डॉ. महेश परिमल
अहमदाबाद में रथयात्रा के दौरान दो हाथी बिफर गए. इसका कारण था डीजे का शोर. खुशियों को साझा करने के लिए भला शोर की क्या आवश्यकता है? इसे समझने के लिए कोई भी तैयार नहीं है. आज चारों तरफ शोर का ही माहौल है. खुशियां बांटने के लिए अब लोग डीजे का सहारा लेने लगे हैं. डीजे यानी डिस्क जॉकी. डीजे केवल इंसानों को ही नहीं, बल्कि जानवरों को भी प्रभावित करने लगे हैं, जिसकी ज्वलंत मिसाल हाथियों का बिफरना है.
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बीते दिनों डीजे की तेज आवाज से 13 वर्षीय समर बिल्लौरे की मौत हो गई. ऐसा ही एक केस छत्तीसगढ़ से सामने आया था, जहां बलरामपुर जिले में एक 40 वर्षीय युवक की डीजे की तेज आवाज से सिर की नस फट गई और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. आज के दौर में धार्मिक आयोजनों और शादी समारोह में तेज आवाज में डीजे बजाने का चलन बढ़ता जा रहा है, जो बेहद चिंता का विषय है.
डीजे की तेज आवाज से कभी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन लाल यादव भी आक्रांत हुए होंगे, इसलिए पद की शपथ लेते ही उन्होंने सबसे पहला आदेश डीजे पर प्रतिबंध का दिया. पर आज भी पूरे प्रदेश में डीजे धड़ल्ले से बज रहा है और लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहा है.
शोर इंसान को सदैव विचलित करता आया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन यह कहते-कहते थक गया है कि 12 से 35 वर्ष की आयु के एक अरब से अधिक लोगों पर तेज म्यूजिक और लंबे समय तक तेज शोर के संपर्क में रहने से सुनने की क्षमता कम होने का खतरा है. डाॅक्टर्स कहते हैं कि हमारे कानों और दिल का सीधा कनेक्शन होता है. यानी जो भी आवाज कानों में पड़ती है, वह नसों के जरिये दिल तक पहुंचती है. जब लगातार डीजे का तेज साउंड कानों में पड़ता है तो हार्ट बीट्स बढ़ जाती हैं.
इससे स्ट्रेस, एंग्जाइटी और डर बढ़ता है. ऐसी स्थिति में कान की नसों में खून गाढ़ा होने लगता है. इसके लंबे समय तक रहने से हार्ट अटैक हो सकता है.
अमेरिका के न्यू जर्सी मेडिक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत ज्यादा शोर वाले इलाके में रहने वाले लोगों में हार्ट अटैक का खतरा ज्यादा होता है. बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए तेज आवाज बेहद खतरनाक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार साल 2050 तक चार में से एक व्यक्ति की सुनने की क्षमता कमजोर हो सकती है.
अध्ययन में इसके कई कारण बताए गए हैं, जिनमें प्रमुख वजहों में से एक है ईयरबड्स और ईयरफोन का बढ़ता इस्तेमाल. लगभग 65 प्रतिशत लोग ईयरबड्स, ईयरफोन या हेडफोन से म्यूजिक, पॉडकास्ट या कुछ भी और सुनते हुए वॉल्यूम 85 डेसीबल से अधिक रखते हैं, जो कान के इंटरनल हिस्से के लिए बेहद नुकसानदायक है.
आजकल ईयरबड्स या ईयरफोन का इस्तेमाल म्यूजिक सुनने के अलावा सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर रील्स और वीडियो देखने के लिए भी किया जाता है, जिनमें कई बार वॉल्यूम आउटपुट सामान्य से अधिक होता है. लंबे समय तक इनका इस्तेमाल करना कानों को नुकसान पहुंचाता है.