विजय दर्डा का ब्लॉग: तिरंगा लहरा कर या उसमें लिपट कर आऊंगा

By विजय दर्डा | Updated: August 17, 2021 16:43 IST2021-08-17T09:13:11+5:302021-08-17T16:43:31+5:30

कारगिल की जंग में भारतीय फौजियों के अदम्य साहस और शौर्य के अनगिनत किस्से हैं. ऐसी ही एक फिल्म 'शेरशाह' विक्रम बत्रा की शौर्य गाथा है.

Vijay Darda Blog on Shershah movie and Kargil war hero Vikram Batra life | विजय दर्डा का ब्लॉग: तिरंगा लहरा कर या उसमें लिपट कर आऊंगा

'शेरशाह'..सिद्धार्थ मल्होत्रा ने निभाई है विक्रम बत्रा की भूमिका

वैसी फिल्में जो देशप्रेम से ओतप्रोत हों, जो नौजवानों को और हम सभी को प्रेरित करें, मैं जरूर देखता हूं. अभी-अभी मैंने फिल्म शेरशाह देखी और कारगिल युद्ध की कड़वी यादों में खो गया. हमारे 527 फौजी शहीद हुए थे उस जंग में. मेरे मन में हमेशा यह सवाल रहा है कि युद्ध में कोई भी मरे वह किसी न किसी का बेटा है, भाई है, पति है. 

युद्ध लादे जाते हैं. इसलिए युद्ध से मुझे नफरत है. आपको भी नफरत होगी ही! लेकिन जब युद्ध थोप दिया गया तो हमारे सैनिकों ने मां भारती के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. कारगिल की जंग में भारतीय फौजियों के अदम्य साहस और शौर्य के अनगिनत किस्से हैं लेकिन फिल्म शेरशाह विक्रम बत्र की शौर्य गाथा है. करण जौहर द्वारा प्रस्तुत और विष्णु वर्धन द्वारा निर्देशित फिल्म ‘शेरशाह’ में सिद्धार्थ मल्होत्र और कियारा आडवाणी ने अपने किरदार को भरपूर जिया है. 

वैसे इसके पहले अभिषेक बच्चन ने फिल्म एलओसी कारगिल में विक्रम बत्र का रोल निभाया था. कैप्टन विक्रम बत्र हिमाचल प्रदेश के छोटे से लेकिन बड़े खूबसूरत से शहर पालनपुर के रहने वाले थे और फिल्म देखते हुए मैं सोच रहा था कि आखिर वो कौन सी ताकत है जो हिमाचल जैसे शांत प्रदेश को शूरवीरों की धरती बना देती है. 

कारगिल की लड़ाई में हिमाचल के 52 वीरों ने अपनी शहादत दी थी. इनमें दो परमवीर चक्र विजेता भी शामिल हैं. कैप्टन विक्रम बत्र को मरणोपरांत और हवलदार संजय कुमार को राष्ट्रपति ने परमवीर चक्र से नवाजा था. विक्रम बत्र के पिता जी.एल.बत्र और मां कमल कांता बत्र दोनों ही शिक्षक थे. विक्रम बत्र और उनके भाई विशाल बत्र को मां ने लव और कुश नाम दिया था. 

परिवार का दूर-दूर तक सेना से कोई संबंध नहीं था लेकिन लव का स्कूल सेना की छावनी में था. बचपन में ही सेना में जाने की उन पर धुन सवार हो गई. तिरंगा उन्हें आकर्षित करने लगा और जन गण मन की धुन उनके जेहन पर राज करने लगी. अंतत: वे सेना में जा पहुंचे.

कमांडो ट्रेनिंग कर चुके विक्रम ने कारगिल युद्ध में अपना पहला शौर्य हम्प एवं राकी नाब को जीत कर दिखाया. उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया और देखते ही देखते वे सेकेंड लेफ्टिनेंट से कैप्टन बन गए. उसके बाद कारगिल में 5140 नाम की चोटी पर जीत का वो कारनामा उन्होंने कर दिखाया जिसे बेहद कठिन माना जा रहा था. वे ऐसे रास्ते से उस चोटी पर पहुंचे कि शत्रु को भनक तक न लगी. 

उनकी खासियत थी सबसे आगे रहकर दस्ते का नेतृत्व करना. 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर चोटी 5140 को फतह करने के बाद जब उन्होंने रेडियो के जरिये ‘ये दिल मांगे मोर’ का अपना विजय उद्घोष दिया तो पूरा देश उनका दीवाना हो गया. इस ऑपरेशन के लिए कर्नल योगेश कुमार जोशी ने उन्हें ‘शेरशाह’ का कोड नाम दिया था.

विक्रम बत्र की जांबाजी के किस्से सेना में गूंज रहे थे. माना जाने लगा था कि विक्रम कुछ भी कर सकता है! उन्हें बेहद संकरी चोटी 4875 से दुश्मनों को खदेड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई. इस चोटी के  दोनों ओर खड़ी ढलान थी. ऊपर जाने का एकमात्र रास्ता दुश्मन की जद में था. कैप्टन बत्र ने वो रास्ता चुना जिसके बारे में पाकिस्तानी कभी सोच भी नहीं सकते थे. ऊपर आमने-सामने की भीषण लड़ाई में उन्होंने पांच दुश्मनों को मार गिराया. 

वे गोलियों से छलनी हो गए लेकिन बहादुरी देखिए कि इतना जख्मी होने के बावजूद उन्होंने ग्रेनेड फेंका और दुश्मनों का सफाया कर दिया. चोटी तो फतह हो गई लेकिन हमने अपना शेरशाह खो दिया!

कारगिल की जंग पर रवाना होने से पहले पालनपुर में विक्रम बत्र ने अपने दोस्त से बातचीत में कहा था या तो बर्फीली चोटी पर तिरंगा लहराकर आऊंगा नहीं तो उसी तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, पर आऊंगा जरूर. न केवल 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स बल्कि सेना की हर टुकड़ी में विक्रम बत्र का यह वाक्य बड़े गर्व से दोहराया जाता है. 

दरअसल ये तिरंगे की ही ताकत है जो किसी व्यक्ति को देश पर मर मिटने का जज्बा देती है. दुश्मन के छक्के छुड़ा देने की ताकत देती है. भारत माता को एक राष्ट्र के रूप में पूरी दुनिया में पहचान देती है. निजी रूप से हम सभी को मान देती है.

संदर्भवश मैं यहां इस बात का जिक्र करना चाहूंगा कि जब मैं संसद में पहुंचा तो मेरे सीने पर तिरंगे का लैपल लगा था और मुझे उस दिन रोक दिया गया कि यह लैपल लगाकर आप अंदर नहीं जा सकते. इजाजत नहीं है. उसके बाद मैंने अथक संघर्ष किया और मुझे खुशी है कि अंतत: संसद को स्वीकार करना पड़ा कि सीने पर तिरंगे का लैपल लगाना हर भारतीय का अधिकार है.

खैर, मैं बात तिरंगे की शान की कर रहा था. इसी तिरंगे की शान की खातिर हमारे फौजी उन दुर्गम इलाकों में बहादुरी के साथ तैनात रहते हैं जहां सामान्य व्यक्ति एक मिनट भी टिकने की बात तो दूर वहां पहुंचने की हिम्मत भी नहीं कर सकता. वहां भी तिरंगा उनके साथ होता है. मुझे लगता है कि हमारे शूरवीरों पर निरंतर फिल्में बननी चाहिए ताकि हमारे युवाओं को प्रेरणा मिले. 

दुर्भाग्य से आज युवाओं के सामने प्रेरणा प्राप्त करने के अवसर कम हैं. पढ़ाई, खेल, व्यवसाय या प्रोफेशन, हर जगह प्रेरणा की कमी है. समाज की ओर से, शासन की तरफ से ऐसे प्रयास होते रहने चाहिए कि लोगों को प्रेरणा मिले. लोग गलत काम से दूर हों. कोई मिलावट करने के पहले यह सोचे कि यह पाप है. कोई युवा यदि शैक्षणिक संस्थान में जा रहा है तो शिक्षक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करें कि वह युवा या बच्च वहीं पढ़े. खिलाड़ियों को लगे कि भेदभाव नहीं है. राजनीति के लोगों को लोकसेवा के प्रति समर्पित होना चाहिए.  

फिल्म शेरशाह वाकई प्रेरणादायी है. जरा डिंपल चीमा की भावनाओं पर गौर कीजिए जिन्होंने विक्रम बत्र के शहीद होने के बाद खुद शादी करने से इनकार कर दिया! मैं उनके जज्बे को सलाम करता हूं. उन सभी शहीदों और फौजियों को सलाम करता हूं जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर तिरंगे का मान रखा. तिरंगे की शान रखी. भारत माता की लाज रखी. इसीलिए तो हम सभी गर्व से कहते हैं..सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा!

जय हिंद!
वंदे मातरम्!

Web Title: Vijay Darda Blog on Shershah movie and Kargil war hero Vikram Batra life

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