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पश्चिम बंगाल में बीजेपी की हार से वहम न पाले विपक्ष!

By विवेकानंद शांडिल | Published: May 05, 2021 1:43 PM

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ये कयास लगाए जाने लगे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ममता बनर्जी एक चेहरा बन सकती हैं. क्या वाकई ऐसा होगा और 2024 में एक अलग तस्वीर देखने को मिलेगी?

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे पर नए नए नैरेटिव दिए जा रहे हैं. इसमें कई एंगल शामिल हैं- जैसे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अब 2024 की राह कठिन होगी...2022 में होने वाले उत्तरप्रदेश के चुनाव में इ्सका असर होगा, या फिर 2024 में मोदी के खिलाफ ममता बनर्जी विपक्ष का मजबूत चेहरा बन सकती है! 

कहा ये भी जा रहा है कि ये मोदी राज के पतन की शुरूआत है। हालांकि ये महज एक कोरी कल्पना सी लगती है. इसे समझने के लिए हमें आपको 2016 में ले जाना होगा. साल 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने इसी दमखम के साथ चुनाव लड़ा था और तब भी ममता के हाथों बीजेपी को पराजय मिली थी.

बीजेपी महज 3 सीटें जीत सकी थी जबकि ठीक 2 साल पहले 2014 में मोदी प्रचंड जीत के साथ पहली बार प्रधानमंत्री बने थे. वहीं बंगाल चुनाव के ठीक अगले साल 2017 में उत्तर प्रदेश के चुनाव में बीजेपी प्रचंड जीत हासिल करने में कामयाब रही. 

बीजेपी मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ी और मोदी की आंधी में सपा-कांग्रेस का गठबंधन और बसपा धुल फांकते नजर आये.  कुल 404 सीटों में बीजेपी अकेले 311 सीटें और राजग की झोली में कुल 324 सीटें आई.

यहां आपको याद दिला दूं कि यूपी विधान सभा चुनाव से ठीक पहले चुनावी साल 2016 के नवंबर में नोटबंदी हुई थी. विपक्ष उस वक्त भी मोदी सरकार के खिलाफ गोलबंद था और मोदी के खिलाफ देश भर में विपक्ष रैलियां कर रहा था.

आज साल 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी भले ही सत्ता से दूर रही लेकिन 3 से सीटें बढ़कर 77 हुई ये अपने आप मे अप्रत्याशित है. बीजेपी अब बंगाल में मुख्य विपक्ष की भूमिका में आ गई है, बीजेपी को उत्साहित होने के लिए काफी है जबकि कांग्रेस, लेफ्ट और ममता के लिए ये खतरे की घण्टी है.

साल 2016 में जैसे नोटबंदी मोदी के गले की हड्डी बनती दिख रही थी ठीक इस बार 2021 में कोरोना का संकट पीएम के लिए बड़ी मुश्किल लाया है. बंगाल के आये चुनावी नतीज़ों के बाद विपक्ष उत्साहित ज़रूर है लेकिन उसे ऐसे सपने पालने से पहले इतिहास को ज़रूर याद कर लेना चाहिए.

साल 2017 के यूपी चुनाव में नोटबंदी तब तक बीजेपी के लिए कमज़ोर कड़ी दिखी जबतक के नेता रैलियां करते रहे, जब मैदान में मोदी उतरे तब नोटबंदी एक सही फैसला था ये कन्विंस करने में मोदी सफल रहे. अब जब 2022 में यूपी विधानसभा के चुनाव होने वाले है तो विपक्ष ज़ाहिर है कोरोना संकट को ही मुद्दा बनाकर मोदी और बीजेपी को घेरेगा.

कोरोना एक वैश्विक संकट है साल 2020 में जब पहला वेव आया तब मोदी दुनिया का नेतृत्व कर रहे थे. देश व दुनिया हर जगह उनकी तारीफ हो रही थी इस बार थोड़े सवालों के घेरे में है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मोदी हाथ खड़े कर दिए हैं. अभी चुनाव में भी वक़्त है और इस संकट से उबरने में भी, इसका विश्लेषण तो आगे होगा.

रही बात 2024 और ममता की तो इस बात को कोई नही नकार सकता कि मोदी जैसे गुजरात में अभेद्य थे ठीक वैसे ही इस बार अभेद्य ममता बंगाल में दिखी हैं. लेकिन जहां तक केंद्र की कुर्सी की बात है वहां ममता काफी दूर दूर तक नहीं दिखती है 

इसके दो कारण दिखते हैं. पहला- बंगाल के अलावा नॉर्थईस्ट के सीमित राज्यों में थोड़ी बहुत ममता की पकड़ है बाकी कहीं भी नज़र नहीं आती हैं. बंगाल से सटे झारखंड व बिहार को ही ले लें तो वहां ममता कहीं नहीं दिखती हैं.

दूसरा- ममता की भाषा है. वे बंगाली और अंग्रेज़ी ज्यादा बोलती है. वैसे हिंदी भी बोलती हैं पर अक्सर बंगाल से बाहर अंग्रेजी में संवाद करती नजर आती हैं. आपको याद होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत के बाद जब कांग्रेस की ओर से काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे के.कामराज को प्रधानमंत्री पद का ऑफर किया गया तो उन्होंने सिर्फ ये कहकर ठुकरा दिया था कि उन्हें हिंदी नहीं आती, उनका भाव यही था कि शायद वो प्रधानमंत्री बन जाएं लेकिन उनके पीएम बनने से हिंदी भाषी क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ कमज़ोर हो जाएगी जिसके बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी.

इसलिए विपक्ष खासकर कांग्रेस को बीजेपी और मोदी की हार में अपनी जीत तलाशने के बजाय आत्ममंथन की ज़रूरत है. पांच राज्यों के आये चुनावी नतीज़ों में कांग्रेस तमिलनाडु को छोड़कर कहीं नहीं दिख रही ,वहां भी डीएमके के साथ गठबंधन में जबकि बीजेपी असम में अपने दमपर दोबारा सरकार बनाई है, पश्चिम बंगाल - तमिलनाडु में विपक्ष की भूमिका में है और पुडुचेरी में साझा सरकार का हिस्सा।

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