भारत सरकार ने शंघाई सहयोग संगठन की वार्षिक बैठक के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान को न्यौता भेजा है. यह बैठक इस साल के अंत में होगी और इसमें इस संगठन के सदस्य भाग लेंगे. इनमें रूस और चीन के साथ उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान भी सदस्य हैं. भारत ने इमरान को न्यौता तो भेजा है लेकिन पता नहीं कि वह आएंगे या नहीं? जैसे हालात आजकल हैं, यदि वैसे ही अगले 10-11 माह तक बने रहे तो इमरान का भारत आना असंभव है.
यों भी इतने माह पहले निमंत्नण भेजने और उसे प्रचारित करने का महत्व क्या है? यह जरूरी नहीं कि पाकिस्तान इस पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया करे ही लेकिन मैं सोचता हूं कि पाकिस्तान इस पर हां करे तो कोई बुराई नहीं है. हो सकता है कि इस पर हां करने के पाकिस्तानी तेवर का भारत में स्वागत हो और दोनों देशों के बीच शीघ्र ही कोई संवाद कायम हो जाए. वैसे भी पाकिस्तान ने पिछले पांच-छह माह में यह देख लिया है कि कश्मीर के सवाल पर चीन के अलावा सुरक्षा परिषद का कोई देश उसके साथ नहीं है. चीन भी सिर्फ खानापूरी कर रहा है. चीन यह कैसे भूल सकता है कि भारत सिक्यांग के उइगरों, तिब्बत और हांगकांग के मामले संयुक्त राष्ट्र में नहीं उठाता है.
कश्मीर पर अब तो ब्रिटेन भी खुलकर भारत का साथ दे रहा है. उसने रायसीना डायलॉग में आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर सख्त आरोप लगाए हैं. सच्चाई तो यह है कि कश्मीर का मसला अब इतना घिस-पिट गया है कि उसकी जगह अब आतंकवाद के मुद्दे ने ले ली है. इसे लेकर पाकिस्तान पर चारों तरफ से हमले हो रहे हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी आजकल पटरी पर नहीं है. भारत का भी यही हाल है. ऐसे में दोनों देशों को युद्ध तो क्या, उस तरह की बातों से भी दूर रहना चाहिए. बेहतर तो यह हो कि दोनों देशों के नेता शीघ्र ही आपस में मिलें और सारे दक्षिण एशिया का एक महासंघ खड़ा करने की पहल करें. यदि भारत और पाकिस्तान में सहज संवाद कायम हो जाए तो हमारा यह इलाका कुछ ही वर्षो में दुनिया के सबसे खुशहाल इलाकों में गिना जाने लगेगा.