काम तो बहुत हो रहा मगर कुछ कसर अब भी बाकी है

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 8, 2022 15:47 IST2022-12-08T15:47:20+5:302022-12-08T15:47:20+5:30

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस मायने में भी चिंताजनक है कि आजादी हासिल करने के 75 वर्ष बाद अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने एवं खाद्यान्न का बंपर स्टाक होने के बावजूद एक वर्ग भुखमरी की चपेट में है।

the responsibility of the government to feed every citizen of the country apex court | काम तो बहुत हो रहा मगर कुछ कसर अब भी बाकी है

काम तो बहुत हो रहा मगर कुछ कसर अब भी बाकी है

सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि देश के हर नागरिक का पेट भरना सरकार की जिम्मेदारी है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से स्पष्ट है कि केंद्र तथा राज्य सरकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद गरीब तबका अभी भी दो वक्त का भोजन प्राप्त करने के लिए जूझ रहा है एवं सरकारी योजनाओं का लाभ उस तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस मायने में भी चिंताजनक है कि आजादी हासिल करने के 75 वर्ष बाद अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने एवं खाद्यान्न का बंपर स्टाक होने के बावजूद एक वर्ग भुखमरी की चपेट में है।

यह स्थिति बेहद शर्मनाक तथा दुर्भाग्यपूर्ण है। विकास की तमाम उपलब्धियां तब तक कोई अर्थ नहीं रखतीं, जब तक देश में एक भी व्यक्ति को गरीबी के कारण भूखा सोना पड़ रहा हो। यह अफसोसजनक स्थिति तब है, जब भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जहां केंद्र तथा राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं के तहत गरीबों को लगभग मुफ्त या बेहद रियायती दरों में अनाज उपलब्ध करवाया जा रहा है।

कोविड महामारी में लॉकडाउन के दौरान एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की शीर्ष अदालत ने भोजन के अधिकार को एक तरह से भारतीय संस्कृति से जोड़ दिया। अदालत ने कहा कि हमारी संस्कृति सिखाती है कि किसी को खाली पेट सोना न पड़े। केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी है कि देश का कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे। अदालत ने सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत देश के अंतिम व्यक्ति तक अनाज पहुंचे।

आजादी के बाद देश ने सभी मोर्चों पर उल्लेखनीय तरक्की की है। अन्न उत्पादन के मामले में तो देश की उपलब्धि विशेष उल्लेखनीय रही है। आजादी में हमें घोर गरीबी विरासत में मिली थी। अंग्रेजों ने देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया था और देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को दो वक्त का भोजन नसीब नहीं हो रहा था। साठ और सत्तर के दशक के भयावह अकाल की याद आज भी बुजुर्ग पीढ़ी को होगी।

अमेरिका से देश को अनाज का आयात करना पड़ा था। अमेरिका ने इतना खराब अनाज भारत को दिया, जो पशुओं के खाने योग्य भी नहीं था. उस संकट से भारत उबर तो गया लेकिन उसने सबक भी सीखा तथा अन्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की दिशा में ठोस कदम उठाए। इसका नतीजा हरित क्रांति के रूप में सामने आया। भारत खाद्यान्न उत्पादन के मामले में न केवल आत्मनिर्भर बना बल्कि वह दूसरे देशों को अनाज का निर्यात भी करने लगा।

इतनी महत्वपूर्ण उपलब्धि के बावजूद इस सच को स्वीकार करना पड़ेगा कि गरीब तबके के हर व्यक्ति की भूख को शांत करने में सरकार को सफलता नहीं मिली। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीब तबके को उचित मूल्य पर राशन मुहैया करवाने के प्रयास आजादी के बाद से ही होते आ रहे हैं, लेकिन यह योजना कुप्रबंधन, खामियों तथा भ्रष्टाचार के कारण अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकी।

पिछले दो दशकों में देश के चुनाव में गरीबों के लिए मुफ्त सौगातों का चलन घर कर गया है। मुफ्त या सस्ते में अनाज देने की योजनाओं को सत्ता में आने के बाद तमाम राजनीतिक दलों ने पूरा भी किया। इनसे गरीब तबके को निश्चित रूप से फायदा हुआ। ओडिशा का कालाहांडी क्षेत्र हो या महाराष्ट्र में विदर्भ का मेलघाट इलाका, अब कुपोषण या भुखमरी के अभिशाप से उबरने लगे हैं।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत निर्धनों को मुफ्त अनाज बांटने के लिए राज्यों को केंद्र से खाद्यान्न के साथ-साथ तेल, दाल और शक्कर का भी आवंटन होता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये इनका वितरण होता है। कोविड काल में तो गरीब तबके को दो साल से ज्यादा तक मुफ्त अनाज सरकार की ओर से बांटा गया। इससे 80 करोड़ से ज्यादा लोग लाभान्वित हुए।

डिजिटल क्रांति के आगमन के बाद राशन दुकानों से खाद्यान्न के वितरण के तरीके को आधुनिक रूप दिया गया ताकि लाभार्थी के हक का अनाज गलत तत्वों के हाथों में न जाए। गरीबों का पेट भरने की दिशा में काम तो बहुत हो रहा है लेकिन कहीं न कहीं खामियां भी जरूर रह गई हैं जिन्हें दूर करना जरूरी है अन्यथा सुप्रीम कोर्ट को ऐसी टिप्पणी नहीं करनी पड़ती।
 

Web Title: the responsibility of the government to feed every citizen of the country apex court

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