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सड़क पर चलना और वाहन चलाना कौन सिखाएगा?, मौत का तांडव क्यों?, हर साल 4.80 लाख से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 28, 2025 05:19 IST

करीब 4 लाख लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं. मृतकों और घायलों में दोपहिया वाहन चालकों और पैदल यात्रियों का आंकड़ा सबसे ज्यादा होता है.

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ठळक मुद्देसड़क दुर्घटनाओं से जीडीपी में करीब-करीब 3 प्रतिशत का नुकसान होता है. सवाल सबको परेशान करता है कि हमारे देश में इतनी दुर्घटनाएं क्यों होती हैं? क्या कहीं भी ध्यान रखा जा रहा है कि वाहन चालक क्या ठीक से वाहन चला रहे हैं?

हम इस बात पर फूले नहीं समाते कि भारत में हर रोज औसतन 30 किलोमीटर सड़क का निर्माण होता है. वाकई इस पर किसी भी भारतीय नागरिक को गर्व होना भी चाहिए लेकिन इसी सड़क से जुड़ा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हमारी सड़कों पर मौत का तांडव क्यों चल रहा है? सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल 4 लाख 80 हजार से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं और इनमें करीब 1 लाख 80 हजार लोगों की मौत हो जाती है. करीब 4 लाख लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं. मृतकों और घायलों में दोपहिया वाहन चालकों और पैदल यात्रियों का आंकड़ा सबसे ज्यादा होता है.

इन सड़क दुर्घटनाओं से जीडीपी में करीब-करीब 3 प्रतिशत का नुकसान होता है. स्वाभाविक रूप से यह सवाल सबको परेशान करता है कि हमारे देश में इतनी दुर्घटनाएं क्यों होती हैं? केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के आदेश के बाद ऐसी सड़कों की पहचान की गई जहां ज्यादा दुर्घटनाएं होती थीं. उन स्थानों पर सड़क को तकनीकी रूप से ठीक भी किया गया.

मगर सबसे बड़ा मसला यह है कि हम हजारों-हजार गाड़ियां हर साल सड़क पर उतार रहे हैं लेकिन इस बात का क्या कहीं भी ध्यान रखा जा रहा है कि वाहन चालक क्या ठीक से वाहन चला रहे हैं? इस सवाल का जवाब पाने के लिए किसी खास वैज्ञानिकता की जरूरत नहीं है. आप सड़क किनारे खड़े हो जाइए और देखिए कि सड़क पर कितनी अराजकता फैली हुई है.

सुरक्षित यातायात का सबसे पहला नियम है कि अपनी लेन का ध्यान रखिए और जब भी लेन बदलना हो तो सिग्नल दीजिए लेकिन हकीकत यह है कि 80 प्रतिशत से ज्यादा वाहन चालक धड़ल्ले से लेन बदलते हैं और एक बार भी सिग्नल देने की जरूरत नहीं समझते. इसका नतीजा होता है कि पीछे या दूसरी लेन में चल रहे वाहन के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की आशंका हमेशा ही बनी रहती है.

कभी अपने आप से पूछिए कि जब आप सड़क पर वाहन चलाते हैं तो क्या सिग्नल देते हैं? आपका जमीर ही उत्तर दे देगा कि सड़क दुर्घटनाओं के लिए आप खुद कितने जिम्मेदार हैं. सड़क पर एक बात और देखने में आती है कि खासतौर पर  व्यावसायिक वाहन चालक किसी एक लेने में चलने के बजाय बीच की लकीर पर चलते हैं.

यदि आप उनसे पूछें तो बड़ा अजीब सा जवाब मिलेगा कि दोनों ओर से कहीं भी, कभी भी जानवर दौड़ लगाते हुए आ सकते हैं, इसलिए बीच में चलते हैं ताकि बचने का मौका मिल पाए. बात सही है कि भारतीय सड़कों पर आवारा पशु कहीं भी आ टपकते हैं लेकिन यह भी सही है कि बीच लकीर पर चलने की आदत के कारण सड़क पर लेन सिस्टम चौपट हो जाता है.

जहां तक दोपहिया वाहन चालकों की मौत का सवाल है तो इसके लिए काफी हद तक वे खुद जिम्मेदार होते हैं. ऐसे लोग हेलमेट को अपनी सुरक्षा के लिए नहीं पहनते बल्कि पुलिस से बचने के लिए पहनते हैं. वे कभी भी लेन का पालन नहीं करते और कारों के बीच से निकलने की होड़ में कई बार दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं.

बीवी पीछे हेलमेट लेकर बैठी रहती है लेकिन कभी पति को नहीं समझाती कि ये हेलमेट हाथ में टांगने के लिए नहीं बल्कि सिर में पहनने के लिए है. हाईवे पर रफ्तार के नियमों का पालन शायद ही कोई करता है. इधर शहर में ट्रैफिक की बदहाली के कुछ और भी कारण हैं. पहले साइकिलरिक्शा ने परेशान कर रखा था अब ई-रिक्शा और ऑटो चालकों ने परेशान कर रखा है.

उनके लिए नियम तो जैसे हैं ही नहीं और आश्चर्यजनक है कि पुलिस भी मूक दर्शक ही बनी रहती है. पैदल चालक भी सिग्नल की परवाह नहीं करते. ऐसे में दुर्घटनाएं कैसे रुक सकती हैं? दुर्घटनाएं रोकनी हैं तो लोगों को सड़क पर ठीक से चलना और ठीक से वाहन चलाना सिखाना होगा. उल्लंघन करने वालों पर सख्ती करनी होगी. क्या कोई इसके बारे में सोच रहा है?

टॅग्स :सड़क दुर्घटनाउत्तर प्रदेशNHAIनितिन गडकरीरोड सेफ्टीRoad SafetyRoad Transport
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