ब्लॉगः आखिर अमेरिका में क्यों खत्म हो रही विवाह परंपरा?, 57 प्रतिशत युवकों को अकेले रहना पसंद
By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 14, 2023 08:27 AM2023-02-14T08:27:36+5:302023-02-14T08:28:43+5:30
अमेरिका को व्यभिचार और बलात्कार ने तंग करके रख दिया है। इन मामलों में फंसनेवाले लोगों की संख्या उसकी जेलों में सबसे ज्यादा है। जो लोग पकड़े नहीं जाते, उनकी संख्या पकड़े जानेवालों से ज्यादा होती है। वे समाज में तनाव और अविश्वास बढ़ा देते हैं।
भारत की जीवन पद्धति और पश्चिमी देशों की जीवन पद्धति में कितना अंतर है। भारत में हालांकि वर्णाश्रण धर्म का आजकल लोग नाम भी नहीं जानते लेकिन सदियों से इस आर्य जीवन पद्धति का इतना गहरा प्रभाव रहा है कि भारत ही नहीं, सारे दक्षिण और मध्य एशिया में इसका पालन होता है। अमेरिका में हुए एक ताजा सर्वेक्षण से पता चला है कि वहां के ज्यादातर युवा शादी करना ही नहीं चाहते। 57 प्रतिशत युवक अकेले रहना ही पसंद करते हैं। भारत में ऐसे लोग बहुत कम हैं। लेकिन जो लोग अमेरिका में गृहस्थ नहीं बनना चाहते, वे क्या ब्रह्मचारी बने रहना चाहते हैं? यह सवाल ही उनके लिए असंगत है, क्योंकि ब्रह्मचर्य जैसी परंपरा की वहां कोई कीमत ही नहीं है।
अमेरिका की पूंजीवादी और सोवियत रूस की साम्यवादी व्यवस्थाओं ने मनुष्य के बाहरी जीवन को तो संपन्न बनाने में कोई कसर उठा नहीं रखी थी लेकिन उसका आंतरिक जीवन दोनों व्यवस्थाओं में खोखला होता गया। अब से लगभग 50-55 साल पहले मुझे मॉस्को और न्यूयॉर्क के विश्वविद्यालयों में पढ़ने और वहां रहने का मौका मिला था। मैं यह देखकर दंग रह जाता था कि वहां हर दूसरा या तीसरा आदमी या औरत तलाकशुदा होते थे और उनमें से कई मुझे यह भी कह देते थे कि यह हमारी दूसरी या तीसरी शादी है। अब अमेरिका में 63 प्रतिशत युवकों ने, जिनकी उम्र 30 साल तक है, बताया कि वे अकेले हैं। 34 प्रतिशत महिलाएं भी अकेली ही हैं। यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। इसका नतीजा क्या है?
अमेरिका को व्यभिचार और बलात्कार ने तंग करके रख दिया है। इन मामलों में फंसनेवाले लोगों की संख्या उसकी जेलों में सबसे ज्यादा है। जो लोग पकड़े नहीं जाते, उनकी संख्या पकड़े जानेवालों से ज्यादा होती है। वे समाज में तनाव और अविश्वास बढ़ा देते हैं। अमेरिका और यूरोप में भारतीय मूल के लोगों में अब भी सद्गृहस्थ की परंपरा जीवित है लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था ने विवाह जैसी पवित्र परंपरा को भी उपयोगितावाद का शिकार बना दिया है।