रहीस सिंह का ब्लॉगः राम की कीर्ति में निहित है देश की विश्वनीति

By रहीस सिंह | Published: October 29, 2019 09:03 AM2019-10-29T09:03:26+5:302019-10-29T09:03:26+5:30

हमारी कूटनीति मूल रूप से श्रीकृष्ण, विदुर और चाणक्य की मूल प्रतिस्थापनाओं पर आधारित रही है जहां संवाद को प्राथमिकता दी गई है लेकिन ऐसा नहीं कि उसमें युद्घ का पुट नहीं है. संवाद की अनिवार्यता है लेकिन युद्घ के विकल्प भी हैं.  

world policy of the country lies in Ram's fame | रहीस सिंह का ब्लॉगः राम की कीर्ति में निहित है देश की विश्वनीति

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भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आजादी मिले सात दशक से भी अधिक समय व्यतीत हो चुका है लेकिन जब भी हम विदेश नीति की मूल संकल्पना का विच्छेदन करते हैं तो पाते हैं कि हमें लगातार यह बात मानने के लिए विवश किया गया है कि हमारी विदेश नीति का उद्गम या तो फ्रांसीसी कलाड-हेनरी डि-रावरी कॉम्टे डि सेंट साइमन के विचारों में है अथवा उन यूरोपीय नेताओं की नीतियों में जिन्होंने साम्राज्यों की स्थापनाएं एवं संस्कृतियों का ध्वंस किया है. 

ये विचारधाराएं यह बताती हैं कि हम सदैव एक ऐसे नाजुक दौर से गुजरते रहते हैं जहां ‘सुनिश्चितता की संभावना नहीं’ जैसे सिद्घांत होते हैं, राजनीति होती है और अर्थनीति. यानी वहां नैतिकता को खोजना शायद बेमानी होगा. अब यदि वहां नैतिकता का अभाव है तो यह कैसे माना जा सकता है कि उनकी नीतियों पर चलकर हम एक शांतिपूर्ण, प्रगतिशील विश्व की स्थापना कर सकते हैं. अब जब भारत एक नवीन राष्ट्रवादी परिकल्पना के साथ विदेश नीति को आगे बढ़ा रहा है और नए प्रतिमान हासिल कर रहा है, तब क्या हमें इस बात पर विचार करने की जरूरत नहीं है कि हम अपनी जड़ों की ओर देखें?

हमारी कूटनीति मूल रूप से श्रीकृष्ण, विदुर और चाणक्य की मूल प्रतिस्थापनाओं पर आधारित रही है जहां संवाद को प्राथमिकता दी गई है लेकिन ऐसा नहीं कि उसमें युद्घ का पुट नहीं है. संवाद की अनिवार्यता है लेकिन युद्घ के विकल्प भी हैं.  

जिसके व्यक्तित्व और कृतित्व ने भारत को प्रकाश की संस्कृति का केंद्र बना दिया वे राम भारतीय जीवंतता और आत्मशक्ति के प्रतिनिधि हैं.  वास्तव में राम की तरह दुनिया में कोई विजेता ही नहीं हुआ. उन्होंने किसी देश की संप्रभुता को छिन्न-भिन्न नहीं किया. उनकी विजय में सत्य से संपन्न सर्वोच्च मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा थी, सर्वश्रेष्ठ आदर्शो  से युक्त नैतिकता थी और मर्यादा की वे रेखाएं थीं जो मनुष्य को ईश्वर की श्रेणी में ला देती हैं. यही कारण है कि मेडागास्कर से ऑस्ट्रेलिया तक देश-द्वीपों पर समग्र रूप में राम की कीर्ति प्रकाशित हो रही है. हालांकि अब तो पाश्चात्य देशों विशेषकर - रूस, जर्मनी, अमेरिका आदि में भी राम की प्रासंगिकता और प्रतिष्ठा बढ़ रही है.  

राम अपनी विविधताओं के साथ प्रथमदृष्टया तो वहां-वहां उपस्थित हैं जहां उनकी कथा यानी रामायण किसी न किसी रूप में प्रतिष्ठित है. हालांकि जब किसी काव्य की रचना होती है तो उसकी आत्मा वही रहती है लेकिन भौगोलिक-सांस्कृतिक परिवेश उसके आवरण, भाषा और साज-सज्ज को बदल देता है. इन्हीं सन्निवेशों के साथ वाल्मीकि की रामायण अपने अलग-अलग रूपों में दुनिया के तमाम देशों में मौजूद है. यही नहीं इंडोनेशिया, कंबोडिया, थाईलैंड और मलेशिया जैसे देशों में राम का व्यक्तित्व और उनके मूल्य विभिन्न स्थानों पर शिलाओं पर उकेरी गई कहानियों व कलाकृतियों में प्रतिध्वनित होते हैं.

Web Title: world policy of the country lies in Ram's fame

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