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विवेक शुक्ला का ब्लॉग: दिल्ली पर फिर कायम हुआ महिला राज

By विवेक शुक्ला | Updated: September 19, 2024 08:01 IST

अगर मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित का कार्यकाल सबसे लंबा रहा तो सुषमा स्वराज का कार्यकाल दो महीने भी नहीं रहा. वो 12 अक्तूबर 1998 से लेकर 3 दिसंबर 1998 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं. जाहिर है कि इतने छोटे से कार्यकाल में वो कोई अहम कदम जनता के हित में नहीं उठा सकी थीं.

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ठळक मुद्देसुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद दिल्ली को एक बार फिर आतिशी के रूप में महिला मुख्यमंत्री मिल गई है. जब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था, तब ही लग रहा था कि आतिशी दिल्ली की मुख्यमंत्री बन सकती हैं.अब जब तक दिल्ली विधानसभा के चुनाव नहीं हो जाते वो मुख्यमंत्री रहेंगी.

सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद दिल्ली को एक बार फिर आतिशी के रूप में महिला मुख्यमंत्री मिल गई है. जब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था, तब ही लग रहा था कि आतिशी दिल्ली की मुख्यमंत्री बन सकती हैं. अब जब तक दिल्ली विधानसभा के चुनाव नहीं हो जाते वो मुख्यमंत्री रहेंगी. हालांकि वो अरविंद केजरीवाल के निर्देशों का ही पालन करेंगी मुख्यमंत्री रहते हुए. 

उन्हें भी पता है कि वो विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री सिर्फ अरविंद केजरीवाल की वजह से ही बनी हैं. अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी (आप) की धुरी हैं. अगर आप दिल्ली के इतिहास को खंगालें तो पता चलेगा कि दिल्ली की पहली महिला शासक रजिया सुल्तान थी. रजिया सुल्तान ने 1236-1240 के बीच दिल्ली पर राज किया था. रजिया सुल्तान दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश के प्रमुख शासक इल्तुतमिश की बेटी थीं. 

इल्तुतमिश ने अपनी मृत्यु से पहले ही उसे अपना उत्तराधिकारी बना दिया था. इल्तुतमिश को अपने किसी भी पुत्र में दिल्ली पर राज करने की कुव्वत नजर नहीं आती थी. बहरहाल, रजिया सुल्तान के राज के सात सौ साल से भी अधिक समय के बाद शीला दीक्षित 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. उन्होंने लगातार 15 सालों तक दिल्ली पर राज किया. उनके दौर में ही दिल्ली में मेट्रो रेल ने दस्तक दी थी और बिजली संकट खत्म हुआ था. 

अगर मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित का कार्यकाल सबसे लंबा रहा तो सुषमा स्वराज का कार्यकाल दो महीने भी नहीं रहा. वो 12 अक्तूबर 1998 से लेकर 3 दिसंबर 1998 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं. जाहिर है कि इतने छोटे से कार्यकाल में वो कोई अहम कदम जनता के हित में नहीं उठा सकी थीं. भाजपा आलाकमान को साहिब सिंह वर्मा की जगह किसी को मुख्यमंत्री बनाना था, तब सुषमा स्वराज के नाम पर सर्वानुमति बन गई थी.

कुल मिलाकर कह सकते हैं कि आने वाले कुछ महीने दिल्ली की सियासत के लिए अहम होने वाले हैं. ये भी देखना होगा कि  मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए 43 साल की आतिशी अपनी किस तरह से छाप छोड़ती हैं. उनके सामने रजिया सुल्तान और शीला दीक्षित के रूप में दो महिला शासकों के उदाहरण हैं. दोनों का कार्यकाल अपनी न्यायप्रियता के लिए याद किया जाता है.

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