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पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन हमारे सामने?, वायुसेना प्रमुख अमर प्रीत सिंह को आखिर ऐसा क्यों कहना पड़ा?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: May 31, 2025 05:13 IST

पता नहीं कब ऑपरेशन सिंदूर की जरूरत पड़ जाए. ऐसे समय में यदि संसाधनों की प्रचुरता नहीं है तो वायुसेना प्रमुख का दर्द समझा जा सकता है.

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ठळक मुद्देहम नजर डालें तो ऐसी कई परियोजनाएं नजर आती हैं जो समय पर पूरी नहीं हुई हैं.जब रक्षा की हो तो निश्चित रूप से समय की पाबंदी बहुत जरूरी है.तैयारियां करेगी लेकिन यदि देरी हो जाए तो इसका बहुत असर पड़ता है.

वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह यदि यह कह रहे हैं कि रक्षा परियोजनाओं में देरी हुई तो यह देश के सामने एक गंभीर मसला है. खासकर जब पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन हमारे सामने हैं. किसी भी देश की सार्वभौमिकता तभी सुरक्षित मानी जाती है जब उसकी सेना चुस्त-दुरुस्त होने के साथ ही हथियारों और जरूरी उपकरणों से परिपूर्ण हो. उपकरण हमेशा ही अधिकता में होने चाहिए. पता नहीं कब ऑपरेशन सिंदूर की जरूरत पड़ जाए. ऐसे समय में यदि संसाधनों की प्रचुरता नहीं है तो वायुसेना प्रमुख का दर्द समझा जा सकता है.

यदि हम नजर डालें तो ऐसी कई परियोजनाएं नजर आती हैं जो समय पर पूरी नहीं हुई हैं. बात जब रक्षा की हो तो निश्चित रूप से समय की पाबंदी बहुत जरूरी है. यदि किसी हथियार की आपूर्ति के लिए कोई समय निर्धारित किया गया है तो सेना उसी के अनुरूप अपनी तैयारियां करेगी लेकिन यदि देरी हो जाए तो इसका बहुत असर पड़ता है.

अब  हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके-1 ए का ही मामला देखिए. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ 2021 में 83 विमानों की खरीदी का अनुबंध हुआ और मार्च 2024 तक विमान मिलने शुरू होने वाले थे लेकिन इसमें 14 महीने की देरी हो चुकी है. हालांकि सरकार ने रक्षा सचिव की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया है ताकि वायुसेना को जल्दी लड़ाकू विमान मिलने शुरू हो जाएं.

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के चेयरमैन ने भी देरी की बात स्वीकारी है लेकिन वे इसकी वजह इंजन की आपूर्ति को मानते हैं. इसी तरह इससे भी अत्याधुनिक तेजस एमके-2 के उत्पादन की तो अभी कोई संभावना भी नजर नहीं आ रही है. इस बीच भारतीय वायुसेना मिग-21, मिग-27 और जगुआर जैसे पुराने विमानों को रिटायर भी करती जा रही है.

स्वाभाविक रूप से संसाधनों में कमी का असर तो होगा ही! अब स्टील्थ फाइटर जेट का ही मामला लीजिए. यह एडवांस हवाई युद्ध क्षमता के लिए महत्वपूर्ण संसाधन होने वाला है लेकिन अभी तक प्रोटोटाइप का निर्माण भी प्रारंभ नहीं हो पाया है. हालांकि केंद्र सरकार ने इसके विकास के लिए योजना को मंजूरी दे दी है, लेकिन ये जेट वायुसेना को कब मिलेंगे, इसकी कोई समयसीमा तय नहीं है.

बहुत सारी बातों की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं की जा सकती लेकिन हेलिकॉप्टर से लेकर मिसाइल सिस्टम तथा अन्य उपकरणों की आपूर्ति में देरी की बात होती रहती है. यह बात भी सामने आ चुकी है कि वायुसेना के पास कम से कम 42 स्क्वाड्रन तो होने ही चाहिए लेकिन इसमें कमी आई है. इसी तरह भारतीय सेना सैनिकों की कमी से जूझ रही है.

एक आकलन है कि कम से कम एक लाख पद खाली पड़े हैं. इनमें से 92 हजार से ज्यादा पद जूनियर कमीशंड ऑफिसर और नॉन-कमीशंड ऑफिसर के हैं. जाहिर सी बात है कि संसाधनों और सैनिकों की कमी कोई एक दिन में नहीं हुई है. सेना जैसे संस्थान में संसाधनों की कमी की शुरुआत से पहले ही उसे पूरा करने की योजना बन जाती है.

विलंब कभी भी सेना की तरफ से नहीं होता बल्कि पूरी प्रक्रिया को समयबद्ध रखने की जिम्मेदारी सरकार पर होती है. यदि आज हमारी वायुसेना या थलसेना संसाधनों की आपूर्ति में देरी से परेशान है तो यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला है. वायुसेना प्रमुख का यह कहना महत्वपूर्ण है कि जिन संसाधनों की आपूर्ति समय पर नहीं हो सकती, उसका वादा ही क्यों करते हैं? न केवल घरेलू स्तर पर निर्माण को हमें 

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