवैये को हम भारत ही नहीं यूरोपीय राष्ट्रों, चीन, रूस, ईरान और मैक्सिको जैसे राष्ट्रों के प्रति भी काफी संयत पाएंगे.
इसका अंदाज हमें ट्रम्प और बाइडेन के चुनावी भाषणों की भाषा से ही लग जाता है. दूसरे शब्दों में इनके जीतने से हमें ज्यादा फायदे की उम्मीद है लेकिन इनमें से कोई भी जीते, हमें कोई हानि नहीं है.