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प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: बैंकों पर अदालत का अंकुश

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 29, 2019 09:10 IST

वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने दिसंबर 2015 तक के आंकड़े राज्यसभा में पेश करते हुए कहा था कि कर्ज लेकर जानबूझकर न लौटाने वाले प्रमुख लोगों अथवा कंपनियों के पास सार्वजनिक बैंकों का 1 लाख 21 हजार 832 करोड़ रुपए बकाया हैं।

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पिछले कई वर्षो से देश की अदालतों में ऐसे कर्जदारों के विरुद्घ मामले चल रहे हैं, जो जानबूझकर बैंकों का कर्ज नहीं लौटा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक एवं वाणिज्यिक बैंक कई कायदे-कानूनों का हवाला देकर इन कर्जदारों के नाम सार्वजनिक करने से बचते हैं। लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश देकर सख्त हिदायत दी है, जिससे यह उम्मीद बढ़ी है कि इन विलफुल डिफॉल्टर्स के नाम जगजाहिर करने का रास्ता खुल जाएगा। न्यायालय ने कहा है कि रिजर्व बैंक की तरफ से बैंकों को लेकर जो सालाना जांच रिपोर्ट तैयार की जाती है, उसे सूचना का अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक करना होगा। इस जांच रिपोर्ट में बैंकों के एनपीए से ग्राहकों समेत उनकी तरफ से की जाने वाली तमाम गड़बड़ियों का खुलासा हो जाएगा। 

वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने दिसंबर 2015 तक के आंकड़े राज्यसभा में पेश करते हुए कहा था कि कर्ज लेकर जानबूझकर न लौटाने वाले प्रमुख लोगों अथवा कंपनियों के पास सार्वजनिक बैंकों का 1 लाख 21 हजार 832 करोड़ रुपए बकाया हैं। उस समय तक ऐसी धोखाधड़ी करने वालों की संख्या 5,554 थी, जो अब बढ़कर 7,686 हो गई है। ऐसे 9000 बैंक खाते हैं, जिनके खिलाफ बैंकों ने धन वसूली के मुकदमे देशभर की अदालतों में दायर किए हुए हैं।

11 ऐसे कंपनी समूह हैं, जिन पर 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा का बकाया है। अकेली ऐसी 11 कंपनियों पर 26,000 करोड़ रुपए से ज्यादा एनपीए है। रिजर्व बैंक अब तक दावा करता रहा है कि ऐसे मामलों में वह जानकारी नहीं दे सकता है, क्योंकि बैंक की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट में न्यासीय जानकारी की गोपनीयता बनाए रखने की शर्त अंतर्निहित है। अब अदालत ने इसी जानकारी का आरटीआई के तहत खुलासा करने का निर्देश भारतीय रिजर्व बैंक को दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि यदि इस आदेश की अवहेलना होती है तो इसे बेहद गंभीरता से लिया जाएगा। अदालत ने उन नीतियों को निरस्त करने की भी सलाह दी है, जिनके तहत बैंकों से जुड़ी गड़बड़ियों की कई जानकारियां सार्वजनिक नहीं हो पाती हैं।  वह कर्ज ही क्या, जो ब्याज समेत न लौटे? लेकिन ब्याज तो ब्याज उद्योग जगत के बड़े कर्जदार, सार्वजनिक बैंकों का मूलधन भी नहीं लौटा रहे हैं। यदि ऋणदाता ब्याज और मूलधन की किस्त दोनों ही चुकाना बंद कर दें तो बैंक के कारोबारी लक्ष्य कैसे पूरे होंगे? 

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