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सोशल मीडिया पर नियंत्रण के लिए अपनाना होगा संतुलित मार्ग, भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग

By भरत झुनझुनवाला | Updated: July 12, 2021 17:52 IST

सोशल मीडिया कंपनी के वाणिज्यिक स्वार्थों को बढ़ाने के लिए लिए जाएं तो देश और जनता की अपार हानि हो सकती है.

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ठळक मुद्देरविशंकर प्रसाद के नेतृत्व में सरकार ने नए नियम लागू किए थे.शिकायत अधिकारी, एक प्रशासनिक अधिकारी और एक सरकार से समन्वय करने के अधिकारी की नियुक्ति करनी थी. सोशल मीडिया कंपनियां अपना मनचाहा व्यवहार करती रह सकती हैं.

गत सप्ताह मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस्तीफा दे दिया. सोशल मीडिया कंपनियों के द्वारा क्या सूचना परोसी जाती है.

इस पर वर्तमान में देश की जनता अथवा सरकार का कोई भी नियंत्रण नहीं होता है. जैसे पिछले अमेरिकी चुनाव के पहले ट्विटर ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के खाते को ब्लॉक कर दिया था. उनका कहना था राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा गलत सूचनाएं डाली जा रही हैं. इसी क्रम में बीते समय में भाजपा के कुछ नेताओं की पोस्ट को भी ट्विटर ने ब्लॉक कर दिया था.

प्रश्न यह है कि इन सूचनाओं के सही और गलत होने का निर्णय कौन लेगा? और किस उद्देश्य से लेगा? यह निर्णय यदि जनता के हित हासिल करने के उद्देश्य से लिए जाएं तो स्वीकार होते हैं जबकि यही निर्णय यदि सोशल मीडिया कंपनी के वाणिज्यिक स्वार्थों को बढ़ाने के लिए लिए जाएं तो देश और जनता की अपार हानि हो सकती है. इस संबंध में रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व में सरकार ने नए नियम लागू किए थे.

जिसके अंतर्गत सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत अधिकारी, एक प्रशासनिक अधिकारी और एक सरकार से समन्वय करने के अधिकारी की नियुक्ति करनी थी. मेरी समझ से ये नियम पूर्णतया सही दिशा में हैं लेकिन अपर्याप्त हैं. इन नियमों के लागू होने के बावजूद सोशल मीडिया कंपनियां अपना मनचाहा व्यवहार करती रह सकती हैं.

जैसे शिकायत अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी और समन्वय अधिकारी की नियुक्ति के बाद भी ट्विटर भाजपा के नेताओं की पोस्ट को ब्लॉक कर सकता था. समन्वय अधिकारी को ट्विटर को किसी पोस्ट विशेष के संबंध में आदेश देने का अधिकार इन नियमों में नहीं दिया गया था. केवल विशेष परिस्थितियों में सरकार उन्हें सुधार करने के लिए कह सकती है.

लेकिन सरकार द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों के नियंत्रण में दूसरा संकट भी पैदा होता है. जैसे चीन ने सोशल मीडिया कंपनियों को आदेश दे रखा है कि कोरोना वायरस के वुहान की प्रयोगशाला में उत्पन्न होने संबंधित कोई भी सूचना वे अपने प्लेटफार्म पर नहीं डालेंगे. ऐसे में सरकार के सोशल मीडिया पर नियंत्रण से जनता की हानि हो सकती है.

अत: सरकार द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों पर नियंत्रण के दो पहलू हैं. एक है कि सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा जनहित की अनदेखी करते हुए गलत सूचना परोसी गई हो तो सरकार का दखल जरूरी होता है. दूसरी तरफ सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा सरकार की गलती के विरोध में जनता को सही सूचना उपलब्ध कराने की स्वतंत्रता को संरक्षित करना भी उतना ही जरूरी है.

हमें इन दोनों परस्पर विरोधी उद्देश्यों के बीच में रास्ता ढूंढ़ना है. इस समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यह है कि सरकार द्वारा स्वतंत्र नागरिकों की समिति बनाई जाए जिसे सोशल मीडिया के विरुद्ध शिकायत सुनने एवं निर्णय लेने का अधिकार हो. अथवा जैसे किसी कंपनी द्वारा शेयर धारक के प्रति अनुचित व्यवहार करने की शिकायत सेबी से की जा सकती है.

उसी प्रकार सोशल मीडिया नियंत्रण बोर्ड बनाना चाहिए जो सोशल मीडिया को आदेश दे लेकिन सरकार के सीधे नियंत्रण से बाहर हो. दूसरा उपाय है कि बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों का सरकार विभाजन कर दे. अपने देश में कंपटीशन कमीशन आॅफ इंडिया स्थापित है जो कि किसी वाणिज्यिक कंपनी द्वारा बाजार में एकाधिकार का उपयोग कर माल को महंगा बेचने इत्यादि पर रोक लगा सकता है.

सरकार को चाहिए कि कंपटीशन कमीशन को आदेश दे कि किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म की अधिकतम सदस्य संख्या को निर्धारित कर दे. इससे अधिक संख्या में ग्राहक हासिल करने पर उस कंपनी को दो या अधिक टुकड़ों में विभाजित कर दिया जाएगा.

इस विभाजन का लाभ होगा कि इन कंपनियों के बीच में प्रतिस्पर्धा बनेगी और देश की स्वदेशी सोशल मीडिया कंपनी को बाजार में प्रवेश करने का अवसर मिल जाएगा. इनकी आपसी प्रतिस्पर्धा से इनके ऊपर स्वयं दबाव बनेगा कि यह जनता को गलत सूचना न परोसें. 

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