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विजय दर्डा का ब्लॉग: हम सब अब सशक्त समाज की नई इबारत लिखें

By विजय दर्डा | Updated: August 9, 2020 17:51 IST

5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर का भूमि पूजन एवं शिलान्यास किया। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पीएम मोदी ने मंदिर निर्माण के लिये पहली शिला रखी।

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यह सबके लिए सुकून की बात है कि विवादों से भरा अध्याय समाप्त हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर का भूमिपूजन  कर दिया है और जल्द ही मंदिर आकार भी ले लेगा. अयोध्या में ही मस्जिद का निर्माण भी आने वाले दिनों में शुरू हो जाएगा. मस्जिद के लिए भी यथायोग्य सहयोग मिलने वाला है. सर्वोच्च न्यायालय का हमें आभारी होना चाहिए जिसने मंदिर-मस्जिद के इस विवाद को समाप्त किया. सबसे अच्छी बात है कि न्यायालय के फैसले को दोनों पक्षों ने स्वीकार किया.  

यह किसी की जीत नहीं और न किसी की हार

महामारी के इस भीषण संकट काल में भी प्रधानमंत्री ने राम मंदिर के भूमिपूजन समारोह में जाने का निर्णय लिया तो उद्देश्य स्पष्ट था कि इस प्रकरण को अब विराम मिले और देश में भाईचारे का वातावरण बने. इस विवाद ने देश को बहुत क्षति पहुंचाई है. अब कोई ऐसा विवाद खड़ा नहीं होना चाहिए. यह किसी की जीत नहीं है और न किसी की हार है. दोनों पक्षों ने जो संयम दिखाया है, उसकी तारीफ की जानी चाहिए. यह सही है कि इस देश में संख्या की दृष्टि से हिंदुओं की तादाद ज्यादा है लेकिन हमारा संविधान धर्म, जाति, आस्था और आर्थिक कूवत के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करता. चाहे हिंदू हों, मुसलमान हों, सिख हों, बौद्ध हों, जैन हों, ईसाई हों, पारसी हों या फिर नास्तिक ही क्यों न हों, हमारा संविधान सबको एक समान अधिकार देता है. किसी को भी डरने की कोई जरूरत नहीं है. यह देश हर किसी का है. इसीलिए हम सभी गर्व से कहते भी हैं.. सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा... लेकिन कुछ लोग हैं जो वातावरण को दूषित करते हैं और इसका खामियाजा पूरे राष्ट्र को भुगतना पड़ता है. 

बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे इकबाल अंसारी समारोह में हुए थे शामिल 

पुरानी बातें अब भूलनी चाहिए

ये मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं, दंगे-फसाद, अफवाह फैलाने और भड़काने का काम बंद होना चाहिए. दोनों पक्षों की जिम्मेदारी है कि बाहरी तत्वों को खुराफात का मौका ही न दें. मैं तारीफ करता हूं इकबाल अंसारी की, जो मस्जिद के लिए कोर्ट में लड़ रहे थे लेकिन राम मंदिर के शिलान्यास समारोह में वह शामिल हुए. सौहार्द का उदाहरण देखिए कि कई मुस्लिम बहनों ने अपनी परंपरा से हटकर रामलला की आरती भी की. निश्चय ही सबको साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी हम सबकी है लेकिन जो सरकार में होता है उसकी जिम्मेदारी ज्यादा होती है. प्रधानमंत्री की तरफ से साफ और सख्त निर्देश होने चाहिए कि किसी भी खुराफाती संगठन या व्यक्ति को बख्शा नहीं  जाएगा चाहे वो कोई भी हो! पुरानी बातें अब भूलनी चाहिए और नई इबारत लिखनी चाहिए, ताकि हमारा देश उन्नति की राह पर बढ़ सके. हमारे सामने गरीबी, अशिक्षा और भूख से लड़ने की चुनौती तो है ही, भीषण महामारी से भी निपटने की चुनौती का हम सामना कर रहे हैं. एकजुट होकर ही हम इसका सामना कर सकते हैं ताकि अच्छे दिन आ सकें.

‘राम राज’ आना चाहिए

प्रधानमंत्री ने ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ का उद्घोष किया है. मेरा आग्रह है कि अब सही अर्थों में ‘राम राज’ आना चाहिए. मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि राम राज का अर्थ किसी धर्म विशेष से नहीं है और न राम की पूजा और आराधना से है. राम राज का अर्थ है ऐसा गवर्नेंस स्थापित करना जैसा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने किया था. जहां कोई भूखा न रहे, कोई सताया न जाए, सब निडर रहें, भयमुक्त वातावरण में सांस ले सकें, समाज के अंतिम व्यक्ति तक खुशहाली पहुंचे. आज की स्थिति में महामारी ने बेरोजगारी की स्थिति को गंभीर बना दिया है. प्रधानमंत्री को इस विषय पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए. यदि सर्वसामान्य आदमी दुखी होगा, कष्ट में रहेगा तो राम राज की कल्पना साकार नहीं होगी और न प्रभु रामचंद्र जी खुश होंगे.  

1989 में जब राजीव गांधी ने कही थी राम राज की बात 

राम राज की परिकल्पना नई नहीं है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्र भारत के लिए राम राज की ही कल्पना की थी. उनका संपूर्ण आचरण भी उसी के अनुरूप था. समाज के अंतिम तबके को भी वे गले लगाते थे. 1989 में राजीव गांधी ने भी राम राज की बात की जब फैजाबाद से वे चुनाव प्रचार की शुरुआत कर रहे थे. उस समय  कांग्रेस के भीतर हड़कंप मच गया था कि राजीव गांधी ने ये क्या कह दिया? उनके मूल भाषण में तो ‘राम राज’ शब्द था ही नहीं जिसे उनके विशेष सहयोगी मणिशंकर अय्यर ने लिखा था! उस समय जब प्रधानमंत्री राजीव जी से मेरी मुलाकात हुई तो मैंने कश्मीर, बोडो समस्या और विदर्भ राज्य निर्माण पर चर्चा के साथ ही राम राज के प्रसंग पर भी उनसे चर्चा की थी. दरअसल राजीव जी की जुबान नहीं फिसली थी बल्कि बहुत सोच-समझ के साथ उन्होंने ‘राम राज’ शब्द का उपयोग किया था. वे ऐसे भारत के निर्माण का संदेश देना चाहते थे जहां कोई भेदभाव न हो और सभी विचारों और आस्था के लोग बिना किसी भय के रहें.

राजीव गांधी समझते थे सभी धर्म की भावनाएं

राजीव जी की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के प्रति उनकी आस्था पर कोई सवाल खड़ा किया ही नहीं जा सकता. वे सभी धर्म की भावनाएं समझते थे. दरअसल कांग्रेस पर यह आरोप ही गलत है कि उसने हिंदुओं की उपेक्षा की. कांग्रेस समभाव में विश्वास रखने वाली पार्टी है. कांग्रेस हिंदुओं की भावनाएं समझती रही है. वो राजीव गांधी ही थे जिन्होंने रामानंद सागर को ‘रामायण’ सीरियल बनाने के लिए प्रेरित किया. 1987-88 में प्रसारित रामायण को 55 देशों में 250 करोड़ लोगों ने देखा था. राजीव जी चाहते थे कि सारा देश श्री राम को सही अर्थों में समझे. राजीव गांधी ने ही 1989 में विश्व हिंदू परिषद को शिलान्यास की अनुमति दी थी. बल्कि शिलान्यास में भाग लेने के लिए उन्होंने अपने गृह मंत्री बूटा सिंह को अयोध्या भी भेजा था. राजीव गांधी कोई राजनीतिक फायदा नहीं उठा रहे थे बल्कि वह चाहते थे कि हमारे देश में राम राज जैसी आदर्श शासन प्रणाली स्थापित की जाए ताकि ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ की कल्पना साकार हो.

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