Ganesh Chaturthi 2024: कुछ ही दिनों में बारिश के बादल अपने घरों को लौटने वाले हैं. सुबह सूरज कुछ देर से दिखेगा और अंधेरा जल्दी छाने लगेगा. असल में मौसम का यह बदलता मिजाज उमंगों-खुशहाली के स्वागत की तैयारी है. सनातन मान्यताओं की तरह प्रत्येक शुभ कार्य के पहले गजानन गणपति की आराधना अनिवार्य है और इसीलिए उत्सवों का प्रारंभ गणेश चतुर्थी से ही होता है. कुछ साल पहले प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ में अपील कर चुके हैं कि देव प्रतिमाएं प्लास्टर ऑफ पेरिस यानी पीओपी की नहीं बनाएं, मिट्टी की ही बनाएं.
तेलंगाना, महाराष्ट्र, राजस्थान की सरकारें भी ऐसे आदेश जारी कर चुकी हैं. लेकिन राजधानी दिल्ली में नोएडा से अक्षरधाम आने वाले रास्ते सहित कई जगह धड़ल्ले से पीओपी की प्रतिमाएं बन रही हैं और बिक भी रही हैं. ऐसा ही दृश्य देश के हर बड़े-छोटे कस्बों में देखा जा सकता है. यह तो प्रारंभ है, इसके बाद दुर्गा पूजा या नवरात्रि, विश्वकर्मा पूजा, दीपावली से ले कर होली तक एक के बाद एक आने वाले त्योहार असल में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं की मजबूत कड़ियां हैं.
एक अनुमान है कि हर साल देश में इन तीन महीनों के दौरान 10 लाख से ज्यादा प्रतिमाएं बनती हैं और इनमें से 90 फीसदी प्लास्टर ऑफ पेरिस की होती हैं. इस तरह देश के ताल-तलैया, नदियों-समुद्र में नब्बे दिनों में कई सौ टन प्लास्टर ऑफ पेरिस, रासायनिक रंग, पूजा सामग्री मिल जाती है. पीओपी ऐसा पदार्थ है जो कभी समाप्त नहीं होता है.
इससे वातावरण में प्रदूषण की मात्रा के बढ़ने की संभावना बहुत अधिक है. प्लास्टर ऑफ पेरिस, कैल्शियम सल्फेट हेमी हाइड्रेट होता है जो कि जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट डीहाइड्रेट) से बनता है चूंकि ज्यादातर मूर्तियां पानी में न घुलने वाले प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी होती हैं, उन्हें विषैले एवं पानी में न घुलने वाले नॉन बायोडिग्रेडेबेल रंगों में रंगा जाता है, इसलिए हर साल इन मूर्तियों के विसर्जन के बाद पानी की बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड तेजी से घट जाती है जो जलजन्य जीवों के लिए कहर बनता है.
मानसून में नदियों के साथ ढेर सारी मिट्टी बह कर आती है. चिकनी मिट्टी, पीली, काली या लाल मिट्टी. परंपरा थी कि कुम्हार नदी-सरिताओं के तट से यह चिकनी महीन मिट्टी ले कर आता था और उससे प्रतिमा गढ़ता था. पूजा होती थी और उसको फिर से जल में ही प्रवाहित कर दिया जाता था. प्रतिमा के साथ अन्न, फल विसर्जित होता था जो कि जल-चरों के लिए भोजन होता था.
सभी जानते हैं कि अगस्त के बाद मछलियों के अंडों से बच्चे निकलते हैं और उन्हें ढेर सारे भोजन की जरूरत होती है. नदी में रहने वाले मछली-कछुए आदि ही तो जल को शुद्ध रखने में भूमिका निभाते हैं. उन्हें भी प्रसाद मिलना चाहिए. इसलिए हमें फिर से मिट्टी की प्रतिमा के दिनों की ओर लौटना होगा.