विजय दर्डा का ब्लॉग: आजादी के बाद कांग्रेस ने किया ही क्या है!
By विजय दर्डा | Updated: March 11, 2019 05:54 IST2019-03-11T05:54:05+5:302019-03-11T05:54:05+5:30
मैं कांग्रेसी हूं लेकिन यदि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस या केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अच्छा काम कर रहे हैं तो मुझे कहना पड़ेगा कि वे अच्छा कर रहे हैं.

विजय दर्डा का ब्लॉग: आजादी के बाद कांग्रेस ने किया ही क्या है!
मुझे अटल बिहारी वाजपेयी का एक किस्सा याद आ रहा है. जब वे सत्ता में आए तो एक दिन उन्होंने पाया कि संसद के गलियारे में लगा नेहरूजी का फोटो गायब है. उन्होंने तत्काल पूछा कि यह किसकी हरकत है. किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली लेकिन अगले दिन वह फोटो अपनी जगह टंगी हुई थी. जब नेहरूजी प्रधानमंत्री थे तब वे विरोध में बैठे अटलजी को बोलने का हर मौका देते थे. आज की राजनीति इसके ठीक विपरीत हो गई है. एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव तो खैर बचा ही नहीं है, अब तो दूसरे की लकीर लगातार छोटी करने का प्रपंच रचा जा रहा है. सफेद झूठ बोला जा रहा है. नेता भूल जाते हैं कि जागरूक जनता सब समझती है.
ऐसा ही एक सफेद झूठ इन दिनों देश की राजनीति का हिस्सा बनता जा रहा है. भाजपा के बड़े नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस के राज में कोई विकास हुआ ही नहीं. विकास तो बस भाजपा ही कर रही है! सवाल यह पैदा होता है कि यदि कांग्रेस ने अपने लंबे कार्यकाल में कुछ किया ही नहीं तो देश यहां तक पहुंचा कैसे? ये लोग यह याद क्यों नहीं करते कि जब देश आजाद हुआ तब हम शून्य की स्थिति पर थे.
क्या आसान काम था वहां से देश को आज की स्थिति में लाना? हमें शुक्रगुजार होना चाहिए जवाहरलाल नेहरू का जिन्होंने औद्योगिक क्रांति और विज्ञान के नजरिए से देश के विकास की रूपरेखा तैयार की. उन्होंने देश के भीतर यह भावना भरी कि आधुनिक कल-कारखाने ही विकास के मंदिर हैं. इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि आज हम जिस तरह से औद्योगिक देश के रूप में अपनी पहचान रखते हैं, वह नेहरूजी की ही देन है.
जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले लालबहादुर शास्त्री को हम कैसे भूल सकते हैं. उनके कहने पर देश ने एक समय का भोजन त्याग दिया था. हम कैसे भूल सकते हैं आयरन लेडी इंदिरा गांधी को जिन्होंने इस देश में सड़कों का जाल बिछाने और नदियों पर बड़ी संख्या में पुल बांधने का सपना देखा. उन्होंने सपने को साकार किया. देश तेजी से आगे बढ़ा.
आज जो आधुनिक संचार के साधन हम देख रहे हैं, उसके लिए क्या राजीव गांधी के योगदान को भुला सकते हैं. ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का सपना देखने वाले संजय गांधी को क्या दरकिनार कर सकते हैं? किसानों को धरातल पर लाने वाले चौधरी चरण सिंह या देश को एक समय में आर्थिक संकट से बाहर लाने वाले चंद्रशेखर को क्या भुला सकते हैं. दुनिया भर से भारत के रिश्ते बेहतर करने वाले इंद्रकुमार गुजराल या आर्थिक तरक्की की राह खोलने वाले मनमोहन सिंह को कैसे कम करके आंका जा सकता है?
मुङो याद है कि गरीबों के घर दोनों समय भोजन बनेगा या नहीं, यह तय नहीं रहता था. कांग्रेस ने ही कम से कम 100 दिन काम की गारंटी दी.
अस्पताल नहीं थे, जहां थे वहां दवाइयां नहीं होती थीं. मेडिकल जांच की मशीनें नहीं थीं. पता ही नहीं चलता था कि आदमी किस बीमारी से मर गया! रास्ते नहीं थे. मैं बचपन में अपनी नानी के घर जाता था तो दिन भर लग जाता था. आज वह दूरी एक-डेढ़ घंटे से ज्यादा की नहीं है. सड़कों का जाल बिछाने के लिए क्या अटलजी को याद नहीं किया जाएगा?
जो लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस ने कुछ नहीं किया उन्हें याद करना चाहिए कि आजादी के बाद देश के हालात क्या थे. हमारे पास पेट भरने को अनाज नहीं था, फल की बात तो बहुत दूर की है. उस वक्त यदि कोई फल खरीदता था तो लोग पूछते थे कि घर में कौन बीमार है? वहां से देश को आगे लाना कोई खेल नहीं था. कांग्रेस ने यह कर दिखाया. कांग्रेस ने सूचना का अधिकार, भोजन और शिक्षा का अधिकार जैसे कालजयी निर्णय लिए.
आज हम सीधे तौर पर संसद की कार्रवाई देखते हैं, यह भी कांग्रेस ने ही किया. और जहां तक राष्ट्रवाद का सवाल है तो इंदिरा गांधी ने पूरी दुनिया की परवाह न करते हुए पाकिस्तान को जिस तरह से दो टुकड़ों में बांट दिया वह बड़े जिगर का काम था. पाक के करीब एक लाख सैनिकों ने सरेंडर किया था!
फिर कोई कैसे कह सकता है कि कांग्रेस ने कुछ किया ही नहीं! अजीब बात है न! अपनी लकीर बड़ी करने का अधिकार सभी को है लेकिन दूसरों की लकीर मिटाने की कोशिश बेईमानी है. यदि मोदीजी अच्छा काम कर रहे हैं तो हम सबको स्वीकार करना चाहिए कि हां वे अच्छा कर रहे हैं.
मैं कांग्रेसी हूं लेकिन यदि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस या केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अच्छा काम कर रहे हैं तो मुझे कहना पड़ेगा कि वे अच्छा कर रहे हैं.
हमारी विचारधारा अलग हो सकती है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि हम दूसरों को छोटा बताएं. उनके किए को भूल जाएं! आज यही हो रहा है जिसके कारण समाज में टूटन दिख रही है. ध्यान रखिए कि समाज में शांति, अपनापन, सौहाद्र्र यदि नहीं है तो घर कैसा होगा. हमें यह समझना होगा कि जो भी यहां है यहीं का है. देश में संशय का जो वातावरण है उसे दूर करना बहुत जरूरी है. यह राजनीति की जिम्मेदारी है.