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पेरिस ओलंपिक तक बरकरार रखना होगा यह जोश, राम ठाकुर का ब्लॉग

By राम ठाकुर | Updated: August 24, 2021 14:13 IST

एथलेटिक्स में देश को पहला ओलंपिक मेडल प्राप्त हुआ है और वह भी स्वर्ण पदक. 41 साल बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने आकर्षक प्रदर्शन के साथ कांस्य पदक जीतकर शीर्ष तीन टीमों में स्थान बनाया.

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ठळक मुद्देपहली बार भारतीय खिलाड़ियों ने ओलंपिक में इस तरह (स्वर्ण समेत 7 पदक) का प्रदर्शन किया है.मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन एवं पहलवान बजरंग पूनिया (दोनों को कांस्य) पदक जीतने में कामयाब रहे.खिलाड़ी कड़ी मेहनत कर अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन करता है तो उसकी हौसलाअफजाई होनी चाहिए.

टोक्यो ओलंपिक की शानदार सफलता के बाद देश में जश्न का माहौल है. पदक विजेताओं का जोरदार स्वागत हो रहा है. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति की मेजबानी में ब्रेकफास्ट, चाय पार्टी के अलावा अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्री इन प्रतिभावान खिलाड़ियों के सम्मान में अनेक पुरस्कारों की घोषणा कर चुके हैं.

यह सब होना लाजिमी था. पहली बार भारतीय खिलाड़ियों ने ओलंपिक में इस तरह (स्वर्ण समेत 7 पदक) का प्रदर्शन किया है. एथलेटिक्स में देश को पहला ओलंपिक मेडल प्राप्त हुआ है और वह भी स्वर्ण पदक. 41 साल बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने आकर्षक प्रदर्शन के साथ कांस्य पदक जीतकर शीर्ष तीन टीमों में स्थान बनाया.

इसी तरह भारोत्ताेलक मीराबाई चानू और पहलवान रवि दहिया (दोनों को  रजत) के अलावा शटलर पी.वी. सिंधु (कांस्य के साथ लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला), मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन एवं पहलवान बजरंग पूनिया (दोनों को कांस्य) पदक जीतने में कामयाब रहे.

जब कोई खिलाड़ी कड़ी मेहनत कर अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन करता है तो उसकी हौसलाअफजाई होनी चाहिए. लेकिन यह सब करते वक्त इस बात का ध्यान भी रखा  जाना चाहिए कि खिलाड़ियों के भविष्य के करियर पर विपरीत परिणाम भी न हों. जैसे, भाला फेंक में देश को स्वर्ण पदक दिलवाने वाले ‘गोल्डन ब्वॉय’ नीरज चोपड़ा अपने पैतृक गांव (पानीपत जिले के ग्राम खांडरा) में आयोजित सत्कार समारोहों के दौरान तेज बुखार से पीड़ित हो गए जिससे उन्हें समारोह से हटना पड़ा. सत्कार समारोह खिलाड़ियों को प्रेरित भी करते हैं लेकिन साथ ही इससे उनपर अच्छे प्रदर्शन का दबाव भी बढ़ता है.

दबाव की स्थिति में अपना शानदार प्रदर्शन दोहरा पाना खिलाड़ियों के लिए मुश्किल हो सकता है. इन्हीं पदक विजेता खिलाड़ियों को भविष्य में भी शानदार प्रदर्शन कर देश के लिए पदक जीतने हैं. आने वाले वर्षों में उन्हें एशियाई, राष्ट्रमंडल तथा विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लेना है. साथ ही वर्ष 2024 के पेरिस ओलंपिक की तैयारी में जुटना है.

टोक्यो की तुलना में पेरिस ओलंपिक अधिक चुनौतीभरा हो सकता है. इसकी मुख्य वजह समय की कमी होगी. कोरोना महामारी के चलते टोक्यो  खेल एक वर्ष के लिए स्थगित करने पड़े थे जिससे खिलाड़ियों को तैयारी के लिए एक साल का समय ज्यादा मिल गया. लेकिन पेरिस में स्थिति उलट होगी और तीन साल का ही समय होगा.

आमतौर पर ओलंपिक के बाद खिलाड़ी एक साल आराम और रिकवरी करते हैं लेकिन इस बार उन्हें तुरंत लौटना होगा. जाहिर तौर पर खिलाड़ियों के लिए पेरिस ओलंपिक में टिकट हासिल करने के लिए क्वालिफिकेशन टूर्नामेंट और कोटे भी कम होंगे. टोक्यो में कुछ भारतीय खिलाड़ी पदक के करीब पहुंचकर इसे हासिल करने में नाकाम रहे.

जैसे गोल्फ में अदिति अशोक, चक्का फेंक में कमलप्रीत कौर, भारतीय महिला हॉकी टीम. पेरिस में  बेहतर तरीके से मेहनत कर पदक पक्के किए जा सकते हैं. भारतीय निशानेबाज और तीरंदाज उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाए. बताया जाता है कि वे दबाव की स्थिति में अपना स्वाभाविक प्रदर्शन करने में नाकाम रहे.

आने वाले समय में इस तरह की समस्या से निजात पाने के लिए खिलाड़ियों को उचित तरीके से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. पिछले कुछ ओलंपिक खेलों में भारतीय दल के प्रदर्शन पर निगाहें डालने पर पता चलता है कि हमारे प्रदर्शन में निरंतरता की कमी है. जैसे, लंदन ओलंपिक (2012) में भारतीय खिलाड़ियों ने छह पदक जीतकर बेहतर भविष्य की उम्मीद जगाई थी लेकिन बाद के रियो ओलंपिक (2016) में भारत की झोली में महज दो ही पदक आए. यह चिंता की बात है.

होना यह चाहिए कि प्रदर्शन में निरंतर सुधार हो जिससे लक्ष्य निर्धारित करना आसान हो जाता है. टोक्यो ओलंपिक में मिली कामयाबी के बाद भारतीय खेलकूद के कर्ताधर्ताओं को खेल के मूलभूत ढांचे पर जोर देना चाहिए. आज भी देश के ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्र में खेलकूद का महत्व नगण्य है. जबकि टोक्यो ओलंपिक ने यह साबित कर दिया है कि भारत को पदक दिलवाने वाली प्रतिभाएं दुर्गम क्षेत्र से ही आती हैं.

कहने के लिए कागज पर तो अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएं बनी होती हैं लेकिन प्रत्यक्षत: इस पर अमल नहीं किया जाता है. हालांकि ‘खेलो इंडिया’ ने पूरे देश में सकारात्मक माहौल बनाया है. खासतौर से स्कूल और कॉलेज स्तर पर इस योजना के जरिये अच्छे परिणाम आ सकते हैं. कुल मिलाकर अब समय आ चुका है खेलकूद के विश्व मंच पर भारतीय परचम लहराने का.

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