World Population Day: हर वर्ष 11 जुलाई को मनाया जाने वाला विश्व जनसंख्या दिवस केवल एक तारीख नहीं बल्कि उस वैश्विक चुनौती पर ध्यान केंद्रित करने का दिन है, जो मानव समाज के अस्तित्व को प्रभावित कर रही है. इस दिन का उद्देश्य केवल आंकड़ों का हवाला देना नहीं बल्कि जनसंख्या से जुड़ी जटिल समस्याओं और उनके समाधान की दिशा में जनजागरूकता पैदा करना है. इस दिवस की स्थापना 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल द्वारा की गई थी और पहला विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई 1990 को मनाया गया था.
जनसंख्या वृद्धि न केवल आर्थिक संसाधनों पर दबाव बना रही है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, पारिस्थितिकी असंतुलन और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को भी तीव्र बना रही है. विश्व जनसंख्या दिवस 2025 का विषय है ‘युवाओं को एक निष्पक्ष और आशावान दुनिया में अपने मनचाहे परिवार बनाने के लिए सशक्त बनाना.’
यह विषय न केवल वर्तमान जनसंख्या प्रवृत्तियों पर सवाल उठाता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि अब समय आ गया है जब युवा पीढ़ी को वह अधिकार, संसाधन और अवसर दिए जाएं, जो उन्हें अपने भविष्य को आत्मनिर्भर और जिम्मेदार ढंग से गढ़ने में मदद कर सकें. भारत की जनसंख्या, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के समय मात्र 36 करोड़ थी,
अब बढ़कर 146.3 करोड़ हो चुकी है और भारत चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन चुका है. यह बदलाव केवल आंकड़ों की दृष्टि से नहीं, इसके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है. भारत की यह बढ़ती जनसंख्या यदि सुव्यवस्थित न हो तो यही शक्ति हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है.
भारत के सामने फिलहाल दो विरोधाभासी चित्र उपस्थित हैं, एक ओर वह युवा शक्ति है, जो संभावनाओं से भरी है, वहीं दूसरी ओर संसाधनों की सीमितता, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की विकराल स्थिति है. विश्व की कुल जनसंख्या अब 8.2 अरब को पार कर चुकी है और इसमें भारत की हिस्सेदारी सबसे अधिक है.
भारत और चीन मिलकर ही वैश्विक जनसंख्या का लगभग एक तिहाई हिस्सा बनाते हैं. यूएनएफपीए ने जब दुनिया की जनसंख्या 8 अरब पार करने की घोषणा की थी, तब इसे ‘8 अरब संभावनाएं’ के रूप में देखा गया था. यह कथन इस बात का प्रतीक है कि प्रत्येक मानव एक नई उम्मीद, एक नया सपना और एक नई संभावना के साथ जन्म लेता है लेकिन प्रश्न यह है कि क्या दुनिया में इन संभावनाओं को साकार करने के लिए पर्याप्त संसाधन, नीति और इच्छाशक्ति मौजूद है? यदि नहीं तो यही उम्मीदें और सपने बोझ में तब्दील हो जाते हैं.