वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: पाइपलाइन बने लाइफलाइन
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: September 12, 2019 12:05 IST2019-09-12T12:05:19+5:302019-09-12T12:05:19+5:30
सैकड़ों ट्रकों की आवाजाही से फैलनेवाला प्रदूषण भी रु केगा. इस पाइपलाइन के फायदे दोनों देशों को पता थे, इसलिए जिसे 30 महीने में बनना था, वह 75 महीने में ही बनकर तैयार हो गई.

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: पाइपलाइन बने लाइफलाइन
भारत और नेपाल के बीच 69 किमी की तेल पाइपलाइन का बन जाना भारत के सभी पड़ौसी देशों यानीसंपूर्ण दक्षिण एशिया के लिए अत्यंत प्रेरणादायक घटना है. यदि भारत और उसके पड़ौसी देशों के बीच इसी तरह गैस, तेल, बिजली और पानी की पाइपलाइनें बिछ जाएं तो बड़ा चमत्कार हो सकता है. सभी दक्षिण एशियाई देशों को अरबों रु. की बचत हर साल हो सकती है.
सैकड़ों ट्रकों की आवाजाही से फैलनेवाला प्रदूषण भी रु केगा. इस पाइपलाइन के फायदे दोनों देशों को पता थे, इसलिए जिसे 30 महीने में बनना था, वह 75 महीने में ही बनकर तैयार हो गई. भारत ने इसके निर्माण में 324 करोड़ रु. लगाए हैं. इस पाइपलाइन से हर साल 20 लाख टन पेट्रोलियम भारत से नेपाल जाएगा. यह पाइपलाइन भारत और नेपाल के बीच लाइफलाइन बन जाएगी.
अब भारत के प्रति नेपाल का रवैया पहले से अधिक मैत्रीपूर्ण होने की संभावना है. यहां प्रश्न यही है कि भारत की इस सफल पहल से क्या हमारे अन्य पड़ौसी देश कुछ प्रेरणा लेंगे या नहीं ? 205 में तुर्क मेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के बीच समझौता हुआ था कि 680 किमी लंबी इस “तापी”’ नामक गैस की पाइपलाइन से तुर्कमान गैस अफगानिस्तान और पाकिस्तान होती हुई भारत आएगी.
56 इंच चौड़ी इस पाइलाइन से 9 करोड़ क्यूबिक मीटर गैस इन तीनों देशों को रोज मिलेगी. यह गैस काफी सस्ती होगी. इस पाइपलाइन पर 0 बिलियन डॉलर खर्च होने थे. कई अमेरिकी कंपनियां भी इस खर्च के लिए तैयार थीं लेकिन 203 से चल रही ये कोशिशें आज तक परवान नहीं चढ़ पाई. क्यों नहीं चढ़ पाई क्योंकि तालिबान विवाद के कारण अफगानिस्तान में अस्थिरता है और कश्मीर-विवाद के कारण पाकिस्तान की त्यौरियां चढ़ी रहती हैं.