बाल श्रम किसी भी मुल्क के माथे पर सामाजिक कलंक जैसा होता है। सन् 2002 में इस बुराई के विरुद्ध प्रतिवर्ष 12 जून के दिन अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की पहल पर 'विश्व बालश्रम निषेध दिवस' मनाना आरंभ हुआ। इस दिवस का मकसद चाइल्ड लेबर के सभी रूपों को रोकने के लिए जनमानस को जागरूक करना था। इसको ध्यान में रखकर ही 2024 की थीम 'अपनी प्रतिबद्धताओं पर कार्य करें : बाल श्रम समाप्त करें', निर्धारित की गई है।
आंकड़ों की मानें तो एशिया और प्रशांत क्षेत्र में कुल 7 फीसदी बच्चे विभिन्न किस्म की मजदूरी में संलिप्त हैं। यही कारण है कि 6.2 करोड़ बच्चों की बड़ी आबादी आज भी शिक्षा से महरूम है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय विगत कई दशकों से बाल श्रम को समाप्त करने की प्रतिबद्धता व्यक्त कर रहा है। बावजूद इसके संपूर्ण विश्व में आज भी करीब 16 करोड़ बच्चे बाल श्रम की भट्टी में तप रहे हैं। दुनिया भर में करीब दस में से एक बच्चा आज भी किसी न किसी रूप में मजदूरी करने को मजबूर है। बाल श्रम से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी बेतहाशा प्रयास हो रहे हैं। साथ ही अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा लगातार कार्यान्वित शिक्षा, कला और मीडिया के माध्यम से बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा रहा है। फिर भी बाल श्रम की समस्या थमने के बजाय और बढ़ रही है।
बाल मजदूरी वैश्विक समस्या का रूप ले चुकी है। इसलिए सिर्फ सरकार-सिस्टम पर सवाल उठाने से अब काम नहीं चलने वाला। समाधान के विकल्प सभी को मिलकर खोजने होंगे। बाल मजदूरी और बाल अपराध को रोकने के लिए महिला बाल मंत्रालय, श्रम विभाग, समाज कल्याण विभाग सहित इस क्षेत्र में तमाम संस्थाएं कार्यरत हैं।
गैर सरकारी संगठन और एनजीओ हमेशा रोकथाम की दिशा में तत्पर रहते हैं। इसके लिए सबसे पहले सामाजिक स्तर पर बाल श्रमिकों के प्रति आम लोगों के जेहन में संवेदना जगानी होगी और बाल श्रम के खिलाफ मन में लड़ाई की प्रवृत्ति पैदा करनी होगी। ताजा आंकड़े बताते हैं कि बीते दशकों में एशिया में सबसे ज्यादा बाल तस्करी हिंदुस्तान में हुई है।