इस साल तो प्रवासी पक्षियों के आने का सिलसिला शुरू ही हुआ था कि कोई 70 का मृत शरीर झील पर तैरता मिला. कई पीढ़ियों से भारत के जाड़े के मौसम में दूर देश से आने वाले पंछियों के लिए राजस्थान की सांभर झील अचानक कब्रगाह बन गई है. 2019 में तो यहां हजारों पक्षी मारे गए थे. पिछले साल यहां कोई 200 पक्षियों के मरने का आंकड़ा दर्ज है. इस साल मारे गए पक्षियों की की जांच के लिए सैम्पल सेंटर फॉर एनिमल डिजीज रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक्स लैब, बरेली को भेजे गए तो आशंका पुष्ट हो गई कि पक्षियों की मौत का कारण वही एवियन बोटुलिज्म है जिसके कारण बीते कई सालों से मेहमान परिंदों के लिए सांभर झील कब्रगाह बनती जा रही है.
इस बात की परवाह किसी को नहीं है कि भारत में विदेशी पक्षियों के सबसे बड़े ठिकाने में से एक सांभर झील आने वाले मेहमानों की संख्या लगातार घट रही हैं. वैसे यहां कोई ढाई सौ प्रजाति के पक्षी आते रहे हैं लेकिन इस बार यह संख्या 110 ही रही है. शायद कुदरत ने इन बेजुबान जानवरों को संभावित खतरे को भांपने की क्षमता भी दी है तभी वे झील के नैसर्गिक स्वरूप में हो रही छेडछाड़ से शायद सशंकित हो रहे हैं.
आर्कटिक क्षेत्र और उत्तरी ध्रुव में जब तापमान शून्य से चालीस डिग्री तक नीचे जाने लगता है तो वहां के पक्षी भारत की ओर आ जाते हैं, ऐसा हजारों साल से हो रहा है. ये पक्षी किस तरह रास्ता पहचानते हैं, किस तरह हजारों किलोमीटर उड़ कर आते हैं, किस तरह ठीक उसी जगह आते हैं, जहां उनके दादा-परदादा आते थे, विज्ञान के लिए भी अनसुलझी पहेली की तरह है. यह जलवायु परिवर्तन की त्रासदी है कि इस साल औसत से कोई 46 फीसदी ज्यादा पानी बरसा. इससे झील के जल ग्रहण क्षेत्र का विस्तार हो गया.
चूंकि इस झील में नदियों से मीठा पानी की आवक और अतिरिक्त खारे पानी को नदियों में मिलने वाले मार्गों पर भयंकर अतिक्रमण हो गए हैं. यह भी जानना जरूरी है कि सांभर साल्ट लिमिटेड ने इस झील के एक हिस्से को एक रिसार्ट को दे दिया है. यहां का सारा गंदा पानी इसी झील में मिलाया जाता है. इसके अलावा कुछ सौर उर्जा परियेाजनाएं भी हैं. फिर तालाब की मछली का ठेका दिया हुआ है.
ये विदेशी पक्षी मछली ना खा लें, इसके लिए चौकीदार लगाए गए हैं. जब पंक्षी को ताजा मछली नहीं मिलती तो वह झील में तैर रही गंदगी, लम्पी से मरे मवेशी का मांस, भेाजन के अपशिष्ट या कूड़ा खाने लगता है. यह बातें भी पक्षियों के इम्यून सिस्टम के कमजोर होने वा उनके सहजता से विषाणु के शिकार हो जाने का कारक है.