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तेलंगाना: पसोपेश में चुनाव आयोग

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: September 16, 2018 19:29 IST

चुनाव आयोग को अब तेलंगाना विधानसभा का चुनाव मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम के साथ कराना होगा। तेलंगाना विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने में आठ महीने से भी ज्यादा समय बचा था। 

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(संपादकीय-शशिधर खान)

लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा नेतृत्व के दबाव से चुनाव आयोग उबर भी नहीं पाया कि बीच ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के। चंद्रशेखर राव ने विधानसभा भंग करके आयोग को नए फांस में डाल दिया।  

चुनाव आयोग को अब तेलंगाना विधानसभा का चुनाव मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम के साथ कराना होगा। तेलंगाना विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने में आठ महीने से भी ज्यादा समय बचा था। 

 इतने पहले विधानसभा भंग होने की स्थिति का निदान संविधान में नहीं है।  संविधान की धारा-324 और जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तमाम प्रावधानों को खंगालने पर भी इस सियासी संकट का हल नहीं मिलता।  

इसलिए मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ओपी रावत को मजबूरी में उन राज्यों के साथ तेलंगाना विधानसभा का भी चुनाव कराना होगा, जिनका कार्यकाल कायदे से नवंबर-दिसंबर में समाप्त हो रहा है।  

इस स्थिति के लिए चुनाव आयोग तैयार नहीं था। लेकिन सिर्फ निहित राजनीतिक स्वार्थवश तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के।  चंद्रशेखर राव ने यह स्थिति पैदा कर दी।  

इसलिए चुनाव आयोग को कहना पड़ा कि उन चार राज्यों के साथ चुनाव कराया जा सकता है, जहां साल के अंत में चुनाव होना तय है। चुनाव आयोग को सिर्फ सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2002 में इस संबंध में दिए गए दिशानिर्देश का पालन करना है। 

 सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सदन भंग होने की स्थिति में ‘पहले अवसर’ में ही चुनाव कराया जाना चाहिए, क्योंकि कार्यवाहक सरकार सत्ता में बने रहकर उसका लाभ नहीं उठा सकती।  सीईसी ओपी रावत ने कहा कि कोई भी विधानसभा भंग करके छह महीने तक कार्यवाहक सरकार के रूप में सत्ता पर काबिज नहीं रह सकता।  

यह बात सीईसी ने सात सितंबर को ही स्पष्ट कर दी, जब तेलंगाना से आई समयपूर्व चुनाव की मांग पर दिल्ली में चुनाव आयोग की बैठक हुई।  सीईसी ने कहा कि विधानसभा समयपूर्व भंग किए जाने की तारीख से छह महीने के अंदर हर हाल में चुनाव कराना है, ताकि नई विधानसभा गठित हो।

ऐसा करना चुनाव आयोग की मजबूरी है और इस फांस में मुख्य चुनाव आयुक्त को तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने अपने राजनीतिक स्वार्थवश डाला है। 

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