हमारा संविधान पिछले पचहत्तर वर्षों से कार्यरत है. यह सभी अवसरों के लिए उपयुक्त एक जीवंत दस्तावेज साबित हुआ है. भारतीय संविधान के निर्माण का इतिहास ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता संग्राम के समानांतर है. इसकी शुरुआत ‘होम रूल स्कीम, 1889’ के प्रस्तुतिकरण से हुई, जो एक अज्ञात लेखक द्वारा लिखित एक मसौदा विधेयक था. इसे एनी बेसेंट ने होम रूल विधेयक के रूप में वर्णित किया था, जिसे ‘भारतीय संविधान विधेयक, 1895’ शीर्षक से प्रस्तुत किया गया था. यह भारत के संविधान की एक सुविचारित रूपरेखा तैयार करने का पहला प्रयास था.
1914 में, गोपालकृष्ण गोखले ने युद्धोत्तर सुधारों की एक मसौदा योजना तैयार की, जिसे ‘गोखले का राजनीतिक वसीयतनामा’ के रूप में जाना जाता है, उनका मानना था कि बढ़ते असंतोष के जवाब में सरकार द्वारा इसे पेश किया जा सकता है. 1915 में जिन्ना की पहल पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मुंबई में अपना वार्षिक सत्र आयोजित किया और सरकार पर दबाव डालने वाले सुधारों के लिए एक आम योजना तैयार करने में सहयोग करने का संकल्प लिया. 1916 में लखनऊ और कलकत्ता में आयोजित अपने अगले सत्रों में, कांग्रेस और लीग ने मसौदे को मंजूरी दी, जिसे लोकप्रिय रूप से ‘कांग्रेस-लीग योजना’ के रूप में जाना जाता था.
भारतीयों की सहमति से तैयार कानून के आधार पर स्वशासन के मुद्दे पर निरंतर विचार-विमर्श हुआ. 17 मई, 1927 को मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस के बंबई अधिवेशन में एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें कार्यकारिणी समिति से एक संविधान बनाने का अनुरोध किया गया.
भारत के संविधान के सिद्धांतों को निर्धारित करने के लिए मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में अली इमाम, सप्रू, एमएस अणे, सरदार मंगल सिंह, शुएब कुरैशी, सुभाष चंद्र बोस और जीआर प्रधान की एक छोटी समिति गठित की गई थी. समिति की रिपोर्ट 10 अगस्त, 1928 को प्रस्तुत की गई और इसे ‘नेहरू रिपोर्ट’ के नाम से जाना गया. यह भारतीयों को संप्रभुता प्रदान करने वाला संविधान तैयार करने का पहला प्रयास था.
इसमें 87 अनुच्छेद शामिल थे, जिनमें मौलिक अधिकार, नागरिकता, संसद, प्रांतीय विधानमंडल, न्यायपालिका और संशोधन के प्रावधान वाले अध्याय शामिल थे. इस दस्तावेज ने साबित कर दिया कि भारतीय बिना अंग्रेजों की सहायता के अपने लिए संविधान बना सकते हैं.
1936 के फैजपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने निर्वाचित निकाय के महत्व पर बल देते हुए संविधान सभा के चुनावों का संकल्प लिया. 1939 में महात्मा गांधी ने संविधान सभा की आवश्यकता पर जोर देते हुए ‘एकमात्र रास्ता’ नामक लेख लिखा. हर मंच से दबाव बनाया गया. अंततः 1940 में वाइसराय लिनलिथगो ने ‘अगस्त प्रस्ताव’ के माध्यम से इस मांग पर प्रमुखता से विचार किया. इसके बाद 11 मार्च 1942 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटिश संसद में एक बयान जारी कर भारतीयों द्वारा भारत के लिए एक संविधान निर्माण की मांग को स्वीकार कर लिया. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के परिणामस्वरूप वेवेल योजना 1945 में बनाई गई. अंततः 4 दिसंबर 1945 को भारत में एक संविधान निर्माण निकाय की स्थापना की घोषणा की गई. जुलाई 1946 के आसपास रियासतों की 93 सीटों को छोड़कर संविधान सभा की 296 सीटों के लिए चुनाव हुए.
सर बी.एन. राव एक ब्रिटिश नौकरशाह थे जिन्होंने 1909 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (आईसीएस) उत्तीर्ण की और बंगाल में पदस्थापित हुए. जनवरी 1946 में, जब भारतीयों से बनी एक संविधान सभा के गठन का संघर्ष अपने चरम पर था, सर बी.एन. राव ने नए संविधान की रूपरेखा तैयार की. वाइसराय के अधीन उन्हें संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया और संविधान सभा के संगठन की रूपरेखा तैयार करने को कहा गया. इसके जवाब में, 5 जून 1946 को राव ने एक योजना प्रस्तुत की, जिसमें संविधान सलाहकार को संविधान सभा की प्रगति की रिपोर्ट देने के लिए ब्रिटिश वाइसराय से सीधे संपर्क करने का प्रावधान था.
9 दिसंबर, 1946 को भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक नई दिल्ली स्थित संविधान भवन में हुई. डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा सबसे वरिष्ठ सदस्य होने के नाते कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए. 11 दिसंबर, 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष चुने गए. 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा भारतीय संविधान के ‘उद्देश्य’ और प्रस्तावना के पूर्ववर्ती रूप को प्रस्तुत करने की ऐतिहासिक घटना घटी.
संविधान सभा ने मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक आदि विषयों पर कई समितियां और उप-समितियां गठित कीं. 17 मार्च, 1947 को संविधान सलाहकार ने नवनिर्वाचित सदस्यों से संविधान पर राय जानने के लिए प्रश्नावली वितरित की. अक्तूबर, 1947 में सर बी.एन. राव ने संविधान का एक प्रारूप तैयार किया. इससे पहले, 29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा ने अपने सदस्यों में से एक प्रारूप समिति का गठन किया, जिसमें अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, एन. गोपालस्वामी अय्यंगर, डॉ. बी.आर. आंबेडकर, के.एम. मुंशी, मोहम्मद सादुल्ला, बी.एल. मित्तर और डी.पी. खेतान शामिल थे. 30 अगस्त को प्रारूप समिति ने डॉ. आंबेडकर को अपना अध्यक्ष चुना.
प्रारूप समिति ने 21 फरवरी, 1948 को संविधान का अपना प्रारूप प्रस्तुत किया, जिसे पूर्ण सभा द्वारा तीन बार पढ़ा गया. इस दौरान 7635 संशोधन प्रस्तावित किए गए, 2473 संशोधन वास्तव में प्रस्तुत किए गए और उन पर चर्चा हुई. अधिकांश संशोधनों का उत्तर डॉ. आंबेडकर ने दिया. बी.एन. राव द्वारा तैयार किए गए प्रारूप में 243 अनुच्छेद और 13 अनुसूचियां थीं, जबकि स्वीकृत संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं.
भारतीय संविधान के निर्माण का कार्य एक सामूहिक प्रयास था जिसका नेतृत्व इसके राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. आंबेडकर, उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल, मौलाना आजाद, नजीरुद्दीन अहमद और अन्य सहित विभिन्न समितियों के अध्यक्ष और सदस्यों ने किया. अंततः 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अपनाया गया, जिसमें डॉ. आंबेडकर राष्ट्रपति के समापन भाषण से पहले अंतिम वक्ता थे. डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मैंने महसूस किया है कि प्रारूप समिति के सदस्यों और विशेषकर इसके अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर ने अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद जिस उत्साह और निष्ठा के साथ काम किया है, यह किसी और के लिए संभव नहीं था. हम कभी भी इतना सही निर्णय नहीं ले पाए या ले ही नहीं सकते थे जितना कि उन्हें प्रारूप समिति में शामिल करके और उसका अध्यक्ष बनाकर. उन्होंने न केवल अपने चयन को उचित ठहराया है, बल्कि अपने कार्य को और भी निखारा है.’’
हमारे संविधान को अपनाने की वर्षगांठ के इस पवित्र अवसर पर, जिसे हम संविधान दिवस के रूप में मनाते हैं, आइए हम संविधान के निर्माण में योगदान देने वाले संस्थापक सदस्यों को नमन करें तथा उन्हें किसी विवाद में न डालें.